लाल रंग का ऊनी स्वेटर पहन आज शारदा खूब खुशी से इधर उधर झूम रही है। बहुत समय बाद उसे आज नया स्वेटर जो मिला है। दरसल शारदा की माँ लता लोगों के घर खाना बनाने का काम करती है तो जो कुछ उसे रोज़ी मिलती है वो शारदा की स्कूल फीस और घर खर्च में लग जाती है। लता बचत कम होने के कारण लोगों के घर से जो पुराने पहने हुए कपड़े मिलते उसी को नया बता शारदा को दे देती और शारदा भी नए -पुराने में अंतर जानते हुए भी माँ की मजबूरी समझ उसी में खुश हो जाती। इसबार बचत कुछ ठीक होने के कारण लता बाजार से ऊन ले आयी जिससे शारदा की दादी जी ने बड़े प्यार से एक लाल सुंदर स्वेटर बुना और उसपर एक पीली चिड़िया का चित्र और शारदा का नाम भी लिख दिया।शारदा भाग कर दादी जी के पास गई और उनके गले लगकर उन्हें धन्यवाद करते हुए कहा,"दादी जी आज तो मैं ये स्वेटर बिल्कुल नही उतारूँगी और यही पहनकर अपने दोस्तों के साथ खेलने जाऊँगी और उन सबको दिखाऊँगी कि आपने मेरे लिए कितना सुंदर स्वेटर बुना है।"ऐसा कहकर शारदा दादी जी की गोदी से उतरी और भागकर अपने दोस्तों के साथ खेलने चली गयी।
शाम को जब शारदा घर लौट रही थी तो उसने ठंड में ठिठुरते हुए अपनी ही उम्र के एक बच्चे को देखा जिसने बस एक फटी सी सूती शर्ट पहन रखी थी और ठंड से बचने के लिए उसके पास कोई भी गरम कपड़ा नही था। शारदा का कोमल मन उस बच्चे की चिंता में डूब गया और वह सोचने लगी कि अगर इसे तुरंत कुछ गरम पहनने को नही मिला तो इतनी ठंड में इसकी तबीयत बिगड़ जायेगी और ठिठुरते हुए अगर ये मर.... नही नही। ऐसा सोच शारदा ने इधर उधर देखा फिर ध्यान अपने लाल स्वेटर पर गया तो शारदा पल भर के लिए रुकी पर फिर बिना कुछ सोचे अपना वही नया स्वेटर जिसे पहन वो खुशी से झूम रही थी उतारकर हलकी सी मुसकान के साथ उस बच्चे को दे दिया और घर लौट आयी।
जब लता ने शारदा को बिना स्वेटर घर आते देखा तो पूछने लगी,"शारदा तुम्हारा नया स्वेटर कहाँ गया? तुम तो वही पहनकर खेलने गयी थी ना?" माँ के प्रश्नों को सुनती शारदा इस डर से चुप खड़ी थी कि शायद माँ सच जानकार बहुत नाराज़ होंगी पर जब लता ने दुबारा पूछा तो दादी जी ने प्यार से शारदा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,"बिटिया जो भी सच है वो बोलो,सच कहने से कभी मत डरना।" दादी जी की बात मानकर शारदा ने हिम्मत से माँ को सब सच बताया और माफ़ी माँगते हुए कहने लगी," मैं जानती हूँ माँ आप मुझसे बहुत नाराज़ हो, कितनी मेहनत के बाद आप मेरे लिए ऊन लेकर आयी होगी और मैंने.... पर माँ उस बच्चे को मेरे स्वेटर की ज्य्दा ज़रूरत थी। मेरे पास तो और भी पुराने गरम कपड़े पड़े हैं पर उसके पास कुछ भी नही था।"
शारदा की बातें सुन लता की आँखों से गर्व आँसू बन छलकने लगे। लता शारदा के गालों पर हाथ रख कहने लगी,"पगली हो तुम, अपनी प्यारी बच्ची पर भला मैं क्यू नाराज़ होने लगीं? हाँ अगर तुम सच ना कहती तो शायद मैं नाराज़ हो जातीं।"
बस फिर लता ने शारदा को गले लगाते हुए कहा,"मुझे गर्व है तुम पर और आज तो तुम्हें तुम्हारी इस अच्छाई का इनाम भी मिलेगा।" इतना कहकर लता फटाफट रसोईघर में गई और शारदा की मनपसंद खीर बनाने लगी।
.. बच्चे बहुत कोमल और मासूम होते है... उनकी मासूमियत उन्हें लाभ हानि के फर्क नहीं समझा सकती वह तो वही करेंगे जो उनके दिल को भाएगा.. शारदा जैसी ना जाने कितनी बच्चियां है। जिनकी बामुश्किल इच्छाएं पूरी हो पाती है परंतु इस कहानी के जरिए तुमने एक ऐसे बच्चे के चरित्र का क्रियान्वयन किया जो वास्तव में अभी भी इस उम्र की बच्चियों के अंदर निहित है ..बहुत ही सार्थक संदेश देती हुई कहानी लिखी है.. तुमने अपनी जरूरत का ध्यान ना रखते हुए किसी रोते हुए बच्चे को स्वेटर दे देना यह भाव मानवीयता के सकारात्मक सोच को दर्शा रहा है...
ReplyDeleteमैं यही कहूंगी कि यह तुम्हारी प्रथम कहानी है और तुमने बहुत ही सुंदर तरीके से इस कहानी के साथ न्याय किया है ऐसे ही लिखती रहा करो बाल दिवस की छोटी आंचल को बहुत-बहुत शुभकामनाएं...🙏
बेहद शुक्रिया आदरणीया दीदी जी। आपकी विस्तृत टिप्पणी ने मेरी रचना का भाव प्रस्तुत करते हुए इसका मान और मेरा उत्साह दोनो ही खूब बढ़ा दिया।
Deleteसादर नमन 🙏
वाह! संवेदना का सुंदर संदेश।
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आदरणीय अपनी सुंदर प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर नमन सुप्रभात 🙏
वाह!प्रिय आँचल ,बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी आपने । बालमन कितना भोला और मासूम होता है य। शारदा के चरित्र द्वारा आपने बखूबी चित्रित किया है । सुंदर सृजन के लिए बधाई ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी।
Deleteसादर नमन सुप्रभात 🙏
अच्छी शिक्षाप्रद कहानी ! बच्चों में त्याग की भावना, दया, ममता और इंसानियत, हम बड़ों से कहीं ज़्यादा होती है. लेकिन शारदा और लता जैसी माँ-बेटी इस दुनिया में कम ही होती हैं.
ReplyDeleteउचित कहा आपने आदरणीय सर और शायद यही अभाव आज मनुजता को अंधकार में लाकर खड़ा कर रहा है।
Deleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर नमन 🙏
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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-अनीता लागुरी 'अनु'
मेरी रचना को चर्चा मंच के योग्य समझ वहाँ स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर नमन
Deleteबहुत बहुत सुंदर! भावप्रणव प्रसंग प्रस्तुत किया है प्रिय आंचल आपने ।
ReplyDeleteकहानी को बिना मतलब ना खिंचा और ना समेटा सहज ढंग से प्रवाह लिए बहुत सुंदर प्रस्तुति।
कहीं-कहीं टंकन दोष है, और कहीं अल्पविराम की कमी लग रही है, वैसे मैं ज्यादा विवेचना तो नहीं कर सकती क्योंकि स्वयं बहुत त्रुटियां करती हूं।
बहुत बहुत बधाई नव विधा में प्रथम प्रयास के लिए।
आपकी इतनी विवेचना भी मेरे लिए लाभप्रद होगी आदरणीया दीदी जी। आपकी इन बातों को ध्यान में रख स्वंय को और बेहतर बनाने का हम पूर्ण प्रयास करेंगे। अपना नेह आशीष यूँ ही बनाए रखिएगा।उत्साहवर्धन करती आपकी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार 🙏सादर नमन।
Deleteप्रिय आँचल कथा विधा विषय को विस्तार देती है । इस विधा में तुम्हारा पहला कदम मुबारक हो। एक नन्हीं बालिका के अंतस के करुणा भावों को बहुत ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत कर एक सुंदर लघुकथा लिखी है तुमने। लिखती
ReplyDeleteरहो। मेरी दुआएं और शुभकामनायें 💐💐🌹🌹🌹🌹💐💐
शायद आप लोगों की दुआओं और शुभकामनाओं का ही परिणाम है ये आदरणीया दीदी जी।
Deleteआपकी नेह आशीष युक्त प्रतिक्रिया सदा ही उत्साह बढ़ाती है।हृदयतल से आपका आभार 🙏सादर नमन।
बहुत ही खूबसूरत कहानी
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आदरणीय। सादर नमन 🙏
Deleteबच्चों की मासूमियत और सच्चाई बताती बहुत सुंदर लघुकथा, आँचल दी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया मैम।
Deleteकृपया हमे दी ना कहें... हम आपसे बहुत छोटे हैं अतः आप बस हमे अपना आशीर्वाद दे।
सादर नमन शुभ रात्रि 🙏
Everyone praise good people.
ReplyDeleteNature