Friday, 4 May 2018

इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी


इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
ना चमकेगी बिंदिया तेरी ना तू अब चहकेगी 
सुनी सी इस देहली पर  तेरी रंगोली ना सजेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
कल तक जो सजी थी कलाई
आज ये कैसी आंधी आयी
खुली गाँठ और छूटा धागा
टूट गया रक्षा का वादा
वो आबरू तेरी लूट गया
बस बेरंग तन को छोड़ गया
और डूबे गम में वो सपने सलोने
जो देखे थे तेरे मेरे नैनो ने
सोचा था इस राखी तुझको
लाल चुनरिया ओढा दूँगा
डोली पर बिठा तुझको
तेरा राजकुमार दिला दूँगा
हाय अपंग सा बेबस मै
तेरी अर्थी को काँधा देता हूँ
जब सुन ना सका तेरी चीख़ो को
उस समय को बस मै रोता हूँ
काश करीब मै तेरे होता
तो सुन लेता तेरी पुकार
जब भी खतरो का साया होता
मै बचा लेता तुझे हरबार
इसी काश से कोसता खुद को
एक आस को मन में जगाता हूँ
इंतजार में तेरे बहना
राखी की थाल सजाता हूँ
उस मेहंदी को अब भी लाता हूँ
जो रच भी ना सकेगी
हर राखी तुझको बुलाता हूँ
पर तू आ भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी

                                            #आँचल 

13 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी बिलकुल आऊँगी
      धन्यवाद शुभ रात्रि

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  2. बहुत मर्मस्पर्शी...!!!

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    1. अति आभार आदरणीय शुभा जी

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  3. बेहद मर्मस्पर्शी हृदय को छूनेवाली रचना है आँचल जी शुभकामनाये

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    1. हृदय से आभार supriya जी
      शुभ दिवस

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  4. एक तस्वीर खिंची है शब्दों ने जिसमे प्यार भी है,क्रोध भी है,पछतावा भी है,और आँखों में नमी भी है.

    उम्दा रचना.

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    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार आदरणीय
      शुभ दिवस

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  5. बेहद मर्मस्पर्शी दिल को छूती रचना....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

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  6. पीड़ा!! मरनांतक पीड़ा निशब्द रचना।

    जब चीख कोई सुनता होगा
    अपना सर धुनता होगा
    हे विधाना कैसे लेख लिखे
    भाई मजबूर रोता होगा।

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  7. प्रिय आंचल -- आपने अपने शब्दों में एक ऐसे भाई के पछतावे को शब्द दिए जो अपनी बहन के लिए कुछ ना कर सजा | बहुत ही मर्मान्तक शब्द और भाव तो मन को छलनी करने वाले हैं | ऐसी अभागी बहनों के क्या पिटा क्या भाई इसी पछतावे में जलते जीवन गुजार देते होगें | बहुत ही जिवंत रचना | आपकी लेखनी के लिए दुआ है दूसरों की करुणा को शब्द देने की क्षमता कभी कम ना हो | सस्नेह -

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  8. बहुत सार्थक और शब्द लाजवाब।

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