Tuesday, 26 March 2019

शब्द शक्ति



शब्द सम कोई रिपु ना दूजा
शब्द सम ना मीत
तू चाहे तो तेरा दास बने
तू चाहे तो तेरा ईश
भाव है इसकी संगिनी
बिन भाव ना इसकी रीत
जैसे इसके भाव हो
वैसे इसकी नीत
तोल मोल कर जो बोले
हो उसकी जय जयकार
बिन तोले जो बोले
उसके बिगड़े सारे काज
दुर्भावों में जिसके शब्द रमे
ना पाता वो सत्कार
जिसके शब्द शब्द में प्रेम घुले
वो करता जग पर राज
पर शब्द भाव के फेर में
तब होता महाकल्याण
जब हर शब्द 'हरी' नाम हो
संग भाव भक्ति का अपरम्पार
और स्वंय जगदीश अकुला उठे
मिलने को तुझसे एक बार
तेरी शब्द शक्ति पर बैकुंठ तजे
और आ पहुँचें तेरे द्वार
#आँचल 

Wednesday, 20 March 2019

राधा कृष्ण की होली


जा रे हट सरपट तू बड़ा नटखट
खेलूँ ना तुम संग होली
तुम छलिया मैं भोली किशोरी
जमे ना अपनी जोड़ी

अरे फगुआ के संग झूम ले तू भी
बरसाने की छोरी
काले के संग हो जा काली
छोड़ दे चमड़ी गोरी

ओ नंदलाला सुन रे गोपाला
कर ना ना बरजोरी
कह देती हूँ पहले ही तुझसे
बोलूँगी लठ की बोली

छैल छबीली बड़ी नखरीली
ओ वृषभानु की छोरी
क्यू रूठी तू अपने किशन से
आ खेल ले प्रेम की होली

तू झूठा तोरा प्रेम भी झूठा
मैं ना तोरी सजनीया
राह तके तोरी सब सखीयाँ
जा खेल ले भर पिचकरीया

अरे ओ भोरी कच्चा तोरा मन
सच्ची मोरी प्रेम की बतिया
बिन राधे ये कान्हा जैसे
बिन रंगों की होलीया

अब मान भी जा मेरी राधा प्यारी
रंग जा मोरे प्रेम के रंग म

चल मान गयी मेरे कृष्ण मुरारी
रंग दे मोहे प्रेम के रंग म

लो राधा श्याम के रंग रंगी
रंगे राधा रंग कन्हैया
ब्रज में होली की धूम मची
गूँजे चहूँ ओर बधईया

जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी
जय हो बरसाने की होली
जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी
जय हो वृंदावन की होली
जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी........

#आँचल

                 Happy holi



Tuesday, 19 March 2019

मै नारायण की दासी


मै नारायण की दासी मै हरी दर्शन की प्यासी
मोहे पल पल तेरी याद सतावे,
मन व्याकुल तेरे गीत ही गावे,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ

मै नारायण की दासी मै हरी चरणन को तरसी
तेरी चरण रज निज  माथे लगाऊँ,
नित चरणों की सेवा मै पाऊँ,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ

मै नारायण की दासी मेरे हरी कण कण के वासी
मम हृदय में वास करो प्रभु,
पूर्ण समर्पण स्वीकार करो प्रभु,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
                                                  -आँचल

नंदलाला मोरे गोपाला मोरे



नन्द्लाला मोरे गोपाला मोरे,
दर्शन को तेरे नैन प्याला भये

गंगा पावन नदी कहलाने लगी,
चरणों को तेरे जो छूके बही

एक नारी बड़ी दुखियारी पड़ी,
कृपा सिंधु कृपा अहील्या को मिली

सुकुमार एक बालक तेरी खोज करें,
दर्शन जो मिले ध्रुव तारा भये

अठ्केली करें वात्सल्य भरे,
ममता को प्रेम गोपीयन से लिये

नन्द्लाला मोरे गोपाला मोरे,
दर्शन को तेरे नैन प्याला भये।

                                                  -आँचल 

सुन उद्धव अभिमानी



हम माने है  प्रेम ज्ञान को सुन उद्धव अभिमानी,
जो जाने है कृष्ण प्रेम को सो ही है  बड़ ज्ञानी

तोरो ज्ञान से छूटत होंगे मोह बंधन से प्राणी,
प्रेम ज्ञान से बंध जाते हैं मोर मुकुट स्वामी

कहत प्रेम संगिनी मोहन की  सुन वेदों के ज्ञाता
प्रेम योग ही परम योग ये कहते विश्व विधाता

जब  प्रेम रंग में  रंग जाते  तब और रंग ना भाते
हम पीर विरह की सह जाते हमे और योग ना आते

तोरो ज्ञान अधुरो उद्धव तू प्रीत को नाही माने
राधा-गिरधर के अमर प्रेम को अबतक नाही जाने

ढाई  अक्षर को प्रेम ये भारी तुम्हरे वेद पुराणों  पे
तुम मानो ये योग हमारी जो ना है वेद पुराणों  में
       
                                                     -आँचल 

एक जोगन बनी एक दिवानी बनी



एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी।

एक गिरधर गिरधर जपने लगी,
एक कान्हा कान्हा बुलाने लगी

एक वीणा की धुन पे गाने लगी,
एक बंसी की धुन पे थिरकने लगी

एक जग की रीत ठुकराने लगी,
एक प्रेम की रीत निभाने लगी

एक संतों की वाणी कहने लगी,
एक संतों की वाणी बनने लगी

एक अश्रु प्रीत के बहाने लगी,
एक अश्रु बिछोह के छिपाने लगी

एक श्याम दरस को तरसने लगी,
एक कृष्ण विरह को सहने लगी

महलों में दोनों पली बड़ी श्याम रंग में रंगने लगीं
एक मीरा भयी एक राधा भयी
मदन मनोहर को चाहने लगी

एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी
                                                -आँचल 

विरह काहे बनाई



प्रश्न करूँ तुम से एक बिहारी
विरह काहे बनाई,रे कान्हा विरह काहे बनाई?

लोग कहे सिया बड़ी दुखियारी,
त्यागी गयी स्वामी से नारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

ताने कसे राधा पे बिचारी,
छोड़ गयो जो मदन मुरारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

अपमान मिला मीरा को भारी,
डूबी जो तुझ में गिरधारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

प्रीत लगी तुम संग जो बिहारी,
पीर विरह की लागे प्यारी।।

विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?
ओ कान्हा विरह काहे बनाई?
                                                        -आँचल
                                                  

रूप मनोहर ऐसो पायो



रूप मनोहर ऐसो पायो,कृष्ण प्रेम रंग मन मोरा रंगायो
कजरारी तोरी नीली अँखीया मन मोरा डूबे दिन रतीया,
मुरली मनोहर ऐसो बजायो,धुन में अपनो सुध को खोवायो
मधुर मधुर तूने मुरली बजायो तीनों  लोक सब तुझमें समायो,
मुस्कान मनोहर ऐसो पायो,चित मोरा तुझमें रम जायो
मंद मंद चितचोर हँसे फिर गोपीयन को तूने  चैन चुरायो,
शब्द मनोहर ऐसो पायो,अपनो मोह में जग को फँसायो
फिर गीता उपदेश सुनाकर मोह बंधन से जग को छुड़ायो,
रूप मनोहर ऐसो पायो कृष्ण प्रेम रंग मन मोरा रंगायो।।
                                                       -आँचल