सूनी सी हो चली है
धर्म की दहलीज़
जबसे जमाने ने पायी
झूठ की ताबीज़
ओढ़ कर हिजाब बैठा
सच हुआ नाचीज़
बढ़ चला बेखौफ सा
फरेब का तासीर
बेच कर ईमान सारा
जग हुआ अमीर
देखकर दुख का नजारा
कह रहा आमीन
लूट कर खाना हुआ है
आज की तहज़ीब
बाँट कर खाना कहाँ अब
होता है लज़ीज़
नफरतो को पालना
जिसकी है तमीज़
कर रहा ढकोसला
बनकर वो फ़क़ीर
दया,धर्म ये भावरत्न
अब होते नही नसीब
इंसानियत को मारके जबसे
अधर्म हुआ रईस
पर भूल मत दस्तूर उसका
जो लिखता है तक़दीर
अधर्म की हर बरकत के आगे भी
होगी बस धर्म की जीत
बदनसीब होगी फ़िर से
झूठ की लकीर
बाँधेगा ज़माना फ़िर से
सच का वही ताबीज़
धर्म की दहलीज़
जबसे जमाने ने पायी
झूठ की ताबीज़
ओढ़ कर हिजाब बैठा
सच हुआ नाचीज़
बढ़ चला बेखौफ सा
फरेब का तासीर
बेच कर ईमान सारा
जग हुआ अमीर
देखकर दुख का नजारा
कह रहा आमीन
लूट कर खाना हुआ है
आज की तहज़ीब
बाँट कर खाना कहाँ अब
होता है लज़ीज़
नफरतो को पालना
जिसकी है तमीज़
कर रहा ढकोसला
बनकर वो फ़क़ीर
दया,धर्म ये भावरत्न
अब होते नही नसीब
इंसानियत को मारके जबसे
अधर्म हुआ रईस
पर भूल मत दस्तूर उसका
जो लिखता है तक़दीर
अधर्म की हर बरकत के आगे भी
होगी बस धर्म की जीत
बदनसीब होगी फ़िर से
झूठ की लकीर
बाँधेगा ज़माना फ़िर से
सच का वही ताबीज़
#आँचल
जमाने का सही सही खांचा खींच दिया आंचल आपकी कविता ने यथार्थ का चित्रण ।
ReplyDeleteसचमुच यही हाल है जमाने कि बहुत सामायिक कविता
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दीदी जी
Deleteबस कोशिश थी आपकी सराहना ने सार्थक कर दी
आप सदा ही अपनी टिप्पणी द्वारा हमारा उत्साह बढ़ाती है
हार्दिक आभार सादर नमन शुभ दिवस 🙇
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः ......!और
ReplyDeleteबाँधेगा ज़माना फ़िर से
सच का वही ताबीज़!
बहुत सार्थक प्रस्तुति!! बधाई और आभार!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर
Deleteलिखने के बाद जब रचना पुनः पढ़ी हमने तो हमे भी गीता की यही पंक्तिया याद आयी थी
आपकी टिप्पणी से रचना का मान बढ़ गया हार्दिक आभार
सादर नमन शुभ दिवस
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-06-2018) को "रखना कभी न खोट" (चर्चा अंक-2998) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसादर नमन शुभ दिवस
क्या बात है.. अद्भुत प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी आपकी इस मनमोहक टिप्पणी के लिए
Deleteवाह!!सखि ...आँचल जी ,बहुत ही खूबसूरत यथार्थ चित्रण।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय शुभा जी अपनी मनमोहक टिप्पणी से हमारी रचना का मान बढ़ा दिया आपने
Deleteसादर नमन शुभ संध्या
बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं...आँचल जी
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
जी बिलकुल आऊँगी आदरणीय
Deleteसराहना हेतु हार्दिक आभार
सादर नमन शुभ दिवस
बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी
ReplyDeleteहम बेशक उपस्थिति होंगे
सादर नमन शुभ दिवस
बहुत सुंदर रचना। सच के ताबीज़ के मायने बहुत सटीक तौर पर उभर कर आये हैं आपकी रचना में। अद्भुत लेखन।
ReplyDeleteशुभकामनाएं
सादर
एक बहुत ही गहरी और प्रतीकात्मक प्रस्तुति प्रिय आँचल।अच्छा लगा तुम्हारे ब्लॉग पर उन्मुक्त विचरण।खुश रहो 🌹🌹
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