धूल हूँ जो उड़ चली हूँ राह पाने को,
ढूँढ़ती हूँ गली-गली में साँवरे मन को।-2
लक्ष्य को जो विलग हुई हूँ घने तरूवर से,
भटकती जो अटक गयी कांटो की झाड़ी में,
गति के झोंकों से बढ़ूँ,वीरान पाती हूँ,
माटी में जाकर मिलूँ,मैं माटी का कण हूँ।
धूल हूँ जो उड़ ......
क्षुब्ध-सी मैं ढुलक रहीं हूँ,लुब्ध कंकड़ हूँ,
ढल रही हूँ,घिस रही हूँ विकार अंतर के,
अचल से होकर पृथक मैं सूक्ष्म-सा कण हूँ,
माटी में जाकर मिलूँ मैं माटी का कण हूँ।
धूल हूँ जो उड़ ........
शून्य हूँ,निस्पंद हूँ,मैं मधुर स्पंदन हूँ,
अंत का आनंद हूँ,आधार क्रंदन हूँ,
परिणय की वेदि पे बैठी राख होती हूँ,
माटी से जाकर मिलूँ मैं,माटी का कण हूँ।
धूल हूँ जो उड़.........
धूल हूँ जो उड़ चली हूँ राह पाने को,
ढूँढ़ती गली गली में साँवरे मन को।
#आँचल
शून्य हूँ,निस्पंद हूँ,मैं मधुर स्पंदन हूँ,
ReplyDeleteअंत का आनंद हूँ,आधार क्रंदन हूँ,
परिणय की वेदि पे बैठी राख होती हूँ,
माटी से जाकर मिलूँ मैं,माटी का कण हूँ।
- बेहतरीन बुनावट की है शब्दों की आपने। शुकून देती आपकी रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं ।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम। सुप्रभात।
Deleteमेरी पंक्तियों को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏 सुप्रभात।
ReplyDeleteढल रही हूँ,घिस रही हूँ विकार अंतर के,
ReplyDeleteमैं ज़िन्दगी में लड़ रही एक तूफ़ान के अंदर।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २६ फ़रवरी २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
जी
ReplyDeleteशून्य हूँ,निस्पंद हूँ,मैं मधुर स्पंदन हूँ,
ReplyDeleteअंत का आनंद हूँ,आधार क्रंदन हूँ,
परिणय की वेदि पे बैठी राख होती हूँ,
माटी से जाकर मिलूँ मैं,माटी का कण हूँ।
अंतस की कसमसाहट को बखूबी शब्दांकित करती भावपूर्ण रचना प्रिय आँचल | और वाचन का कोई जवाब नहीं | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं|
Easy "water hack" burns 2 lbs OVERNIGHT
ReplyDeleteOver 160 thousand women and men are utilizing a simple and secret "liquids hack" to burn 2lbs each night in their sleep.
It's proven and works all the time.
Here are the easy steps for this hack:
1) Get a glass and fill it up with water half glass
2) And then follow this weight losing HACK
and become 2lbs skinnier the next day!