बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday, 21 December 2024

कुछ तो बात हुई होगी

कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती,
कभी कोई गाँठ खुली होगी 
जो बाँधे अब नहीं बँधती,
बंजर है जो आज वहाँ 
कभी बरसात हुई होगी,
कुछ तो बात हुई होगी,
जो अब कोई बात नहीं होती।

कुछ तो राख बची होगी 
जहाँ अब 'आग' नहीं जलती 
कोई फ़रयाद रही होगी 
जहाँ अब 'याद' नहीं रहती,
जज़्बात के सूने आँगन में 
कभी मुलाक़ात हुई होगी,
कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती।

कुछ तो 'चाह' रही होगी 
जो अब कोई चाह नहीं होती,
काग़ज़ की नाव रही होगी
जो दूर तलक नहीं चलती,
गुलज़ार झूठ के गुलशन में 
काँटे हैं, बहार नहीं होती,
कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती।

#आँचल 


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