Wednesday, 15 August 2018

72 वे स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

सभी दिशवासीयो  को सादर नमस्कार

आज हम सभी 72 वे आजादी दिवस को  मना रहे हैं। चहूँ ओर से देश तिरंगे में रंगा हुआ है,देश प्रेम की लहर हवाओ में बह रही है और आजादी का जश्न बडी धूमधाम से मनाया जा रहा है पर इन सबके बीच एक बात का बडा अफसोस है की विविधताओं के इस देश में जो एकता का रंग दिखाई देता था वो आज फीका दिख रहा है अफसोस है की आज धर्म-मजहब देश से ऊँचा हो गया है कुछ लोगों के लिए। आज तो बधाईयों में भी धार्मिक रंग चढा हुआ,कोई देश को अपने  धर्म से जोड रहा है तो कोई मजहब से और इस तरह देश की एकता पर खतरे का बादल मँडराने लगा है।
आज सवाल है मेरा आप सभी से कि  अगर एक पेड़ पर तमाम विविधताओं के साथ फूल,पत्ते,फल,पक्षी,वानर,सर्प आदि मिल जुलकर एक साथ प्रेम से रह सकते हैं तो प्रकृती को पूजने वाला ये देश क्यु एकता में घुट रहा है। शायद भूल रहा है ये देश की फिरंगियों से आजादी तो 1857 में मिल जाती पर उस वक्त तक तो सब अलग अलग होकर एक ही दुश्मन से अपने अपने हक की लड़ाई लड़ रहे थे और यही कारण था जो उन दुष्ट फिरंगियों से हम जीत ना सके और जब 1947 को हमे आजादी मिली तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण देश की एकता थी। उस वक्त ना कोई हिंदू था ना मुस्लिम हर कोई राष्ट्रवादी था और राष्ट्र हित में मन,कर्म और वचन से समर्पित था । ये जो आजादी की साँस आज हम सब ले रहे हैं  ये उन्ही देश पर मर मिटने वालों की क़ुरबानीयो का नतीजा है जो अपने धार्मिक चोले को छोड बस एक ही राग अलापते थे "मेरा रंग दे बसंती चोला मेरा रंग दे बसंती चोला "......
आज आजादी की 72 वी वर्षगांठ है इस अवसर पर यही कामना है की ये आजादी सदा बनी रहे और देश उन्नती की ओर बढता रहे पर सवाल यह है की बँट कर क्या ऐसा  संभव है?

कभी अपने धर्म मजहब के बैर से फुर्सत मिले तो विचार  कीजिएगा  की कही आप वापस से गुलामी की ओर तो नही बढ रहे हैं?और इस तरह आपस में ही लड़ कर देश की एकता को खंडीत कर देश की खुशीय़ो का गला तो नही घोट रहे हैं?
अभी भी वक्त है समझ जाइये की देश की ताकत उसकी एकता में है उसकी अखंडता में है। टुकड़ों में बँटकर देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और अगर बँटना ही था तो फिर तो व्यर्थ थी आजादी के परवानो की वो सारी कुरबानीयाँ।
अभी भी कुछ नही बिगडा है छोड दीजिए  अपने ही देशवासियो से ये बेवजह की दुश्मनी और साथ मिलकर वतन के लिए
लड़िए वतन के दुश्मनों से लड़िए
अन्यथा आगे आप सब खुद समझदार हैं 

हम तो बस जाते जाते इतना ही कहेंगे कि भारतीय तो आप सभी हैं पर आप सब में सच्चा देशभक्त वही है
जिसके लिए ना कोई हिंदू है ना मुसलमान हर भारतीय है माँ भारती की संतान
जिसके लिए ना रंग हरा है ना भगवा बस तिरंगा है उसका अपना
आप सभी भारतीयों को आँचल की ओर से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
             जय हिंद जय भारत
                  वंदे मातरम
                       🇮🇳

Wednesday, 25 July 2018

मैं मनोज माँ लाल हूँ तेरा

“If death strikes before I prove my blood, I swear I’ll kill Death”

‘अगर मेरे खून को साबित करने से पहले मौत हो जाती है, तो मैं वादा करता हूं, मैं मौत को मारूंगा’.

ये शब्द हैं परम वीर चक्र से सम्मानित करगिल युद्ध के वीर योद्धा कैप्टन मनोज कुमार पांडे के जिसने अपनी अंतिम साँस तक को देश सेवा में तैनात कर वीरगति प्राप्त की।और वर्दी और वतन के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा तो देखिए जो खून से लथपथ तन लिए भी आगे बढ़ते हुए  दुश्मनों को ढेर करते रहे और वीरगति प्राप्त करने से पूर्व विजय सुनिश्चित करते हुए अपने जवानों को अंतिम आदेश दिया  कि "छोड़ना मत " और यह कहकर माँ भारती का ये वीर सपूत तिरंगे में लिपट गया और पूरे देश को गौरवान्वित कर गया। 
कैप्टन मनोज कुमार पांडे की इसी वीरता,कर्तव्यनिष्ठा और देश प्रेम को शत शत नमन करते हुए अपनी कलम से कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत करती हूँ



मैं मनोज माँ लाल हूँ तेरा
क़तरा-क़तरा अर्पण तुझे लहू मेरा
गहरा कितना भी हो दुश्मन का घेरा
अटल अडिग रहेगा हौसला मेरा

खौफ नहीं किसी मौत का मुझको
मैं हँस कर बलि चढ़ जाऊँगा
पर काम तेरे ना आ सके जो
एसी मौत को मैं ठुकराऊँगा

रंगूँ लाल तुझे ए करगिल की चोटी
यही कसम आज मैं खाऊँगा
ए माँ तेरे इश्क की खातिर
धूर्तों की लाशें आज बिछाऊँगा

गर छलनी भी हो जाए तन मेरा
नही थमेगा साँसों का फेरा
हर साँस पर कदम बढ़ाऊँगा
कर दूँगा ध्वस्त दुश्मन का डेरा

जिसने बहाया रक्त तेरे वीर पूतों का
उन बुज़दिलों से बदला ले आऊँगा
वो कायर जो छुपकर वार करें
उन्हें उनकी औकात दिखाऊँगा

लहूलुहान इस वर्दी की कसम है
अंतिम बूँद तक फर्ज निभाऊँगा
जब कर लूँगा निश्चित जीत वतन की
तेरी गोदी में माँ सो जाऊँगा

मैं मनोज माँ लाल हूँ तेरा
आज लिपट गया तन तिरंगे में मेरा
दे विदा,स्वीकार अंतिम नमन मेरा
मैं मनोज माँ लाल हूँ तेरा

मैं मनोज माँ लाल हूँ तेरा........

#आँचल 

Friday, 13 July 2018

नन्ही सी आज जान हूँ

जब एक 5-6 साल की नन्ही बच्ची के मन में देशभक्ति के भाव उमड़ते हैं तो वो माँ भारती से कुछ इस प्रकार कहती है.....

नन्ही सी आज जान हूँ
कल मैं बड़ी बनूँगी
पहनूँगी शान-ए-वर्दी
सीमा पे मैं लड़ूँगी  -2

आए दुश्मनो की टोली
तो मौत उनको दूँगी
ए माँ तेरी रक्षा को
बंदूक हाथ लूँगी

बलि से ना डरूँगी
बली जोश का धरूँगी
ए माँ तेरे आँचल को
लहू से मैं रंगूँगी

नन्ही सी आज जान हूँ
कल मैं बड़ी बनूँगी
पहनूँगी शान-ए-वर्दी
सीमा पे मैं लड़ूँगी

जो कदमो की ताल दूँगी
दुश्मन भी सकपकाए
रण छोड़ के वो जाए
हुंकार जो भरूँगी

मुण्डमाल शत्रुओं का
अर्पण तुझे करूँगी
ए माँ तेरी खातीर ही
जिऊंगी और मरूँगी

नन्ही सी आज जान हूँ
कल मैं बड़ी बनूँगी
पहनूँगी शान-ए-वर्दी
सीमा पे मैं लड़ूँगी -2

नन्ही सी आज जान हूँ.......

#आँचल

हमारी इस रचना को आप youtube पर भी सुन सकते हैं
https://youtu.be/WSul_IfLaN8
धन्यवाद 

Sunday, 8 July 2018

घिर घिर आओ कारे बदरवा

घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर

लागे अगन जिया में बयार के
बिरहिनी धरा को मूर्छा छायी
ताकत रस्ता पूछे नहरिया
कउने चक्कर घन ने सुध बिसराई

भटके ईहाँ ऊहाँ प्यास से
चिरई कउआ रहे अकुलाई
झुलसत तरुवर सूखत पोखर
संग चातक मिल करत दुहाई

घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर

भीगे तन मन भीगे सब जन
भीगे इक इक पात डार की
कूके कोयल गावे पपीहा
संग मल्हारी हो गरजन मेघ की

ठुमकत मयूरा मनुहार करे
ताल देत लड़कपन की ताली
कृषि मन में उत्साह जगे
जो भीजे धरा की हरियर साड़ी

घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर

हो मिलन फुहार बयार का पावन
गीली माटी की गंध उठे सौंधी सौंधी
झमझम कर बाराती बौछारें आए
मंडप में टर्राते बैठे मेंढक मेंढकी

पड़ जाए झूला अमवा की डार पर
झूलन को आए सब सखी सहेली
सावन का रस्ता देखें सुहागिन
रचाने को हाथों में तीज की मेहंदी

घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर

घनघोर बरस नव जीवन लाओ
यही बिनती सब ओर
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर

#आँचल

Thursday, 5 July 2018

जहाँ होए अँधेरा



जहाँ होए अँधेरा
वही निश्चर जागे
जहाँ ज्ञान उदित
वहाँ भयसे काँपे

जहाँ व्यापे कुमति
वहाँ  रोगी पनपे
जहाँ बोए सुमति
संजीवनी  जनमे

हो फल से विमुखता
यही  कर्म योग है
हो फल आसक्त
यही कर्म दोष है

होए  मल्ल अगर
सच झूठ के बीच
बल गिरे झूठ का
होए सच की जीत

हूँ जो मूढ़ी अज्ञानी
ज्ञान को क्या गाऊँ
आँचल हरी दासी
हरी बोल दोहराऊँ

 #आँचल 

Tuesday, 3 July 2018

सोई आँखों में जो ख्वाब सजे
वो सजे धरे ही रहते हैं
जागी आँखों में जो ख्वाब सजे
वो ख्वाब ही पूरे होते हैं
#आँचल


नींद में तो हम बस ख्वाब सजा सकते हैं
उन्हें पूरा करना है तो जागना तो पड़ेगा ही
इसलिए जागते रहो......😀
शुभ रात्रि शुभ स्वप्न 

Monday, 2 July 2018

हरी में नित मन जो विभोर है...

सन्नाटे में भी यहाँ शोर है
राज कपटों का चहुँओर है
हर दिल में बसते कई चोर हैं
अच्छाई का तो बस ढोंग है
मक़सद तो सबका भोग है
हर साधु के मन में लोभ है
नीयत में सबके खोट है
हर रिश्ता देता बस चोट है
मीठे शब्दों में मिलता झोल है
नफ़रत का भावों में घोल है
सच की बुझती अब ज्योत है
झूठ से मिलती मन को ओत है
संस्कारों अब ना मोल है
कर्मों का ना कोई बोध है
धर्म के पीछे भी मन का लोभ है
अधर्म को मिलती धर्म की ओट है
तम कलयुग का अति घनघोर है
हरी नाम ही भव का छोर है
हरी में नित मन जो विभोर है
काले कलयुग में उसी की भोर है
                                #आँचल

Saturday, 16 June 2018

हे सीप तुझीसे पयोधि कथा


बैठी साहिल की खामोशी के साथ
सुन रही थी जलधि का शोर
कोशिश थी मेरी जानने की
क्यू सागर है इतना दंभ विभोर
तभी लहरों ने मन को भाँप लिया
और मुझको भी अपने साथ लिया
फिर छोड़ दिया गहरे सागर में
मैं उतर गयी जल के भूतल पे
फिर वही कहीं से परियाँ आयी
साथ अपने एक एक सीप सब लायी
देखकर आँखें अचरज में थी
जलपरियों के मैं बीच खड़ी थी
तभी उनमें से एक ने कदम बढ़ाया
सीप को मेरे हाथ थमाया
फिर प्यार से सिर पर हाथ फिरा कर
उदधि का अद्भुत एक राज़ बताया
जो देख रही हो ये साफ़ समंदर
सारी है इन सीपों की माया
जैसे धरती पर तरूवर की छाया
बस वही स्थान यहाँ सीपों ने पाया
जैसे प्रदूषण से करता वृक्ष रोकथाम
कुछ ऐसा ही जल में सीपों का काम
जो खींच कर खुद में दूषित कण को
जल को स्वच्छ बनाता है
घटा के जल से नाइट्रोजन को ऑक्सीजन का दर बढ़ाता है
सुनकर सब हैरान मैं थी
सीपों की कथा से अनजान जो थी
परियों ने फिर आगे बतलाया
एक करिश्मे से मुझको अवगत कराया
 खोला मुख अपना उस सीप ने था
थामा जिसको मैंने हाथ में था
देख रही हो ये सुंदर काया
रत्नों में नाम है जिसने पाया
जलधि का ही एक अंश है ये
सीप गर्भ में जो था आया
माँ सा सीप ने इसको पाला
प्रेम से अपने इसको दमकाया
सहकर जाने कितनी पीड़ा
सीप ने इसको मोती बनाया
ये सत्य नही की जलधि को खुदपर ही अभिमान है
ये तो सीप का प्रेम त्याग है जिसपर सागर को इतना गुमान
सीपों के अस्तित्व से ही जीवित ये जलधाम है
जलचर के लिए तो जैसे बस सीप ही भगवान है
जब जान गयी सीपों की गाथा
आदर में झुक गया मेरा भी माथा
हे सीप तू तो वरदान है
तेरी महिमा को मेरा प्रणाम है
वंदन को फिर मैंने मूँदी आँख
खोला तो फिर थी मैं साहिल के साथ
पर हाथ में मेरे वो सीप भी था
जिसमें रखा सुंदर एक मोती था
जिसकी दमक पर साहिल भी बोल उठा
हे सीप तुझीसे पयोधि कथा

                                      #आँचल                      

Saturday, 9 June 2018

सच का ताबीज़

सूनी सी हो चली है
धर्म की दहलीज़
जबसे जमाने ने पायी
झूठ की ताबीज़
ओढ़ कर हिजाब बैठा
सच हुआ नाचीज़
बढ़ चला बेखौफ सा
फरेब का तासीर
बेच कर ईमान सारा
जग हुआ अमीर
देखकर दुख का नजारा
कह रहा आमीन
लूट कर खाना हुआ है
आज की तहज़ीब
बाँट कर खाना कहाँ अब
होता है लज़ीज़ 
नफरतो को पालना
जिसकी है तमीज़
कर रहा ढकोसला
बनकर वो फ़क़ीर
दया,धर्म ये भावरत्न
अब होते नही नसीब
इंसानियत को मारके जबसे
अधर्म हुआ रईस
पर भूल मत दस्तूर उसका
जो लिखता है तक़दीर
अधर्म की हर बरकत के आगे भी
होगी बस धर्म की जीत
बदनसीब होगी फ़िर से
झूठ की लकीर
बाँधेगा ज़माना फ़िर से
सच का वही ताबीज़
                               #आँचल

Saturday, 2 June 2018

बहरुपी कलयुग

कोई दुनिया भर के श्रृंगार तले
आइने को धोका देता है
सब रंगो में रंग कर भी
जाने किस रंग को रोता है
कोई विधवा सा सब कुछ खो कर
बिन रंगों के जीता है
फिर भी ज़िंदगी से अपनी
शिकवा नहीं कोई रखता है
कोई अंधा समझ दुनिया को
हर पल ठगी बस करता है
पर भूल गया कि कोई ऊपर से
नज़रें बस उस पर रखता है
कोई जाल बिछा कर अपनेपन का
लिलार तिलक से सजाता है
फ़िर ढोंगी वही समय देखकर
कालिख मुँह पर मल जाता है
ऐसे ही बहरूपी से लाखों
कल्युग है अपना भरा पड़ा
झूठ,लोभ और बैर कथा से
है इसके पाप का घड़ा भरा
पर डर मत तू ए बंदे तबतक
जबतक तू सच के साथ खड़ा
जो साथ निभाए दृढ़ता से सच का
भगवन का उसको साथ मिला

                              -आँचल

Saturday, 26 May 2018

जेठ दुपहरी कागा बोले

जेठ दुपहरी कागा बोले
सुन सूरज ए आग के गोले
जलता ये तन तप रहा बदन
क्यू फेंकता यू अंगार के ओले
काहे इतना रिसीयाए हो तुम
किसपर इतना गुस्साए हो तुम
क्या हुई किसी से तेरी लड़ाई
किसमें है इतनी हिम्मत आयी
क्या भूल हुई कुछ हम मुढी जीवों से
जो प्रचंड ताप से धरती झुलसाई
नदी नाले सब सिकुड़ गये
पोखर भी जल से बिछूड़ गये
हम प्यासे बस जल को भटक रहे
लिए सूखे कंठों को तड़प रहे
जो उड़े गगन पंख सहे तपन
हवा भी जैसे  अग्नि प्रहार करे
ना थल पर कोई ठंडी छाँव मिले
ना जल से सुखी कोई गाँव मिले
इस जेठ तपिश में सूरज भइया
बस तेरी रोषआंच और प्यास मिले
अब छोड़ दे सारा गुस्सा मेरे भाई
और बाँध के सेहरा सिर पे बदरा का
कर ले बरखा संग प्रेम सगाई
फ़िर प्रेम बौछार जो होगी भौजी की
ये जेठ सावन हो जाएगा
मन भीगा खुशी में गाएगा
और तू भी ठंडा हो जाएगा
फ़िर धरती को ना झुलसाएगा

                           #आँचल 

Saturday, 19 May 2018

जीवन आधार पेड़

सर पे सूरज चढ़ चुका है
ताप मौसम का बढ़ चुका है
तर बतर तन गर्मी से
ना कटता तरु अब कुल्हाड़ी से
अब थोड़ा सा विश्राम करूँगा
पेड़ के नीचे एक नींद भरूँगा
ज्यों बैठा मै छाँव तले
आँखों में गहरी थकान भरे
कोई क्रंदन कानों में गूँज उठा
और लगा समा नाराज़ हुआ
चू चू करती जैसे कोई
नन्ही चिड़िया रोती हो
बेघर होने के डर से
रहम रहम चिल्लाती हो
शोर मचाती जैसे कोई
वानर टोली घबराई हो
इधर उधर से कूद फाँदकर
मदद की आस लगायी हो
सरपट सरपट वो भाग रही
गिलहरी भी सहमी सी लगती है
दानव दानव की गाली देकर
जाने किधर भटकती है
फुफकारता निकला फ़िर एक भुजंग
जैसे नींद में पड़ा गया हो भंग
अब तो मै भी सकपका गया
देखकर सब कुछ घबरा गया
तभी तेज़ हवा का झोंका आया
आलम बदला सा मैंने पाया
अब कहीं नही हरियाली है
पेड़ों से दुनिया खाली है
ये कैसा धरा ने रूप धरा
जीवन धरती पर घुटन भरा
नदियाँ भी जैसे प्यासी हो
सब साँसें गिनती में चलती हो
कहीं बंजर भूमि है तप रही
कहीं बाड़ में दुनिया डूब रही
कोने कोने में अकाल पड़ा
हर घर मृत्यु का काल खड़ा
देख भय से मन ये काँप गया
मै कैसे यहाँ तक पहुँच गया
क्या धरती को किसी ने श्राप दिया
ये किसने सुकून का क़त्ल किया
तभी फ़िर से जोर की चली हवा
उसी पेड़ की छाँव में मैं फ़िर से खड़ा
यकायक दिल को जो सुकून मिला
खुशी में पेड़ को चूम लिया
तभी भावविभोर हो पेड़ भी बोला
उसी ने किया ये सब कुछ इस राज़ को खोला
ये चिड़िया,वानर,भुजंग,गिलहरी
सब पनाह लेती मुझमें हर पहरी
जाने कितने जीवों  का घर बार हूँ मै
तेरी साँसों का भी आधार हूँ मै
जो दृश्य भयंकर देखा है तुमने
बिन मेरे वही मंजर पाओगे
जो काटोगे पेड़ों को ऐसे
तो जीवन को कैसे पाओगे
यही बताने तुझको समझाने
कुदरत ने था सब स्वाँग रचा
बिन पेड़ों के बिन वृक्षों के
तू कैसे लेगा साँस बता
सुनकर मै था स्तब्ध खड़ा
पर मजबूर मै भी अब बोल पड़ा
तुम से ही मेरी रोजी रोटी
तुम से ही पूँजी होती है
जो ना काटूँगा एक दिन तुझको
तो बिटिया भूखी मेरी भी सोती है
और मै ही एक ज़िम्मेदार नही
कसूर बाकी सबका भी कम तो नही
मैं अकेले कैसे जीवन को बचाऊँगा
बिन काटे कैसे घर को जाऊँगा
बोला पेड़ तेरी बात है सही
पर मुश्किल का तेरे है हल भी यही
जो एक पेड़ को काटो तो दो पहले ही लगा देना
एक के बदले दो देकर धरती पर जीवन बचा लेना
तभी गर्म हवा का झोंका आया
नींद से उसने मुझे जगाया
वृक्षों से धरा ने जीवन पाया
ख्वाब ने मुझे ये राज़ बताया
अब पहले दो पेड़ लगाऊँगा
तभी काटने का हक़ भी पाऊँगा

                                    #आँचल 

Monday, 14 May 2018

जन्नत सी माँ की गोद

मुक़द्दर भी उसे ठुकराता है
जो माँ को अपनी सताता है
सारे ज़माने की खुशी वो पाता है
जो माँ के गमों को रुलाता है
बरकते ज़िंदगी में उसी को नसीब है
माँ की दुआएँ जिनके रहती करीब है
ये माँ की वजह से ज़िंदगी भी शरीफ़ है
वरना बिन माँ के तो रईसी भी गरीब है
उस खुदा ने भी की है खूबसूरत कारस्तानी
जो ममता को सौपी है जहाँ की बागवानी
ये अश्क नही,है ममता की निशानी
फिक्र में बहता है माँ की आँखों से पानी
यूँ ही नही,माँ तो तक़दीर से मिलती है
नसीबवालों को जन्नत सी माँ की गोद मिलती है
रे बंदे तेरे आगे तो वो खुदा भी बदनसीब है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है

                                             #आँचल

Friday, 11 May 2018

बदलती रिवायतों में इश्क के

बदलती रिवायतों में इश्क के
धड़कता है दिल बस चाहत में जिस्म के
अब गुलाबों से कहाँ होता है कोई इश्क इकरार
बस महँगे तोहफ़ों से होता है इश्क का इज़हार
इस भागती ज़िंदगी में अब कहाँ इश्क का नशा होता है
इसीलिए तो वैलेंटाइन डे जैसे बहानों का इंतजार इतना होता है
इश्क में वफाई तो जैसे कोई ख्वाब हुई
आज बेवफा सी इश्क की हर शाम हुई
बदली है सोच बदला है ज़माना
सरेआम नाचती ये इश्क आज बदनाम हुई
इसी बदनाम को पाने की कोशिशें तमाम हुई
बदलती रिवायतों में इश्क के सच्चे दिल की जान गयी
सच्चे इश्क की कहानीयाँ जाने कहाँ गुमनाम हुई

                                        #आँचल 

मेरे आँगने की चिरैया

था इंतज़ार जिस राजकुमार का
धर कर वो वेष एक शिकारी आया
वो महकते गुलाबों का नशा
और इश्क में वफ़ा का देकर झाँसा
ख्वाबों का उसने जाल बिझाया
करके इज़हार झूठी मोहोब्बत का
मेरे आँगने की चिरैया को उसने फँसाया
और ठुकराकर सरेआम उसकी मोहोब्बत
करके शिकार आबरू का वो बेवफा भागा
मैं चीखती रही चिल्लाती रही
बचाने अपनी चिरैया को तमाम कोशिशें करती रही
वो तड़पती छटपटाती अचानक से सुन्न हो गयी
आँगने से मेरे उसकी चहक गुम हो गई
बददुआ है मेरी ना पाए सुकूँ कभी वो रूह
जो बिटिया को मेरी मुझसे छीन ले गया
मेरे आँगने की चहकती चिरैया की नापाक लूट ले गया
एक माँ की लाड़ली बिटिया को वो तड़पता क्यू छोड़ गया

                                          #आँचल 

Thursday, 10 May 2018

इबादतों में इश्क इकरार हुई

इंतजार में तेरे मेरी रातें सब बदनाम हुई
गुलज़ार दिनों की रौनक भी बस नज्मों पर तमाम हुई

खैर मक़्दम को तेरे रोज़ गुलाबों से महकाई फीज़ा
तेरी बेखुदी को देख महफ़िल-ए-गुलाब गम्जदा हुई

तेरे उल्फत के जो मैंने जाम पीए ख्वाबों के नशे में मैं डूब गयीं
ढल रहा है शबाब मेरा पर दिल की धड़कने जवान हुई

ये मेरी वफ़ा का आलम है जो बेपनाह इंतजार में दिल हर पल बेकरार रहा
ज़माने की गफलतों में मैं ढल गईं मेरी कहानी खुली किताब हुई

इज़हार-ए-मोहब्बत ए खुदा तेरे नाम की सरेआम की
इबादत-ए-इश्क में होकर फ़ना मेरी रूह भी बस तेरे नाम हुई

इंतजार,इज़हार,गुलाब,ख्वाब,वफ़ा,नशा
ए खुदा तुझे पाने की सरेआम कोशिशें तमाम हुई

दर दर भटकती निगाहों को खुदी में तेरा दीदार हुआ
रूह से रूह मेरी मिली कारवाँ-ए-ज़िंदगी तमाम हुई,इबादतों में इश्क इकरार हुई
इबादतों में इश्क इकरार हुई
   
                                        #आँचल

Saturday, 5 May 2018

इंतजार में शबरी मइया

इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
राह निहारत सिकुड़ी अँखीया
कब आयेंगे प्रभु बुढ़िया की कुटिया
चुनकर काँटे फूल सजाए
स्वागत में हरी के पथ को सजाए
बस रामा रामा के गुण गाए
भजत राम सब दिन को बिताए
चढ़ भक्ति की नइया को
मइया जीवन को पार लगाए
मान गुरु की  आज्ञा शबरी
प्रभु पद पंकज को ध्यान लगाए
देख के भीलनी की भक्ति
भगवन भी आगे शीश झुकाए
राम लखन भाई की जोड़ी
कदम बढ़ाए शबरी की ओरी
जागे भाग लो शबरी के
जो जूठन खाए हरी एक भीलनी के
है अनुपम लीला प्रभु भक्ति की
जो प्रभु भी गाते है गुण शबरी के
ऐसी ही भक्ति निज मन भी समाए
इंतजार में हरी के जीवन कट जाए
जैसे पार लगी शबरी
ऐसे ही अपनी भी पार लग जाए
परम भक्तों की सूची में मइया भी
अपना नाम लिखवाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
                                             #आँचल

बूढ़ी आँखों का इंतजार

वो धूल की चादर ओढे जंभाई लेता पायदान
एक सीधी एक उलटी पड़ी पहरा देती चप्पल की जोड़ी
और चपड़ चपड़ बतियाते पत्तों की ढेरी
लगता जैसे खा जाए कान
खड़खड़ाती इन खिड़कियों संग खेलती आती जाती हवा
धूल सने इन कमरों को छुपकर देखते मकड़ी के जाल
और फड़फड़ाते ये बिखरे अखबार नाचें जैसे सावन के वार
मुरझाई सुखी इस तुलसी पर मातम मनाता ये सूना आँगन
और धूमिल टँगी तस्वीरों में खो गया जाने किसका बचपन
ये जूठा पड़ा चाय का कप और ऍल्बम में झाँकते ऐनक के संग
चु चु करते झूले पर लेटा इंतजार में कोई बूढ़ा तन
जाने किसके आने की आस में तड़प रहा था उसका मन
शायद बेटा था उसका जो दे गया बूढ़े को अकेलापन
और कह गया बाप से झूठे वचन
बोला कुछ दिन का बस इंतजार फ़िर तुझको भी लेकर जाऊँगा संग सारे त्योहार मनाऊँगा
फ़िर बीते साल और हर त्योहार
और बरकरार बूढ़ी आँखों का इंतजार
पर अकेलेपन ने गहरी एक चाल चली
बूढ़े की घुट कर जान गयी
एक चिट्ठी कप के पास मिली
मैं हारा करके बेटा इंतजार
अब चढ़ा दे आकर मुझ पर हार
अब भी तन को तेरा इंतजार
                                          #आँचल

Friday, 4 May 2018

इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी


इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
ना चमकेगी बिंदिया तेरी ना तू अब चहकेगी 
सुनी सी इस देहली पर  तेरी रंगोली ना सजेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
कल तक जो सजी थी कलाई
आज ये कैसी आंधी आयी
खुली गाँठ और छूटा धागा
टूट गया रक्षा का वादा
वो आबरू तेरी लूट गया
बस बेरंग तन को छोड़ गया
और डूबे गम में वो सपने सलोने
जो देखे थे तेरे मेरे नैनो ने
सोचा था इस राखी तुझको
लाल चुनरिया ओढा दूँगा
डोली पर बिठा तुझको
तेरा राजकुमार दिला दूँगा
हाय अपंग सा बेबस मै
तेरी अर्थी को काँधा देता हूँ
जब सुन ना सका तेरी चीख़ो को
उस समय को बस मै रोता हूँ
काश करीब मै तेरे होता
तो सुन लेता तेरी पुकार
जब भी खतरो का साया होता
मै बचा लेता तुझे हरबार
इसी काश से कोसता खुद को
एक आस को मन में जगाता हूँ
इंतजार में तेरे बहना
राखी की थाल सजाता हूँ
उस मेहंदी को अब भी लाता हूँ
जो रच भी ना सकेगी
हर राखी तुझको बुलाता हूँ
पर तू आ भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी

                                            #आँचल 

Saturday, 28 April 2018

कलजुग अस्तित्व


हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर
क्यू लोप हुआ तू धरती पर
कभी था कण कण में तेरा घर
अब बस कलजुग वजूद हर घर
और धर्म,पुण्य सब पाप हुआ
अधर्मासुर का राज हुआ
यहाँ सत्य,ईमान सब नाश हुआ
और दया,प्रेम का विनाश हुआ
काम,लोभ का माप बढ़ा
बंटवारे पे रोता बाप खड़ा
कोई रौंद गया आँचल ममता का
लूट गया काजल रमणी का
हरपल कुदरत का काल हुआ
गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ
और दानव ने मनु को गोद लिया
फ़िर तम का मनु सिरताज बना
तब हनन धर्म अस्तित्व हुआ
घोर कलजुग अस्तित्व से घिरी धरा
ये भूमि असुरों का लोक हुआ
मनुदानव से हर देव डरा
पापी के पाप का भरा घड़ा
और धरती पर हाहाकार मचा
अब जग ने बस तेरा नाम जपा
हे नाथ बस तेरा नाम जपा
                          #आँचल

Sunday, 22 April 2018

अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

थकी थकी सी नज़र है
और सुस्त साँसों का सफ़र है
पल प्रतिपल बढ़ते तम का डर है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

मुरझा गयी उसपर सजी सब कलिया
रौंद गया कोई उसकी महकती बगिया
आज ढल सा गया है उसका निखरा रूप
जाने कहाँ खो गया उसका सुंदर स्वरूप

कभी बन ठन कर इतराती थी
पंछी संग चचहाती थी
कुदरत संग खिलखिलाती थी
बस सँवर कर खुशियों को गुनगुनाती थी

आज तो जैसे लुट गयी है
अश्कों का अँखियों में सागर भरी है
रोगी बुढ़िया सी बिखरी पड़ी है
देख दर्द उसका कुदरत भी तड़प गयी है

फ़िर भी चुप है वो जिसके कर्मों का ये वर है
देखकर भी बदहाली मनु की अंधी नज़र है
उसी की गुस्ताखियो का ये भयावह मंज़र है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
 जुल्म को सहकर ये धरती विह्वल है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

                                    #आँचल 

Tuesday, 17 April 2018

ज़िंदगी से कदमताल मिलाना


अहसासों के पन्ने कुछ इस कदर पलट गए
बदले से हम और हमारे व्यवहार बदल गए
शायद समय है ये खुद से हार जाने का
या दौर है ये कुछ नया कर दिखाने का
ये वक़्त की कारस्तानी है
या उस रब की मेहरबानी है
जो गलतीया गिना रहा है
या लिख रहा नयी कहानी है
क्या बिगड़ रहे हैं मेरे अल्फाज़
या सुधर रहा है जीने का अंदाज़
ये काली अमावस की रात है
या है नयी सुबह का पैगाम है
कुछ मोती माल सा टूट गया है मुझमें
ना जाने क्यू
क्या बिखरने को
या नए ढंग से पिरोए जाने को
क्यू भटका भटका सा ये मन है
कही खो जाने को
या खुद में कुछ नया ढूंढ लाने को
क्या कुछ बदल गया है मुझमें
या कुछ बिगड़ा सँवर गया है मुझमें
कहीं नाराज़ तो नही ज़िंदगी
या बन गयी सख़्त कुछ सिखाने को
क्यू थम गए कदम
मंज़िल की राह में चलते चलते
क्यू रुक गए हैं हम
इन राहों पर बढ़ते बढ़ते
शायद ऐसे ही बढ़ता है कारवाँ मंज़िल की ओर
कभी गिरते कभी उठते
कभी बढ़ते कभी ठहरते
बदलाव के दसतूर को निभाते निभाते
ज़िंदगी से कदमताल मिलाते मिलाते
शायद ऐसे ही बढ़ता है कारवाँ
खुद को सिखाते सिखाते
शायद इसलिए रुक गए हैं कदम
शायद इसलिए थम गए हैं हम
खुद को कुछ सिखाने को
इस ज़िंदगी से कदमताल मिलाने को
शायद इसलिए बदल गए हैं हम
     
                                       #आँचल 

Sunday, 15 April 2018

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए -3
कोई तो ऐसा सुर लग जाए -2

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए

मै जो नाचूँ तू ताल मिलाए -2
पग एसी घुंघरू बँध जाए

मैं जो नाचूँ तू ताल मिलाए
पग एसी घुंघरू बँध जाए

जो चढ़ाऊँ तुझे मिल जाए -2
कोई तो ऐसा गुल खिल जाए

जो चढ़ाऊँ तुझे मिल जाए
कोई तो ऐसा गुल खिल जाए

मैं जो हँस दूँ तू मुरली बजाए -2
ऐसा भी कोई सुख मिल जाए

मैं जो हँस दूँ तू मुरली बजाए
ऐसा भी कोई सुख मिल जाए

मैं जो रो दूँ तू आँसू बहाए -2
कोई तो ऐसा गम मिल जाए

मैं जो रो दूँ तू आँसू बहाए
कोई तो ऐसा गम मिल जाए

हर कर्म में तुझको ही ध्याए -2
शायद कभी तू मिल जाए

हर कर्म में तुझको ही ध्याए
शायद कभी तू मिल जाए

मेरा जीवन सफल बन जाए
मेरी भक्ति को फल मिल जाए
चित मेरा भी चैन को पाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए

मेरा जीवन सफल बन जाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए -3
कोई तो ऐसा सुर लग जाए -2

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए

जय श्री कृष्णा
                                       #आँचल 

Friday, 13 April 2018

डर है मुझे

हाँ डर है मुझे
इस बदलते कायनात से
मरते जन के ज़स्बात से
बिखरते सबके अरमान से
इस बदनसीब जहान से

हाँ डर है मुझे मानवता के कब्रिस्तान से
हाँ डर है मुझे कलयुग के इस अहसास से

जब मंडप पे लगते हैं फेरे
दिखावटी सौगात के
और गरीब की बेटी कहीं
जलती रिवाजों की आग में
तब डर है मुझे
इस लालच में अंधे समाज से

कतरे जाते हैं पंख कहीं
नन्हे चिड़ियों के अरमान के
और झुलस जाते हैं कोमल हाथ
 मजदूरी की ताप से
तब डर है मुझे
भविष्य के बिगड़ते हालात से

जब खून पसीने से सिंचते
खेत और खलिहान कई
पर फ़िर भी कर्जो में डूबकर
फाँसी पर लटके किसान कई
तब डर है मुझे
ऊंचे दफ्तर में बैठे हैवानों से

जब एक बैठे ए. सी. गाड़ी में
और ज़ेब गरम हो नोटों से
दूजा चौराहे पर भटके
लिए कटोरा हाथों में
तब डर है मुझे
औकात के बड़े फ़ासले से

जब बढ़ती आबादी के संग
बढ़ते उद्योग और कारख़ाने
और बढ़ते दामों के संग
जाती कुदरत के बच्चों की जान
तब डर है मुझे
होते प्रकृति के विनाश से

जब बच्चे खड़े हो सिर उठाए
और झुके गर्दन माँ बाप की
वृद्धाश्रम में हो निवास ईश्वर का
और तनहा कटे बुढ़ापा
तब डर है मुझे
संस्कार हीन भारत से

जब डगर डगर पे खतरे हों
हर घर दुःशासन पसरें हों
तो लाज बचाती हर बिटिया
वर माँगे ना जनमे कोई बिटिया
तब डर है मुझे
आज़ाद घूमते दरिंदों से

जब जाती के नाम लुटे अधिकार
काबीलीयत पर है ग्रहण अपार
राजनीति में हुआ बवाल
आरक्षण की जब लगी आग
तब डर है मुझे
की जल ना जाए कोई मति होशियार

जब धर्म का रंग बदल गया
कर्तव्य से संप्रदाय हुआ
फ़िर चली मजहबी आँधी
और हिंदू मुस्लिम में फूट पड़ी
तब डर है मुझे
बँटते हुए भगवान से

हाँ डर है मुझे स्वार्थी इंसान से
हाँ डर है मुझे मानव में मरते इंसान से

हाँ डर है मुझे
हर रोज़ उठते तूफ़ान से
चूर होते सभी अरमान से
बेबसी के हालात से
बढ़ते हुए शैतान से

हाँ डर है मुझे मानवता के कब्रिस्तान से
हाँ डर है मुझे कलयुग के इस अहसास से
हाँ डर है मुझे हर पल हर क्षण अँधेरे में डूबते इस जहान से
हाँ डर है मुझे
डर है मुझे
डर है मुझे

                                        #आँचल 

डर की सीख


डर का कोई घर नही है
कब आता कोई खबर नही है
हर मन में छुपा होता है
सामने आने से डर डरता है
थोड़ी झिझक से थोड़ी हिचक से
हर कोई इसे छुपाता है
पर मत भूलना एक बात कभी
हर ढंग में हर जंग को
ये डर ही तो जिताता है
अगर रहना हो तुझे सावधान
तो डर का ज़रूर कर सामना
फ़िर साहस के तुझको पंख लगेंगे
हिम्मतों के पुल बँधेंगे
डर को भी गुरु बना लेना
फ़िर हर मुश्किल को हरा देना
डर से घबराने की कोई बात नही
डर को अपनाने की बस बात सही
दंभ का भी करता है विनाश यही
तो डरने से कभी मत चूकना
हर बार डर से जीतना
फ़िर विजय सिंघासन पे तू बैठना
डर से सदा बस सीखना

                          #आँचल 

Thursday, 12 April 2018

काश अभी थम जाए ये पल

काश अभी थम जाए ये पल
और ना आए कभी वो काला कल
जब पेड़ों की ना कोई छाँव होगी
बगिया में भौंरो की ना गूँज होगी
कोयल की ना कोई कूक होगी
ना होगी बागीचों में आम की चोरी
ना होगी धरा पे फूलों की रंगोली
जब होगी महामारी,अकाल,भुखमरी
नदियों में होगी जलाचर की बलि
कुदरत की छवि ना जब सुंदर होगी
भयानक जहान की सब घड़िया होगी
दूषित हवा में ना जब साँसें होंगी
और कयामत की चहूँ ओर झलकियां होगी
मनु के बोए काँटों की खिली बगिया होगी
काश कभी ना आए वो मंजर
समय ने बदली हो जब करवट भयंकर
काश अभी थम जाए ये पल
और ना आए कभी वो काला कल
काश अभी थम जाए ये पल
काश........
                           #आँचल

Wednesday, 11 April 2018

दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे

ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
कितने भी हो जखम
हँस के सह लेंगे हम
अगर हो मुश्किल घड़ी
फ़िर भी लड़ लेंगे हम
साथ लड़ने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
ये दूरी और फ़ासले
इनको तू ही नाप ले
तेरी यादों में आकर
हम साँस लें
याद करने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
तुझसे रूठेंगे हम
तुझको मनायेंगे हम
यूँही लड़ते झगड़ते
संग चल देंगे हम
साथ चलने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे 
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
सारे शिकवे शिकन
थोड़े हलके सितम
सब कुछ भुला देंगे हम
पर ना खफ़ा होंगे हम
माफ़ करने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती को तुम्ही संग निभाना रहे
हर जनम अपना ये याराना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे -3
                                  #आँचल

Tuesday, 10 April 2018

मेरा वालिदैन है

आप के कदमो तले पलाश काश बिछा दुँ मैं
आपकी इस ज़िंदगी को महकी बगिया बना दूँ मैं
आपके बहते अश्क को माथे अपने चढ़ा लूँ मैं
तू ही जन्नत
तू खुदा है
तुझमें ही सारा जहाँ है
हाथ सिर पे जो फेरे तू
तक़दीर अपनी पलट गयी
साथ मेरे जो हो ले तू
ये कायनात मेरी हुई
पैरों पे तेरे सिर झुका के
रब को भी आगे झुका लूँ
फ़ितरतें एसी है तेरी राख भी पारस हुआ है
आग भी आगे तेरे चाँद सा शीतल हुआ है
ए बादलों के बादशाह
ए इस जहाँ के शंहशाह
माफ़ कर मेरी भूल को जो ना मानूँ तेरे उसूल को
हक़ दूंगी ना पहले तुझे
मेरे रब की पहले इबादतें
मेरी माँ से पहली चाहतें
पिता से सारी राहतें
इनकी करू बस इबादतें
इनसे ही सारी रहमतें
मेरी बरकत इन्हीं की ज़हमतें
ए खुदा तुझसे बड़ा मेरा वालिदैन है
ए खुदा तुझसे बड़ा मेरा वालिदैन है -2
                                   #आँचल                       

Sunday, 8 April 2018

कब आओगे साँवरा



कब आओगे साँवरा -2

जस भौंरा ना गाए कुसुम बिन -2
ना नाचे मयूरा बिन बदरा
तस मोरा ज़ियरा भी ना लागे -2
ना लागे बिन श्याम के भजना

कब आओगे साँवरा -2

मैं पंछी तुम डारी मुरारी -2
पंख लगे तो गगन बिहारी
जस नभ वट पंछी को सहारा -2
एक श्याम पिया होई हमारा

कब आओगे साँवरा -2

तू निर्मोही प्रीति ना जाने -2
प्रेम के राही जगरीत ना माने
बिन रसमो की मैं तेरी लुगाई -2
मन से मन की भयी सगाई

कब आओगे साँवरा -2

मैं बिखरी बिखरी साँवरिया
तड़प में तेरे भयी बाँवरिया
नित बैठी रस्ता निहारूँ
श्याम रात दिन सब गिन डालूँ
नम अँखीया अब सूख चली हैं
क्यू लागत तोहे देर भली है
अब ना लो मोऱी प्रीत परीक्षा
दे दो प्रभु मोहे रहम की भिक्षा
जो तुम ना आओगे हरी
तोरे प्रेम में डूब के मैं आऊँगी
छोड़ के बंधन तन आऊँगी
छलकत नयन के भाव बुलाए
हिय भी बस एक राग ही गाए
कब आओगे साँवरा

कब आओगे साँवरा -3

                                          #आँचल 

Friday, 6 April 2018

तेरी उड़ान

भर लेगा तू एसी उड़ान
जो देखें ज़माने कई
बदलेगा जो लकीरों को
तू लिख दे कहानी नयी
ये हिम्मतों का दौर है
जग जीतने की होड़ है
रख ऊँचा जज़्बा,ईमान
जीतेगा तू सारा जहान
पंखों का तू मोहताज ना
सच्ची है तेरी साधना
खुद ही उमंग के पंख लगेंगे
सलामी को सिर लाखों झुकेंगे
सारा है तेरा आसमान
तेरी उड़ान की यही दास्तान
                        #आँचल

Saturday, 31 March 2018

फरिश्ता सी तनहाई

जब सुख की संग घड़िया थी
किस्मत की लकीरें बढ़िया थी
तब जीत को मुठ्ठी में लिए
हम ही ज़माने के सिकंदर थे
किसी बेखौफ बादशाह से
उस खुदा से भी ना डरते थे
आगे पीछे सब अपने थे
दुश्मन तक जी हजूरी करते थे
फ़िर बदली करवट समय ने ऐसे
डूबी सागर में नौंका जैसे
जब लूट लिया किस्मत ने सबकुछ
और दूर हुए सब रिश्ते नाते
तब मैं तनहा लड़ता अर्णव से
और बस तनहाई मेरा साथ निभाती
जब डूब गया  था सूरज
मन अँधीयारे के बस  में था
चमचमाते तारों का नभ तब उसने ही दिखाया था
कहती वो हौसला तू रख
ज़िंदगी का नया स्वाद तू चख
फ़िर सुनाया उसने डूबते सूरज का पैगाम
ना जाता तो कैसे मिलती जगमग तारों की शाम
कहता फ़िर आऊँगा मैं
जब डूब जाएगा तेरे अंदर का "मैं"
जब बेखौफ बादशाह हराएगा अपने अंदर का भय
तब तक तू थाम ले हाथ तनहाई का
वो राह दिखाएगी तुझको
उदधि की लहरों में तैरना सिखायेगी तुझको फ़िर बोली तनहाई सुन
उठती गिरती लहरों की धुन
जो जीवन की सच्चाई दिखाती
सुख दुख दोनों आती जाती
अब रख हौसला मन में अपने
फ़िर से पूरे होंगे सब सपने
बस लड़ जा जीवन की लहरों से
फ़िर मिलेगा तू सुख के भौंरो से
तब फरिश्ता सी लगी तनहाई
जिसने खुदा सी रहमत दिखायी
जब विपदा में अपने थे पराए
तब एक साथी बन आयी तनहाई
                   
                              #आँचल

Saturday, 24 March 2018

इन्कलाब ज़िंदाबाद ✊


इन्कलाब ज़िंदाबाद ✊


हम चीख कर गीत ये गायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
सींघो सी दहाड़ लगायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
दुश्मन का शीश झुकायेंगे
इन्क्लाब ज़िंदाबाद
मुश्किल से ना घबरायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
माटी की शान बढ़ायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
मौत के खौफ हरायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
कुर्बानी भी अपनाएंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
दुष्टों का लहू बहाएन्गे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
दुश्मन का दिल दहलायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
सीना तान के फ़िर चिल्लायेंगे
इन्कलाब ज़िंदाबाद
इन्कलाब ज़िंदाबाद
इन्कलाब ज़िंदाबाद
इन्कलाब ज़िंदाबाद
✊✊✊✊✊
                              #आँचल

Saturday, 3 February 2018

इंद्रधनुष काया

इंद्रधनुष-सी है तेरी काया
जहाँ सतरंगी चक्र समाया,
तू कर जाग्रत इन चक्रों को
फिर क्या तेरे आगे माया? 
चक्र लाल है ' मूलाधार '
क्षणभंगुर तन का ये आधार ,
कुंडलिनी यहाँ है विराजमान
अरोग्य,रचनात्मकता का है यहीं संचार।
दूजा नारंग में ' स्वाधीष्ठान '
भक्ति-प्रभुत्व का यहाँ बढ़ता मान।
अब आगे है ' मनिपुर ' का पीला
मानस-बल संग है यहाँ जीवन लीला।
हरा रंग ' अनाहत ' का है
दिव्य ज्ञान की चाहत का है ।
पंचम नील चक्र ' विशुद्ध ' है
ज़रा- मृत्यु के पाश से मुक्त है।
सुनो ओमकार का दिव्य नाद
अब जामुनी ' आज्ञा ' पर हुआ ध्यान ,
ये त्रिवेणी तीर्थ है त्रिदेव स्थान
जहाँ आत्म दर्शन का होता है ज्ञान।
संसार से परे है बैंगनी ' सहस्रार '
जहाँ परम शक्ति का मिलता है सार ,
अब नष्ट हुआ अज्ञानी अंधकार
और परब्रम्ह से हुआ है साक्षात्कार।
जब जाग्रत हुए सत रंग तुम्हारे
सौ सूर्य ऊर्जा तब तुझमें विराजे
इंद्रधनुषी आनंद तन पाए
आकर्षण से तेरे जग-मन हर्षाए
                                #आँचल

Saturday, 27 January 2018

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
हौले से मन के पंख फैलाऊँ
पंख फैलाकर मस्त उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

यूँही बहारों संग बह जाऊँ
रंगो से अपने सब मन छू जाऊँ
गमो को भुलाकर फ़िर से उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

मधुकर के संग नए रागों को गाऊँ
बागों में कुसुम संग मैं खिलखिलाऊँ
फ़िर रस को चुराकर मगन उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
   
                             #आँचल 

Friday, 26 January 2018

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

जिस देश की भूमि तिलक लगाती
चंदन सम लहू बलिदानों की
उसी देश में छीन जाती थाली
माटी के वीर किसानों की

जहाँ पूजी जाती है नारी
नदियों और पाषाणों में
वही तौल दी जाती है वो
 रसमो के बाज़ारों में

जिस देश का आज पहुँच गया
दुनिया के सभी ठिकानों पर
उस देश का कल भटक रहा
दो रोटी को चौराहों पर

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

माना भारत है देश महान
पर कमियों से ना रहो अंजान
जो बसती हो अगर भारत में जान
तो दे दो भारत को नयी पहचान

वरना फ़िर सवाल उठ जायेंगे
जो मन को ठेस पहुँचायेंगे
की.....

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

                            #आँचल 

Monday, 22 January 2018

माँ सरस्वती माँ शारदे

माँ सरस्वती माँ शारदे


माँ सरस्वती माँ शारदे
             जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

हंसासिनी,पद्मसिनी,सौदामिनी
वंदन करें तुझे रागिनी
माँ छेड़े वीणा के तान ऐसे
दुर्मति की हो काट जैसे
निज मन स्वरों को सुधार दे
माँ तू है वीणावादिनी

माँ सरस्वती माँ शारदे
             जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

मातेश्वरी,वागेश्वरी,ज्ञानेश्वरी
माया की तू परमेश्वरी
माँ जग में है अंधियार ऐसे
अमावस की हो रात जैसे
सोम ज्ञान का तू प्रकाश दे
माँ तू है जगदीश्वरी

माँ सरस्वती माँ शारदे
              जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

                           -आँचल 

Sunday, 21 January 2018

देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया
उत्सव उमंग के रंग है लाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब सुनी कलरव की हिंडोल नाद
और बही बसंत की मस्त बहार
तब नव उत्थान का समय है आया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब अलसी संग नाचे कुसुम
और सजी धरती जैसे सुंदर कुंज
तब सरसों ने ब्याह रचाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब पेड़ों पे पल्लव आए
और भौरों ने सोहर गाए
तब प्रकृति ने उत्सव मनाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया
उत्सव उमंग के रंग है लाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

                              -आँचल 

Friday, 19 January 2018

"बवाल" पे बवाल

"बवाल"पे बवाल

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
और हर सवाल पर होते बहुत बवाल
कुछ छोटे बवाल कुछ बड़े बवाल
कुछ हलके बवाल कुछ गहरे बवाल
हर रोज़ ही होते कई बवाल

जब सड़क पे दो गाड़ी भिड़ी
तब औकात पे उठे सवाल
और ट्रैफिक जाम का हुआ बवाल

एक जोड़ा आपस में झगड़ गया
और घरवालों तक पे उठे सवाल
लो तलाक का हुआ बवाल

दो दिल आपस में धड़क गए
और जाती-धर्म पे उठे सवाल
लो सुर्खिया बटोरता हुआ  बवाल

क्या तेरा क्या मेरा है
जब जायदाद पर उठे सवाल
तब कचहरी में माँ बाप को कोसता हुआ बवाल

जब धर्म - मज़हब टकरा गए
तब ईश्वर - अल्लाह पर उठे सवाल
और लोकतंत्र में हुआ बवाल

बाल श्रम,बलात्कार सब मुद्दे बने मजाक
और सम्मान पर उठे सवाल
तब पद्मावत पर हुआ बवाल

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
और हर सवाल पर होते बहुत बवाल

पर ठहरो,ज़रा सोचो
क्या वाक़ई हर सवाल पर होते हैं बवाल??

जब भगवान चले वृद्धाश्रम
तब संस्कारों पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब विवाह में हुई सौदेबाज़ी
तब रसमो पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब नन्हे कंधों ने ढोए बोझ हज़ार
तब मानवता पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब बिटिया बनी दरिंदों की शिकार
तब उसके चरित्र पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब भगवान से बड़ा हुआ इंसान
तब अंधे विश्वास पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब गरीब की रोटी खाते भ्रष्ट तमाम
तब प्रशासन पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब समाज का घटिया रूप दिखा
तब जन मन में उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
पर बस बकवास पर होते हैं बवाल
क्युंकि डर जाते हैं कई बवाल
समाज के सवालों के आगे
क्युंकि झुक जाते हैं कई बवाल
समाज की घटिया सोच के आगे

ये भारत है जनाब
यहाँ भले ना हो हर सवाल पे बवाल
पर होता रहेगा बवाल पे बवाल
लो कर डाला हमने भी "बवाल"पे बवाल

                                         #आँचल 

Monday, 15 January 2018

हर अलाव कुछ कहता है

हर अलाव कुछ कहता है

हर अलाव कुछ कहता है
जीवन को रूप नया देता है
जो सीखा इसने जलते जलते
बुझकर वो सीख सिखाता है

खुद जल कर ये राख हो जाता
पर राहतों की मुस्कान दे जाता
गैरों के सुख में सुख को ढूँढ़ो
जीने का ये बेहतर ढंग सिखाता

वर्तमान का बोध कराता
कर्म का अहम पाठ पढ़ाता
समय यही है कुछ कर जाने का
बुझ कर ये तन कुछ काम ना आता

क्षणभंगुर इस जग में बंदे
गुरूर कहाँ टिक पाता
गरमाहट दे जो त्याग,प्रेम की
वो मर कर अमर हो जाता

हर अलाव कुछ कहता है
जीवन को रूप नया देता है
जो सीखा इसने जलते जलते
बुझकर वो सीख सिखाता है

                               -आँचल