कोई दुनिया भर के श्रृंगार तले
आइने को धोका देता है
सब रंगो में रंग कर भी
जाने किस रंग को रोता है
कोई विधवा सा सब कुछ खो कर
बिन रंगों के जीता है
फिर भी ज़िंदगी से अपनी
शिकवा नहीं कोई रखता है
कोई अंधा समझ दुनिया को
हर पल ठगी बस करता है
पर भूल गया कि कोई ऊपर से
नज़रें बस उस पर रखता है
कोई जाल बिछा कर अपनेपन का
लिलार तिलक से सजाता है
फ़िर ढोंगी वही समय देखकर
कालिख मुँह पर मल जाता है
ऐसे ही बहरूपी से लाखों
कल्युग है अपना भरा पड़ा
झूठ,लोभ और बैर कथा से
है इसके पाप का घड़ा भरा
पर डर मत तू ए बंदे तबतक
जबतक तू सच के साथ खड़ा
जो साथ निभाए दृढ़ता से सच का
भगवन का उसको साथ मिला
-आँचल
सत्य सटीक कहीं बात सब नीक लगी मन को भारी
ReplyDeleteजब सब खत्म होगा तब क्या कर लेंगे बनवारी
समय रहते हुए यदि सत्य उजागर ना होगा
सूखे पेड़ पानी देने से सखी री मेरी क्या होगा !
बहुत खूब कहा आपने दीदी जी
Deleteअगर समय रहते हमने सत्य की डोर नही थामी तो पतन से बनवारी भी नही बचा पायेंगे
अपनी मनमोहक टिप्पणी से हमारा उत्साह बढ़ाने हेतु हृदयतल से आभार प्रिय इंदिरा दीदी सादर नमन शुभ दिवस 🙇
जग हुवा बहरुपिया कैसे हो निस्तार
ReplyDeleteखाल भेड की ओढ के बैठे धर्म के ठेके दार।
वाह वाह आंचल बहन
पढृ कर मजा आ गया लाजवाब रचना पुरे युग का खाका खींच दिया आपने,, लयबद्धता भी रस भी । अप्रतिम काव्य।
"जग हुवा बहरुपिया कैसे हो निस्तार
Deleteखाल भेड की ओढ के बैठे धर्म के ठेके दार"
वाह दीदी जी हमने अपनी पूरी कविता के ज़रिये जो कहने की कोशिश की उसे आपने बस दो पंक्तियों में ही कितनों सुंदरता से कह डाला 👌
बस कोशिश थी की बहरूपी कलयुग का असली रूप दिखा सकूँ अपनी रचना के ज़रिये आपको पसंद आयी सार्थक हो गयी
इस सुंदर मनमोहक टिप्पणी से हमारा उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
जीवन की विसंगतियों को उभारती विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति जो हमारे अंतर्मन में सकारात्मकता के बीज रोपती है. सुन्दर रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.
ReplyDeleteहमारे blog पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय सर 🙇रचना को आप जैसे महान लेखक की सराहना प्राप्त होना तो सौभाग्य है रचना का। आपके द्वारा इस उत्साहवर्धक टिप्पणी और शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसादर नमन शुभ दिवस 🙇
वाह! सार्थक सन्देश से ओत प्रोत कविता। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteआदरणीय सर हमारे blog पर आपका हार्दिक स्वागत है 🙇
Deleteआप जैसे महान लेखक की सराहना भरी टिप्पणी रचना को प्राप्त हो ये तो सौभाग्य की बात है हमारे लिए।लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद आपका
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-06-2018) को "मत सीख यहाँ पर सिखलाओ" (चर्चा अंक-2991) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया हमे चुनने के लिए
Deleteसादर नमन शुभ दिवस 🙇
बहुत सुंदर रचना आँचल...संदेशात्मक, विचारणीय सारगर्भित पंक्तियां है।
ReplyDeleteआदरणीया श्वेता दीदी रचना को आपने अपने सराहना भरे शब्दों से जो मान और स्नेह देकर हमारा उत्साह बढ़ाया है उसके लिए हृदयतल से आपका हार्दिक आभार 🙇
Deleteसादर नमन शुभ दिवस 🙇
सुंदर रचना.. सत्य को उजागर करती रचना।
ReplyDeleteआपकी इस मनमोहक सराहना भरी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढ़ाने हेतु आपका हृदयतल से हार्दिक आभार आदरणीया पम्मी जी 🙇
Deleteसादर नमन शुभ दिवस
आदरणीया सखी यशोदा दीदी बहुत बहुत धन्यवाद हमारी रचना को चुनने के लिए
ReplyDeleteबिलकुल आऊँगी
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
जय माँ हाटेशवरी🙇
ReplyDeleteरचना को इतना मान देकर तो आपने इसे फ़र्श से अर्श पर पहुँचा दिया
बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय
और हलचल में इसे पुनः स्थान देने के लिए भी हार्दिक आभार 🙇
हम बेशक मौजूद रहेंगे
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकलयुग के सत्य से परिचय कराती रचना👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अन्नु दीदी अपनी मनमोहक टिप्पणी के ज़रिये सदा हमारे विचारों का समर्थन करने के लिए और अपना स्नेह आशीष बनाए रखने के लिए
ReplyDeleteसादर नमन शुभ दिवस 🙇
वाह ! बहुत सुंदर, सार्थक, शिक्षाप्रद रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी
Deleteबस सब आप सब का स्नेह आशीष है
मनमोहक टिप्पणी से उत्साह बढ़ाने हेतु पुनः आभार
सादर नमन शुभ दिवस
वाह!!बहुत खूबसूरती के साथ सत्य को उजागर किया है आँचल जी अपने ..!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया शुभा जी
Deleteबस हम तो कोशिश करते हैं अपने विचारों को पंक्तिबद्ध करने का आप सबकी सराहना इसे सफल बना देती है
पुनः आभार
सादर नमन शुभ दिवस
प्रिय आँचल -- तीन लिंकों की शोभा बनती हुई आपकी ये सार्थक सशक्त रचना बहुत ही सादगी के साथ अपनी बात कहती है | कलयुग की विसंगतियों पर सही लिखा आपने | सच्चाई को उजागर करना ही सच्चा कविधर्म हैं | मेरी शुभकामनाये स्वीकार हों | साथ में मेरा प्यार |
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी पता नही कैसे ये तीन लिंको के योग्य बन गयी वरना हमे तो लिखते वक़्त बिलकुल अंदाज़ा नही था की ये एक लिंक में भी जाने योग्य है
Deleteसब आपका स्नेह आशीर्वाद है जो कलजुग के असल रूप को हम अपनी कविता में उतार पाए
आपकी शुभकामनाओं के साथ आपके स्नेह आशीष के लिए हम आपके हार्दिक आभारी हैं
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु
सादर नमन शुभ दिवस
एक न एक दिन झूठ-फरेब का भांडा जरूर फूटता है। सबकुछ यही भोग के जाना होता है अच्छे बुरे कर्म
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
कोई जाल बिछा कर अपनेपन का
ReplyDeleteलिलार तिलक से सजाता है
फ़िर ढोंगी वही समय देखकर
कालिख मुँह पर मल जाता है////
प्रिय आँचल तुम्हारी रचना एक बार फिर से पढकर अच्छा लगा।पुराने कमेंट दिल को भावुक कर गये।खुश रहो ❤