आत्म रंजन
बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए
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Saturday, 30 November 2024
बार-बार
मैं मरती हूँ बार-बार
जैसे गिरते हैं पेड़ से पत्ते
हज़ार बार,
पत्ते मिट्टी में मिलते हैं,
खाद बनते हैं और
जी उठते हैं बार-बार
मैं भी एक ही जीवन में
मरकर जी उठती हूँ
हज़ार बार।
#आँचल
1 comment:
सुशील कुमार जोशी
30 November 2024 at 08:00
मैं जीती हूँ हर बार | :)
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मैं जीती हूँ हर बार | :)
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