बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Sunday 21 June 2020

योग द्वारा मानव विकास


मनुष्य का यह तन ईश्वर का वह अद्भुत वरदान है जिसे हम #योग द्वारा और निखार सकते हैं। योग न केवल हमे तन से अपितु मन के भी समस्त रोगों से,विकार से लड़ने और उससे मुक्त होने की क्षमता प्रदान करता है। योग हमे हमारी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने योग्य भी बनाता है और हमे हर नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। निरंतर योगाभ्यास में तपते हुए हमारी यह क्षणभंगुर काया हमे माया मुक्त करके हमारी आत्मा से और आत्मा में लीन परमात्मा से भी मिलवाती है। अर्थात् योग मात्र तन का व्यायाम नही अपितु यह वह ज्ञान या यूँ कहें कि वह विज्ञान है जो मानव तन की समस्त शक्तियों को जागृत कर उसे अपने अंतर में पूरे ब्रह्मांड का दर्शन करवाते हुए उसी ब्रह्मांड में स्वयं का दर्शन करवाता है। अर्थात् योग हमे ध्यान के माध्यम से इस संसार का पूर्ण ज्ञान कराता है। निरंतर योगाभ्यास पंचतत्व से बने इस तन को प्रकृति से जोड़ता है और यही हमे समस्त सिद्धियों का धनी भी बनाता है। योगाभ्यास द्वारा अपनी सप्त कुंडलियों को जागृत कर हम अपने अंतर में उस परमशक्ति का परिचय पा सकते हैं जिसने इस पूरे संसार की रचना की है। वास्तव में यह संसार कोई चमत्कार नही अपितु योगविज्ञान द्वारा रचा गया है और यही इस संसार का पालन और संहार भी करता है। अर्थात् योग का मार्ग मानव के विकास का मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य स्वयं के साथ-साथ पूरी सृष्टि का विकास करता है। अफ़सोस इस बात का है कि आज मनुष्य योग-ध्यान के स्थान पर भोग-ध्यान की ओर बढ़ चला है। भोग के पीछे भागते हुए हम पतन की ओर आ गए और योग की महत्ता को भूल गए। आज योग को पुनः अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि यही वह साधन है जो मनुष्य को विकास का उचित मार्ग देगा।
#आँचल 

3 comments:

  1. बहुत सुंदर विचार। 'योगश्चितवृत्तिनिरोध:'। और 'योगः कर्मषु कौशलम'।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-6-2020 ) को "अन्तर्राष्टीय योग दिवस और पितृदिवस को समर्पित " (चर्चा अंक-3741) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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    कामिनी सिन्हा

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  3. सुंदर!
    योग की चर्चा तो बहुत है पर रोज़ाना करने वाले कम हैं.

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