क़ुदरत पर क़हर ढ़ानेवालों ये रुस्वा वक़्त का तैश है।
लूटकर आशियाँ जिनका अपना मकाँ बनाते हो,
आज बंद तुम दीवारों में और इन परिंदों के ऐश हैं।
इन बंद इबादत-ख़ानों में अब कहाँ कोई हितैष है,
वो जिन पर थूकते हो तुम वो ख़ुदा हैं जो मुस्तैद हैं।
जिससे हारा हो ज़माना भला उससे कैसे जीतोगे?
जब रंजिशों को पालकर तुम आपस में ही जूझोगे।
मजबूर हो तुम जो मीलों पैदल ही चलोगे,
भला हाकिमों के ऐब देखने की गुस्ताख़ी कैसे करोगे?
ग़र कोरोना से बचे तो भूख या भीड़ से मरोगे,
मौत के असफ़ार में आख़िर कब तक बचोगे?
#आँचल
समसामयिक समस्याओं,मुद्दों,मन को मथते प्रश्नों को समेटकर शब्द दिया है आपने।
ReplyDeleteसार्थक सृजन प्रिय आँचल।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏
Deleteयथार्थ और सार्थक सृजन आँचल जी
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
Deleteवर्तमान का सजीव चित्रण
ReplyDeleteवाह!बहुत खूब !वर्तमान परिस्थितियों का बखूबी चित्रण किया है आपनें ।
Deleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏
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