बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Tuesday, 21 April 2020

मौत के असफ़ार में आख़िर कब तक बचोगे?


आदमियत भूल गया था जो वो आदमी क़ैद है,
क़ुदरत पर क़हर ढ़ानेवालों ये रुस्वा वक़्त का तैश है।

लूटकर आशियाँ जिनका अपना मकाँ बनाते हो,
आज बंद तुम दीवारों में और इन परिंदों के ऐश हैं।

इन बंद इबादत-ख़ानों में अब कहाँ कोई हितैष है,
वो जिन पर थूकते हो तुम वो ख़ुदा हैं जो मुस्तैद हैं।

जिससे हारा हो ज़माना भला उससे कैसे जीतोगे?
जब रंजिशों को पालकर तुम आपस में ही जूझोगे।

मजबूर हो तुम जो मीलों पैदल ही चलोगे,
भला हाकिमों के ऐब देखने की गुस्ताख़ी कैसे करोगे?

ग़र कोरोना से बचे तो भूख या भीड़ से मरोगे,
मौत के असफ़ार में आख़िर कब तक बचोगे?

#आँचल 

8 comments:

  1. समसामयिक समस्याओं,मुद्दों,मन को मथते प्रश्नों को समेटकर शब्द दिया है आपने।
    सार्थक सृजन प्रिय आँचल।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏

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  2. यथार्थ और सार्थक सृजन आँचल जी

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏

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    1. वाह!बहुत खूब !वर्तमान परिस्थितियों का बखूबी चित्रण किया है आपनें ।

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    2. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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    3. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏

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