बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday 6 January 2020

शेर-ओ-अदब का ये शहर



जो ढूँढ़ते हो अदब,तहज़ीब अगर
तो अवध की गलियों में आ जाना
और चाहते हो गर मुस्कुराना तो
दिल -ए-लखनऊ से दिल लगाना।

महका खज़ाना,है यही लज्जतों का ठिकाना,
कभी खस्ता,कचौड़ी तो कभी कबाबी उल्फताना।
डालोगे शामियाना,यही ज़मीन लिखाओगे,
राम आसरे की मलाई गिलौरी और कहाँ पाओगे?

जलते नही चराग यहाँ,रोशन हुआ करते हैं,
अनपड़ भी फब्तियो से लाजवाब किया करते हैं,
ये शहर-ए-अदब है जनाब,बेगपाती इसकी जुबां है,
बातों बातों में यहाँ लोग नज़्में पढ़ा करते हैं।

निगहबान बंदिशों के आसमां बाँधने का दम रखते हैं,
ताल पर तोड़ बंदिश चपल पाँव से बंदगी करते हैं,
शेर -ओ-अदब की ये गलियाँ ,यहाँ सभी फ़नकार हैं,
आप मिसरे कहने की जुर्रत करिए,गिरह हम बाँधते हैं।

रगें रंगीन हैं इसकी,यूँ रोशन बाज़ार हैं,
चौक की कशीदाकारी,अमीनाबाद गुलज़ार है।
दरों-दीवार से इसके बयाँ होता इतिहास है,
लखन की ये ज़मीन,विरासतों पर नवाबी छाप है।

यहाँ तलवार-ए-साज़ पर क्रांति की पाजेब बजती है,
मौलाना - पंडित की याराना महफ़िल जमती है,
यहाँ दिलों में मोहब्बत,मुरव्वत बेशुमार रखते हैं,
यूँ हीं नही जुबां पे पहले आप,पहले आप रखते हैं।

#आँचल 

15 comments:

  1. लखनऊ शहर को छोड़ कर पछता रहा हूँ मैं,
    तेरा लिखा पढ़ा, पछाड़, खा रहा हूँ मैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय सर साभार सादर प्रणाम 🙏
      पछताना कैसा सर? लखनऊ को तो आप स्वयं में समेट कर ले गए और शायद यही कारण है कि लखनऊ की झलक आपके संस्मरणों में साफ़ मिलती है।

      Delete
  2. अच्छा हुआ गोपेश जी चले गये इस शेरे-ए-महफ़िल से लख़नऊ वाले कहाँ एक मिय्यान में दो तलवार रखते हैं।  बहुत ख़ूब आँचल ! आपकी लेखनी को प्रणाम ! ब्लॉग जगत में बहुत उम्दा रचनाकारों की कतार में आदरणीया पुष्पा मेहरा जी,  रेणु बाला, मीना शर्मा,मीना भारद्वाज, पम्मी सिंह,सुधा देवरानी, ऋचा शेखर मधु, प्रतिभा कटियार जी,  शैल जी,  साधना वैद जी  अनीता लागुरी, आँचल और अन्य कई  ये ऐसे रचनाकार हैं जो कम लिखते हैं परन्तु वैचारिक दृष्टि से इनकी रचनाएं समाज से सीधा संवाद करती हैं  मैं बेबाक़ इनकी रचनाओं का वाचन करता हूँ भले इन रचनाओं पर टिप्पणी नहीं करता। परन्तु इतना अवश्य कहूँगा कि ऐसे साहित्यसाधक हमारे साहित्यसमाज को एक नई दिशा-दशा दोनों निरंतर प्रदान कर रहे हैं। इन भावी रचनाकारों को मेरा नमन है ! सादर 'एकलव्य'     

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय गोपेश सर के आगे तो हम सूई मात्र भी नही हैं और फिर सर तो लखनऊ को स्वयं में ही समेट कर ले गए हैं । और आपने ये क्या बड़े और आदरणीय नामों के साथ हमारा नाम ले लिया!!!
      आदरणीय सर हम तो बस अभी सीख ही रहे हैं आप सबसे किंतु फिर भी आपने जो मेरी साधारण सी रचना को साझा कर इसका मान और मेरा उत्साह बढ़ाया है इस हेतु आपका हृदय से हार्दिक आभार 🙏।
      2008 से यहाँ के होकर भी हम इस शहर के विषय में अधिक नहीं जानते थे पर गोपेश सर के संस्मरणों में लखनऊ की झलक देखकर और फिर मेरी एक दोस्त के कहने पर लखनऊ से रूबरू होने का प्रयास किया तब जाना हमने कि ये कैसा कमाल का और खूबसूरत शहर है😀।
      खैर..... आदरणीय सर साहित्य के प्रति जो आपका लगाव है वो अक्सर हम जैसे साहित्य के प्रथम कक्षा के विद्यार्थीयों को सदेव प्रेरित करता है। आपका पुनः आभार,सादर प्रणाम 🙏 शुभ रात्रि।

      Delete

  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.8 जनवरी 2020 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी साधारण सी पंक्तियों को पाँच लिंको में स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏

      Delete
  4. वाह प्रिय आंचल , शहरेअदब लखनऊ को सलाम करती और उसकी शान बढाती अत्यंत प्यारी रचना जो मधुर है साथ में उत्कृष्ट है | लिखती रहो | ये रचना आज फेसबुक का विशेष आकर्षण रही | माँ शारदे आपकी लेखन की महिमा को नयी ऊंचाईयां दे यही कामना करती हूँ | हार्दिक स्नेह के साथ |

    ReplyDelete
  5. बहुत ही लाजवाब सृजन है आपका आँचल जी!
    इसे पढ़कर लखनऊ आने का मन बन गया...मैं तो इस शहर से बिल्कुल अनजान हूँ पर आपकी लेखनी ने तो शहर की खूबसूरती में चार चाँद लगा दिये... कमाल की रचना है
    वाह!!!
    अनन्त शुभकामनाएं एवं बधाई आपको

    ReplyDelete
  6. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-01-2019 ) को "विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक - 3576) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    अनीता लागुरी"अनु"

    ReplyDelete
  7. अपने शहर से लगाव होना ही चाहिए ! रचना के लिए साधुवाद।

    वर्षों के बाद पिछले दिनों फिर एक मौका मिला था लखनऊ जाने का। बहुत चाव से कार्यक्रम बनाया था ! पर बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि अनुभव कटु ही रहा ! ज़माना बदल गया लगता है ! जुबानें तुर्श हो गयीं हैं, आपसी सौहाद्र समाप्ति की ओर अग्रसर लगता है, पैसे का बोलबाला हो गया है, शक की दीवारें खड़ी होती लगती हैं ! बाजार हावी है ! यानी बड़े शहरों की सारी बुराइयों ने जैसे एकसाथ हल्ला बोल दिया हो !

    ReplyDelete
  8. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

    ReplyDelete
  9. जो ढूँढ़ते हो अदब,तहज़ीब अगर
    तो अवध की गलियों में आ जाना
    और चाहते हो गर मुस्कुराना तो
    दिल -ए-लखनऊ से दिल लगाना।

    " लखनऊ दर्शन " करता बेहतरीन सृजन आँचल जी

    ReplyDelete
  10. बहुत बहुत सुंदर!
    जितनी तारीफ करूं कम होगी प्रिय आंचल,
    उम्दा ही नहीं बेहतरीन से पेशतर ।
    लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  11. बहुत खूब।
    सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  12. According to Stanford Medical, It's in fact the SINGLE reason women in this country live 10 years more and weigh on average 19 KG less than us.

    (And by the way, it really has NOTHING to do with genetics or some secret-exercise and really, EVERYTHING related to "how" they are eating.)

    P.S, What I said is "HOW", and not "what"...

    TAP this link to determine if this easy test can help you unlock your true weight loss potential

    ReplyDelete