आत्म रंजन
बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए
आत्म रंजन
बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए
Thursday 17 October 2024
ओ शरद के चाँद
ओ शरद के चाँद
तुमसे रौशन हैं आज
उम्मीदों के वो मकान
जो समय के साथ बढ़ते
इस स्याह अँधेरे में
गुम हो गए थे,
भूल गए थे कर्तव्य अपना
और अपनी पहचान
कि उम्मीदों के दीप
बार-बार जलाते रहना ही
है उनका काम।
#आँचल
1 comment:
Ravindra Singh Yadav
17 October 2024 at 19:38
वाह!
गागर में सागर.
बहुत सुंदर रचना.
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वाह!
ReplyDeleteगागर में सागर.
बहुत सुंदर रचना.