यामिनी तो रोज़ चाँद-तारों
की बारात लिए आती है,
पर यह दुनिया ही उसे
देख कर मुँह बनाती है
और नींद का बहाना कर
आँखें मूँद लेती है।
उसके उर में छुपी ममता,
प्रेम और शीतलता को
केवल वही समझ पाता है
जो रात भर उसके
साथ जागता है,
उसे आँख भर निहारता है
और वही इस रहस्य को
भी जानता है कि
'यामिनी' वह विरहिणी है
जो सत्य की पहली किरण को
अपना सर्वस्व समर्पित करने हेतु
रात भर अंधकार से जूझती है।
#आँचल
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी रचना चर्चा मंच के अंक
'चार दिनों के बाद ही, अलग हो गये द्वार' (चर्चा अंक 4668)
में सम्मिलित की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं।
सधन्यवाद।
अप्रतिम रचना
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteठीक कहा आपने। अत्यन्त प्रशंसनीय अभिव्यक्ति है यह।
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