बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday, 7 February 2025

सोने का वक़्त हो चला है

सोने का वक़्त हो चला है 
पर अभी नींद का आँखों में आना शेष है,
'आज' आज ही बीत गया कल की तैयारी के साथ,
न आज में कुछ विशेष था और 
न कल ही में होगा कुछ विशेष 
फिर भी जगना होगा 
फिर से उसी सूरज के साथ,
कोई मंज़िल नही है मेरी 
जहाँ पहुँचने की जल्दी हो मुझे 
फिर भी भागना होगा 
तेज़ और तेज़ 
एक अंतहीन सड़क पर,
क्यों और किसलिए का जवाब 
मुझे पता नहीं 
और शायद इन जवाबों को मुझे 
अब ढूँढना भी नहीं 
हाँ,पर अब सोना है मुझे 
और गुज़ारनी है यह रात 
क्योंकि कल फिर 
एक अंतहीन सड़क पर मेरा भागना शेष है।

#आँचल 

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