जेठ दुपहरी कागा बोले
सुन सूरज ए आग के गोले
जलता ये तन तप रहा बदन
क्यू फेंकता यू अंगार के ओले
काहे इतना रिसीयाए हो तुम
किसपर इतना गुस्साए हो तुम
क्या हुई किसी से तेरी लड़ाई
किसमें है इतनी हिम्मत आयी
क्या भूल हुई कुछ हम मुढी जीवों से
जो प्रचंड ताप से धरती झुलसाई
नदी नाले सब सिकुड़ गये
पोखर भी जल से बिछूड़ गये
हम प्यासे बस जल को भटक रहे
लिए सूखे कंठों को तड़प रहे
जो उड़े गगन पंख सहे तपन
हवा भी जैसे अग्नि प्रहार करे
ना थल पर कोई ठंडी छाँव मिले
ना जल से सुखी कोई गाँव मिले
इस जेठ तपिश में सूरज भइया
बस तेरी रोषआंच और प्यास मिले
अब छोड़ दे सारा गुस्सा मेरे भाई
और बाँध के सेहरा सिर पे बदरा का
कर ले बरखा संग प्रेम सगाई
फ़िर प्रेम बौछार जो होगी भौजी की
ये जेठ सावन हो जाएगा
मन भीगा खुशी में गाएगा
और तू भी ठंडा हो जाएगा
फ़िर धरती को ना झुलसाएगा
#आँचल
सुन सूरज ए आग के गोले
जलता ये तन तप रहा बदन
क्यू फेंकता यू अंगार के ओले
काहे इतना रिसीयाए हो तुम
किसपर इतना गुस्साए हो तुम
क्या हुई किसी से तेरी लड़ाई
किसमें है इतनी हिम्मत आयी
क्या भूल हुई कुछ हम मुढी जीवों से
जो प्रचंड ताप से धरती झुलसाई
नदी नाले सब सिकुड़ गये
पोखर भी जल से बिछूड़ गये
हम प्यासे बस जल को भटक रहे
लिए सूखे कंठों को तड़प रहे
जो उड़े गगन पंख सहे तपन
हवा भी जैसे अग्नि प्रहार करे
ना थल पर कोई ठंडी छाँव मिले
ना जल से सुखी कोई गाँव मिले
इस जेठ तपिश में सूरज भइया
बस तेरी रोषआंच और प्यास मिले
अब छोड़ दे सारा गुस्सा मेरे भाई
और बाँध के सेहरा सिर पे बदरा का
कर ले बरखा संग प्रेम सगाई
फ़िर प्रेम बौछार जो होगी भौजी की
ये जेठ सावन हो जाएगा
मन भीगा खुशी में गाएगा
और तू भी ठंडा हो जाएगा
फ़िर धरती को ना झुलसाएगा
#आँचल
वाह वाह लाजवाब उल्हाना विनती और हल सब एक तारतम्य लिए बहुत प्यारी रचना ।
ReplyDeleteसूरज भईया को काग का संदेश कि बदरी सी भौजाई लाओ भाई.…..
धन्यवाद दीदी जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबस A. C. में बैठे बैठे जब समझ नही आया क्या लिखूँ तभी कलपना में काग को कुछ यूँ बात करते सुन लिया बस काग के उन्ही शब्दों को कविता का रूप देने की कोशिश की थी
आपको पसंद आयी सार्थक हो गयी शुभ संध्या दीदी जी 🙇
उत्कृष्ट रचना 👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार anu didi
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
सोमवार 28 मई 2018 को प्रकाशनार्थ साप्ताहिक आयोजन हम-क़दम के शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां अंक (1046 वें अंक) में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
हार्दिक आभार हमारी रचना को चुनने के लिए 🙇
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-05-2018) को "मोह सभी का भंग" (चर्चा अंक-2984) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
हार्दिक आभार हमारी रचना को चुनने के लिए 🙇
Deleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबदली भौजाई!!!!
वाह!!!
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसादर नमन शुभ रात्रि
अरे वाह्ह्ह...बहुत बहुत सुंदर रचना आँचल...👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी
Deleteसादर नमन शुभ रात्रि
वाह, बहुत सुंदर ! अनूठी कल्पना !!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसादर नमन शुभ रात्रि
सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका स्वागत है हमारे blog पर
Deleteसादर नमन शुभ रात्रि
बहुत खूब रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सादर नमन शुभ रात्रि
Deleteप्रिय आँचल,बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अवलोकन सूरज दादा के समस्त व्यक्तित्व का किया है तुमने ।एक कवि की कल्पना कहाँ तक जाती है समझ नहीं आता। सूरज के समस्त क्रिया कलाप को समझकर एक सुन्दर शब्द चित्र रच दिया है।रचना वो भी तुम्हारी रचनात्मकता के शैशव काल की।पढकर बहुत अच्छा लगा। अपनी लेखनी को फिर से जगाओ और ब्लॉग पर सक्रिय हो जाओ।हार्दिक बधाई और स्नेहाशीष ❤❤
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