सीपी में ही रह गए मोती
कोई न शृंगार हुआ,
बाग़-बाग़ में बिन फूलों के
अबकी बरस मधुमास लगा,
लिखे भाव पर काग़ज़ कोरा,
स्याही का न रंग चढ़ा,
खिली धूप में भी देखो
अँधियारे ने राज किया,
बिन बसंत के ऋतुएँ बीतीं,
कोकिल का न गान सुना,
झर-झर बीती बरखा फिर भी
सावन सूखा बीत गया,
नगर-नगर की डगरी नापी
गाँव हमारा छूट गया,
भोर हुई है जाने कब की!
मन का सूरज डूब गया,
चित है पर चैतन्य नहीं,
बिन जिए ही जीना सीख लिया।
#आँचल