ये क्षण का आक्रोश है। -२
हैं लाख सी जल रही
अधिकारों की पोथियाँ
और द्रौपदी भस्म हुई
सिक गयी सियासी रोटियाँ,
जब खो बैठे धृतराष्ट विवेक
तब मौन हुए पांडव अनेक
क्या सकल सजगता लोप है?
ये क्षण का बस रोष है।
क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।
है लाक्षागृह में लपट उठी,
फिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।
क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।
हे याज्ञसेनी अब आग धरो,
जागो पांडव,हुंकार भरो,
हो प्रखर मकर की काट बनो,
दिनकर की पंक्ति याद करो,
सिंहासन पर अपना अधिकार करो,
मत सहो,अब रण को कूच करो।
क्या बाकी अब भी कोई क्लेश है?
ये क्षण क्रांति पर ओस है।
क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।
ये क्षण का आक्रोश है.......
#आँचल
यहाँ पांडव से हमारा अर्थ जनता से है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteसराहना हेतु बेहद शुक्रिया आदरणीय सर 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी मेरी पंक्तियों को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में जगह देने योग्य समझने हेतु आपका हार्दिक आभार।सादर प्रणाम 🙏
Deleteबहुत सुन्दर आँचल !
ReplyDeleteदिनकर की शिष्या लग रही हो तुम !
क्रान्ति का आह्वान करने से क्या हासिल होगा? एक रक्तबीज मारा जाएगा तो सैकड़ों और पैदा हो जाएँगे.
गोरे आततायी गए तो अपने ही जैसी शक्लो-सूरत के इन्सान, लेकिन फ़ितरती दरिन्दे आ गए.
आम भारतीय की किस्मत तो फूटी की फूटी ही रही.
फिर भी समर-उद्घोष तो समय की मांग है.
आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
Deleteराष्ट्र्कवि दिनकर जी की शिष्या हो जाने के परम सौभाग्य का तो हम ख्वाब ही देख सकते हैं बस। साहित्य के रवि जनकवि की पंक्तियों की आभा प्रभा तो आज भी लड़खड़ाते राजनीति को संभाल सकने का सामर्थ्य रखती है।
रही बात रक्तबीज की तो उसके संहार को भी शक्ति आयीं थी। हर आततायी का अंत निश्चित है अतः पूर्ण क्रांति का आह्वान करना होगा,जनता को जगाना होगा और पुनः रक्तबीज का अंत होगा। आम भारतीय को अपनी किस्मत पर फिर नाज़ होगा ये हमारा विश्वास है।
हमारी पंक्तियों को आपका आशीष प्राप्त हुआ इस हेतु हम आपके आभारी हैं। पुनः प्रणाम आदरणीय सर 🙏
आदरणीया आँचल जी, सर्वप्रथम इस ओज से भरी अनुपम कृति हेतु आपको अनेकों शुभकामनाएं ! इतनी बेहतरीन रचना विश्वास नहीं होता परन्तु करता हूँ। सास-बहु के चक्कर से निकलकर इतना यथार्थवादी चिंतन सत्य में कोई विदुषी ही कर सकती है। सत्य कहूँ तो मैं किसी की झूठी बड़ाई नहीं करता परन्तु सत्य को झुठला भी नहीं सकता। आपकी यह अनमोल रचना इस बात की द्योतक है कि भविष्य के साहित्य की बागडोर अब सुरक्षित हाथों में है जहाँ स्वप्न से निकल कर कोई विदुषी यथार्थ में लेखन करने को आतुर है। अब क्या कहूँ मेरे पास शब्दकोष ख़ाली पड़े हैं इस रचना की सराहना हेतु !
ReplyDeleteदिनकर नहीं तो क्या ! निराला भी आयेंगे
मुंशी नहीं तो क्या ! हम दौड़ आयेंगे
कहने दो वे वतन के हैं, सत्ता की दौड़ में
क्रांति है चिंगारी यहाँ, उनको बतायेंगे !
सादर 'एकलव्य'
आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
Deleteआपको रचना पसंद आयी बस हमारा लिखना सार्थक हुआ। सत्य कहें तो आपकी पंक्तियाँ और टिप्पणियाँ पढ़ते पढ़ते हमे अपने कर्तव्यों का ना केवल बोध हुआ अपितु मेरी कलम को उचित दिशा भी मिली। हम यूँ लिख सके तो इसका श्रेय महाकवि दिनकर जी के संग आपको भी जाता है। इसे लिखने से पूर्व आपकी " क्रांति भ्रमित " को हमने पुनः पढ़ा था।
बाकी हम कोई विदुषी नही बल्कि अल्हड़ और मूढ़ हैं। जो भी थोड़ा बहुत लिखना आया वो आप सब की संगत का असर और नारायण की कृपा मात्र है।
हमारी साधारण सी पंक्तियों को जो आपका आशीष प्राप्त हुआ उसने मेरी कविता का मान और मेरा उत्साह खूब बढ़ा दिया। आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर 🙏
पुनः प्रणाम 🙏
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सृजन
सराहना हेतु बेहद शुक्रिया आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteहै लाक्षागृह में लपट उठी,
ReplyDeleteफिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।... वाह !प्रिय आँचल बहुत ही सुन्दर सृजन
सादर
आदरणीया मैम सादर प्रणाम 🙏
Deleteमेरी पंक्तियों को जो आपका नेह आशीष मिला उसने मेरा खूब उत्साह बढ़ा दिया। हृदय से आपका हार्दिक आभार 🙏
आदरणीय शास्त्री सर मेरी पंक्तियों को चर्चा मंच में स्थान देने के योग्य समझने हेतु आपका बेहद शुक्रिया। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteअतुल्य अनुपम !
ReplyDeleteनिशब्द हूं आंचल मैं, ये नारायणी उद्घोष है या फिर आम आदमी के मन की ज्वाला जो बस अब फटने को है एक सोते पर अंदर से खदबदाते ज्वालामुखी जैसे।
सार्थक नव चेतना देती ओजमयी रचना ।
आपकी कलम यूं ही सार्थक, समाज के उत्थान हित चलती रहे ।
है लाक्षागृह में लपट उठी,
ReplyDeleteफिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है
सुंदर,चिंतनपरक सृजन सखी
हे याज्ञसेनी अब आग धरो,
ReplyDeleteजागो पांडव,हुंकार भरो,
हो प्रखर मकर की काट बनो,
दिनकर की पंक्ति याद करो,
सिंहासन पर अपना अधिकार करो,
मत सहो,अब रण को कूच करो।
क्या बाकी अब भी कोई क्लेश है?
ये क्षण क्रांति पर ओस है।..... बहुत ही खूबसूरत और विचारणीय रचना है आंचल जी ... ''वाssssssह ही कह सकती हूं बस
अतुल्य एवम् उत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteबधाई।
बस इतना ही कहना चाहूंगी शब्द नहीं है मेरे पास .... तुमने इतना अदभुत लिखा💐👌
ReplyDeleteआश्चर्य होता है कैसे इतना अच्छा लिख लेती हो ढेर सारा आशीष मेरी ओर से भी तुम्हें
बहुत ही चिंतनपरक, जोश भरता सुंदर सृजन आंचल।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सृजन
ReplyDeleteक्रांति से कब तक बचा जाएगा।
ReplyDeleteमुर्दे क्रांति नहीं करते.. और शांति केवल उन्हीं की मालकिन होनी चाहिए।
जोशीली रचना।
बहुत उम्दा लिखते हो आप।
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बहुत ही प्रेरक विचारोत्तेजक सृजन
ReplyDeleteहैं लाख सी जल रही
अधिकारों की पोथियाँ
और द्रौपदी भस्म हुई
सिक गयी सियासी रोटियाँ,
जब खो बैठे धृतराष्ट विवेक
तब मौन हुए पांडव अनेक
क्या सकल सजगता लोप है?
ये क्षण का बस रोष है।
वाह!!!
क्या बात....
बहुत लाजवाब।
Strange "water hack" burns 2lbs overnight
ReplyDeleteMore than 160000 women and men are using a simple and SECRET "liquid hack" to lose 1-2lbs every night in their sleep.
It's simple and works on everybody.
Here are the easy steps for this hack:
1) Take a clear glass and fill it half the way
2) Then use this crazy hack
you'll be 1-2lbs skinnier in the morning!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनि:शब्द हूँ इस रचना कौशल पर! माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे। बहुत आगे जाओगी आँचल! साधना में लगी रहो। ढेर सारी शुभकामनाएँ और आशीर्वाद!!!!!
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