बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Sunday 19 April 2020

मेरे डैडी



बिन इबादत मिलें जो वो ख़ुदा आप हैं,
नाम जिनसे मिला वो पिता आप हैं,
बरकतों के पीछे की दुआ आप हैं,
हम ज़हमत से दूर,रहमतों में आप हैं।

दस्तूर जहाँ का सब जाना आपसे,
अनुशासन का मोल पहचाना आपसे,
कर्तव्यों की राह को दिखाया आपने,
मनुजता ही धर्म सिखलाया आपने।

मान,ईमान हैं बहुमूल्य रतन,
मिलते ना फल बिन किए जतन,
संस्कारों से हीन का होता पतन,
आप ही से सीखे ये अनमोल वचन।

जन्नत का सारा सुख है वहाँ
होते पिता के पाँव जहाँ,
आप ही हैं धरती, आप ही आसमाँ,
आप से बड़ा ना रब ना जहाँ।

#आँचल 

3 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर। कहते हैं शिशु नागरिकता का प्रथम पाठ अपनी माँ की ममता की छाँह में और पिता के वात्सल्य की वाटिका में सीखता है।

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  2. बहुत सुन्दर।
    माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
    मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।

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  3. नमस्कार..

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