एक दिन सूरज चाचा ने थक कर ली उबासी,
वहीं-कहीं पर खेल रहे थे भोले चंदा मामा जी,
जो खुला सूर्यमुख गुफा समान,
ठंडे-ठंडे मामा बन गए मेहमान,
मुख से भीतर प्रवेश हुआ,
फिर हुआ वही जो कभी न हुआ।
सूरज चाचा को हुआ ज़ुकाम,
अम्मा उनकी हुई परेशान,
जो छींकें तो आँधी आ जाए,
नाक बहे तो बारिश,
देवगण भी सोच रहे किसने की यह साज़िश?
भाँप-बाम कुछ काम न आया
तब अम्मा ने डॉक्टर को बुलाया,
डॉक्टर ने मोटी सुई लगाई,
जाँच-रिपोर्ट बनकर आई,
पढ़कर डॉक्टर हुए हैरान,
सूर्य के भीतर बैठा कोई शैतान!
फिर ऑपरेशन तत्क्षण हुआ,
डॉक्टर ने चांद को मुक्त किया,
ज़ुकाम सूर्य का ठीक हुआ
पर चंदा थोड़ा झुलस गया,
उजले मुख पर दाग देखकर
चांद बड़ा पछताया,
मोटे-मोटे आँसू संग सूर्य को यह बतलाया -
"अगर थोड़ा-सा मैं देता ध्यान
करता न तब ऐसा काम,
मुख है,गुफा नही यह बात
अगर मैं लेता जान।"
तब सूरज चाचा ने बड़े प्रेम से
चंदा मामा को समझाया,
"अनुभव में ही ज्ञान पले"
यह भेद उन्हें बतलाया।
माना गलती से होते हैं
थोड़े-बहुत नुकसान,
पर इससे ही लेकर सीख
बनते लोग महान।
#आँचल
( प्रस्तुत चित्र का श्रेय मेरे छोटे भाई आशुतोष पाण्डेय को )
अच्छी बाल रचना । और इन्हीं सूरज चाचू को गेंद समझ बजरंगबली ने मुंह में बंद कर लिया था ।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 10 जून 2022 को 'ठोकर खा कर ही मिले, जग में सीधी राह' (चर्चा अंक 4457) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत अच्छी और सुंदर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
काल्पनिक का अनुपम समावेश करती सार्थक बाल कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रिय आँचल मनलुभावन बाल गीत।
ReplyDeleteबधाई।