Tuesday, 17 December 2019

ये क्षण का आक्रोश है


क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है। -२

हैं लाख सी जल रही 
अधिकारों की पोथियाँ 
और द्रौपदी भस्म हुई 
सिक गयी सियासी रोटियाँ,
जब खो बैठे धृतराष्ट विवेक 
तब मौन हुए पांडव अनेक 
क्या सकल सजगता लोप है?
ये क्षण का बस रोष है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।

है लाक्षागृह में लपट उठी,
फिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।

हे याज्ञसेनी अब आग धरो,
जागो पांडव,हुंकार भरो,
हो प्रखर मकर की काट बनो,
दिनकर की पंक्ति याद करो,
सिंहासन पर अपना अधिकार करो,
मत सहो,अब रण को कूच करो।
क्या बाकी अब भी कोई क्लेश है?
ये क्षण क्रांति पर ओस है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।
ये क्षण का आक्रोश है.......

#आँचल 

अन्नु दीदी की कहानी "ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य "

आप सभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम। आज बड़े ही हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही आप सबसे ये साझा करते हुए कि आदरणीया अनीता लागुरी (अन्नु ) दीदी जी की कहानी " ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य " Amazon Kindle के pen to publish प्रतियोगिता में शामिल हो गयी है। नीचे दिए गए लिन्क् से आप सब भी दीदी जी की इस पुस्तक को डाउनलोड कर पढ़े और अपनी शुभकामनाएँ और आशीष से दीदी को अनुग्रहीत करें।
https://www.amazon.in/dp/B082R17T6R/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_fKo9DbBXTRP5D

हमने भी कल इस रोचक कहानी का आनंद लिया। इसे पढ़कर जो हमारे विचार थे वो आगे आप सबसे साझा करती हूँ।



शिबु और विभु के ईर्द गिर्द घूमती आदरणीया अनीता दीदी जी द्वारा रचित इस कहानी ' ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य ' ने हर भाव,रस को स्वयं में समेटकर पाठकों को निश्चित रूप से हर घटना से जोड़ लिया होगा। जहाँ अपने निजी जीवन की विषम परिस्थितियों से झूझ्ते हुए भी एक अंजान की आगे बढ़कर सहायता करने वाले विभु की नेकी मन को छूती है तो वही एक ब्रोकेन फोन में विभु के लिए छोड़े गए तीन वॉयस मेसेज के ज़रिये विभु का जीवन जीने को मजबूर शिबु  की दरियादिली और भावुकता पाठकों के हृदय में निश्चित ही स्थान बना रही होगी।

जहाँ एक ओर चायवाले चाचा और चाची का शिबु के संग सुंदर नाता अपनत्व के भाव से कहानी को सुखद बना रहा है तो वही ब्रोकेन फोन में पड़े तीनों वॉयस मेसेज कहानी को रोचक बनाते हुए पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न कर आगे पढ़ने को उत्सुक कर रहे हैं।

शिबु के अतीत का वो सुंदर किस्सा जिसमें नींबू, मिर्च संग मकई का स्वाद और सुधा संग प्रेम की मिठास है और वर्तमान का वो अजीब हिस्सा जिसमें विभु-विभु करती एक अंजान लड़की की मासूमियत और निश्छल प्रेम है जो खुद शिबु को विभु हो जाने पर मजबूर कर देती है ने बड़ी सहजता से पाठक को भी भावों में बाँध दिया।
वास्तव में हमने इसे बस पढ़ा नही बल्कि चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घटते देखा है अतः हम यह कह सकते हैं कि इस कहानी का हर पाठक इसमें निहित भावों को जीते हुए इससे जुड़ गया होगा और यही इस कहानी की सार्थकता है।

आदरणीया अनीता दीदी जी अपनी  रचनाओं में संवेदनाओं का बड़ी सहजता और सुंदरता से प्रयोग करते हुए मानवीय मूल्यों को स्थापित करना बखूबी जानती हैं। इस कहानी ' ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य ' में भी एक ब्रोकेन फोन से जुड़े दो किरदार विभु और शिबु को निमित्त बनाकर मानव चरित्र के सुंदर गुण प्रेम और करुणा की सुंदर झलक देते हुए अपने लेखिका होने के धर्म का बखूबी निर्वाह किया है।

बतौर लेखिका आदरणीया अनीता दीदी जी जहाँ विभु की माँ के रूप में एक माँ और पत्नी की अपने बेटे और पति के प्रति चिंता और हर परिस्थिति में घर-परिवार को संभाल कर रख सकने की एक नारी की सार्थक क्षमता को दर्शाती हैं। तो वहीं  आधुनिक युग में फेसबुक वगेरह पर हो जाने वाले प्रेम प्रसंग का भी सुंदर वर्णन कर रही हैं।

बड़े करीने से जब तीसरे वॉयस मेसेज में एक बच्चे की अपने सड़क दुर्घटना में घायल पिता के प्रति व्याकुलता  को प्रस्तुत किया तब मनुज्ता के गिरते स्तर को प्रस्तुत करते हुए यह भी दर्शाया कि किस तरह आज लोग सहायता के लिए आगे आने से हिचकिचाते हैं किंतु किसी को परेशानी में देख मोबाइल उठा वीडियो बनाने लगते हैं। वही दूसरी ओर कुछ अंग्रेजी शब्दों और गूगल सर्च का जिक्र आधुनिक युग के पाठकों के लिए कहानी को और भी रोचक बना रहा।

कहानी के शीर्षक मात्र से इसे पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गयी थी और जैसे जैसे कहानी पढ़ते गए जिज्ञासा बढ़ती गयी। जितना सुंदर कहानी का आरंभ उतना ही रोचक इसका अंत भी है। यदि देखा जाए तो इस कहानी में मुख्य भूमिका में 'ब्रोकेन फोन ' ही है जिसने एक दिन में ही शिबु को विभु की ज़िंदगी सौंप दी।

इस कहानी अब हम और क्या ही सराहना करें? बस आदरणीया दीदी जी की कल्पना शक्ति और दीदी जी के कलम की रचनात्मकता को नमन कर सकती हूँ। साथ ही इस सुंदर और रोचक कहानी हेतु आदरणीया दीदी जी को ढेरों शुभकामनाओं संग हार्दिक बधाई देती हूँ।
सादर प्रणाम 🙏
- आँचल 

Monday, 18 November 2019

जो मौन है वो बुद्ध है


करम गति को चल रहा
परम गति को बढ़ रहा
कुसंगति को तज रहा
सुसंगति से सज रहा
वो लुब्ध,क्षुब्ध मुक्त है
प्रबुद्ध है वो शुद्ध है
चैतन्य का स्वरूप है
जो मौन है वो बुद्ध है
जो मौन है वो बुद्ध है

मंथन मति का कर रहा
भंजन रुचि का हो रहा
मकर प्रथा से लड़ रहा
प्रखर प्रभा को बढ़ रहा
वो अचल सकल से दृष्ट है
अंतः करुण प्रभुत्व है
आनंद का स्वरूप है
जो मौन है वो बुद्ध है
जो मौन है वो बुद्ध है

#आँचल 

Saturday, 16 November 2019

जीवंत बनारस


बनारस वो स्थान है जहाँ भगवत प्राप्ति अर्थात् भक्ति,ज्ञान,वैराग्य,त्याग की प्राप्ति होती है। इसके घाट घाट में ज्ञान की अमृत धारा बहती है और गली गली में भक्ति की गूँज। यहाँ जीवन की मस्ती का रस भी है और यही जीवन कश्ती का तट भी है। यहाँ हर मोड़ पर एक शिवाला और हर कदम पर एक पान वाला मिल ही जाएगा। बनारस के हर कण की एक कहानी है। ये जितना पुराना है उतना ही नया है,जितना अल्हड़ है उतना ही सुसंस्कृत भी। ये स्वंय एक इतिहास है,सुंदर वर्तमान है और उज्ज्वल भविष्य भी। कला और साहित्य की पृष्ठ भूमि है ये और सियासत का मैदान भी। यहाँ की चाय चर्चा में रहती और गाय भौकाल में। ये स्वंय गुरु है शायद इसलिए यहाँ कोई चेला नही बस मेला है निर्मलता का,निरंतरता का,रीत,गीत संगीत का शक्ति का,भक्ति का और मुक्ति का। इसका अजब रंग,ढंग इसकी थाती है तो काशी विश्वनाथ और बी.एच.यू. इसकी ख्याति। ये सैलानियों का हुजूम है तो संध्या आरती की धूम। ये बुद्ध सा प्रबुद्ध है शुद्ध है और स्वंय में जीवंत है इसलिए जो यहाँ आता है वो यहाँ घूमता नही है वो इसे महसूस करते हुए इसे जीता है और स्वंय के भीतर इसे बसाता है और इसका आदी हो जाता है।
#आँचल


चित्र - साभार 'बनारसी मस्ती' फेसबुक पेज 

Thursday, 14 November 2019

अच्छाई का इनाम



लाल रंग का ऊनी स्वेटर पहन आज शारदा खूब खुशी से इधर उधर झूम रही है। बहुत समय बाद उसे आज नया स्वेटर जो मिला है। दरसल शारदा की माँ लता लोगों के घर खाना बनाने का काम करती है तो जो कुछ उसे रोज़ी मिलती है वो शारदा की स्कूल फीस और घर खर्च में लग जाती है। लता बचत कम होने के कारण लोगों के घर से जो पुराने पहने हुए कपड़े मिलते उसी को नया बता शारदा को दे देती और शारदा भी नए -पुराने में अंतर जानते हुए भी माँ की मजबूरी समझ उसी में खुश हो जाती। इसबार बचत कुछ ठीक होने के कारण लता बाजार से ऊन ले आयी जिससे शारदा की दादी जी ने बड़े प्यार से एक लाल सुंदर स्वेटर बुना और उसपर एक पीली चिड़िया का चित्र और शारदा का नाम भी लिख दिया।शारदा भाग कर दादी जी के पास गई और उनके गले लगकर उन्हें धन्यवाद करते हुए कहा,"दादी जी आज तो मैं ये स्वेटर बिल्कुल नही उतारूँगी और यही पहनकर अपने दोस्तों के साथ खेलने जाऊँगी और उन सबको दिखाऊँगी कि आपने मेरे लिए कितना सुंदर स्वेटर बुना है।"ऐसा कहकर शारदा दादी जी की गोदी से उतरी  और भागकर अपने दोस्तों के साथ खेलने चली गयी। 

शाम को जब शारदा घर लौट रही थी तो उसने ठंड में ठिठुरते हुए अपनी ही उम्र के एक बच्चे को देखा जिसने बस एक फटी सी सूती शर्ट पहन रखी थी और ठंड से बचने के लिए उसके पास कोई भी गरम कपड़ा नही था। शारदा का कोमल मन उस बच्चे की चिंता में डूब गया और वह सोचने लगी कि अगर इसे तुरंत कुछ गरम पहनने को नही मिला तो इतनी ठंड में इसकी तबीयत बिगड़ जायेगी और ठिठुरते हुए अगर ये मर.... नही नही। ऐसा सोच शारदा ने इधर उधर देखा फिर ध्यान अपने लाल स्वेटर पर गया तो शारदा पल भर के लिए रुकी पर फिर बिना कुछ सोचे अपना वही नया स्वेटर जिसे पहन वो खुशी से झूम रही थी उतारकर हलकी सी मुसकान के साथ उस बच्चे को दे दिया और घर लौट आयी।

जब लता ने शारदा को बिना स्वेटर घर आते देखा तो पूछने लगी,"शारदा तुम्हारा नया स्वेटर कहाँ गया? तुम तो वही पहनकर खेलने गयी थी ना?" माँ के प्रश्नों को सुनती शारदा इस डर से चुप खड़ी थी   कि शायद माँ सच जानकार बहुत नाराज़ होंगी पर जब लता ने दुबारा पूछा तो दादी जी ने प्यार से शारदा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,"बिटिया जो भी सच है वो बोलो,सच कहने से कभी मत डरना।" दादी जी की बात मानकर शारदा ने हिम्मत से माँ को सब सच बताया और माफ़ी माँगते हुए कहने लगी," मैं जानती हूँ माँ आप मुझसे बहुत नाराज़ हो, कितनी मेहनत के बाद आप मेरे लिए ऊन लेकर आयी होगी और मैंने.... पर माँ उस बच्चे को मेरे स्वेटर की ज्य्दा ज़रूरत थी। मेरे पास तो और भी पुराने गरम कपड़े पड़े हैं पर उसके पास कुछ भी नही था।" 

शारदा की बातें सुन लता की आँखों से गर्व आँसू बन छलकने लगे। लता शारदा के गालों पर हाथ रख कहने लगी,"पगली हो तुम, अपनी प्यारी बच्ची पर भला मैं क्यू नाराज़ होने लगीं? हाँ अगर तुम सच ना कहती तो शायद मैं नाराज़ हो जातीं।" 
बस फिर लता ने शारदा को गले लगाते हुए कहा,"मुझे गर्व है तुम पर और आज तो तुम्हें तुम्हारी इस अच्छाई का इनाम भी मिलेगा।" इतना कहकर लता फटाफट रसोईघर में गई और शारदा की मनपसंद खीर बनाने लगी।

Monday, 4 November 2019

कौआ जी और तोता जी




छत पर बैठे थे कौआ जी 
और कमरा छत का खुला हुआ
जी कौआ जी का डोल गया 
भीतर चुपके से प्रवेश हुआ   
जो देखा भीतर कोई नही 
तो मस्ती थोड़ी सूझ गयी 
इधर उधर गर्दन मटकाते 
फुदक फुदक कर कमरा नापें 
सामानों पर चोंच को मारें  
पंखे पर झूलें,धूम मचायें
दर्पण में देख देख इतरायें 
ज़ोर से गाए काँए काँए 
तभी पिंजरे से बोले तोता जी 
चुप करिए काले कौआ जी 
क्यू इतना चिल्लाते हैं
बेसुरा कितना गाते हैं
रंग आपका काला कितना 
क्या इस पर इतराना इतना 
देखिए मुझे मैं हरा भरा 
सुंदर कितना दिखता हूँ 
मिर्ची जो रोज़ मैं खाता हूँ 
मिट्ठू मिट्ठू गाता हूँ 
कुछ रुक कर बोले कौआ जी 
हे प्यारे तोता भइया जी 
आप होकर सुंदर पिंजरे में बैठे 
मैं मस्त गगन में उड़ता हूँ 
सच है सुर मेरा बहुत बुरा 
पर गीत खुशी के गाता हूँ 
हूँ काला पर दिलवाला हूँ 
इसीलिए इतराता हूँ 
यूँ कह दो चोंच पिंजरे पर मारे
तो तोता जी आज़ाद हुए 
करो क्षमा हे कौआ भइया जी 
हम तो कितने नादान रहे 
रूप,रंग के चक्कर में 
मन की सुंदरता भूल गये 
तो हँस कर बोले कौआ जी 
भूलिए भूल को भइया जी 
अब प्रेम से दोनों गले लगें
और आसमान में फूर्र उड़े 
#आँचल 

Friday, 18 October 2019

सुख क्या है?

दिनांक 
06/09/2017


सुख क्या है?
इस भौतिक संसार में सबके लिये भिन्न है सुख की परिभाषा ।  कोई धन,कोई वैभव, कोई विश्राम को सुख कहता है  पर ये सब कुछ पल के सुख हैं,अस्थिर हैं।  सच्चा सुख क्या है ये कुछ ही मनुष्य समझते हैं,सच्चा सुख इन नश्वर पदार्थों से परे है। जो  परमानंद की स्थिति में इंद्रियों को अनुभव होता है वही दिव्य सुख है।

वास्तव में सुख या दुख का अनुभव हमारी चेतना करती है ये भौतिक शरीर नहीं,यथार्थ सुख व आनंद प्राप्त करने के लिये हमे इन भौतिक इंद्रियों से परे जाना होगा,अपने अंतःकरण में परमात्मा में चित् को एकाग्र करके,अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके सुख का अनुभव करना होगा।

वास्तविक सुख प्राप्त करने हेतु हमे कृष्ण भावनामृत की ओर बढ़ना होगा। जैसे जैसे हम इस ओर बढ़ेंगे हम आध्यात्मिक आनंद को सहज रूप से अनुभव करने लगेंगे और इस झूठे भौतिक सुख से विरक्त होने लगेंगे,और इस सुख का अनुभव करने के पश्चात साधक के लिये कोई और सुख बड़ा नहीं होगा, फिर वो बड़े से बड़े दुख से भी विचलित नहीं होगा, फिर उसके लिये इस भौतिक जगत की बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी तुच्छ है।

                  जय श्री हरी

मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी

दिनांक - 02/09/2017


मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी,
तुम जानत मोरे मन की वाणी

गिरधर गिरधर तोहे पुकारूँ,
नारायण तोरा रस्ता निहारूँ,

लोग कहें मैं भयी बाँवरी,
तुम्हरे दरस को अधीर श्याम री,

तन होगा मोरा मिथ्या जगत में,
मन तो मोरा श्याम भजन में,

जग से नाता स्वार्थ-मोल का,
तुम से नाता विरह-प्रेम का,

तुझमें ही मैं रम जाऊँगी,
तुमसे दूर ना रह पाऊँगी,

मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी,
तुम जानत मोरे मन की वाणी।

                                   #आँचल 

Monday, 14 October 2019

अंधविश्वास

होम,हवन,यज्ञ,पूजा, ये सब दरसल एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें प्रयोग आने वाली सामग्री वातावरण को स्वच्छ करती हैं,कीटाणु से लड़ती है पर इसका आध्यात्म या किसी विशेष प्रकार की शक्ति से कोई संबंध नही जो हमारी या किसी वस्तु की रक्षा कर सके।
अब ज़रा विचार कीजिए नींबू की खटास,मिर्ची का तीखापन  या उसके अन्य गुण भला घर या गाड़ी की क्या रक्षा करने वाले हैं?
अफ़सोस...जो देश उस गीता के आगे नतमस्तक है जिसमें अर्जुन ने साक्षात भगवान से तर्क किया और जब तक तर्क मन में बैठ नही गया तब तक उन्होंने भगवान की बात को भी स्वीकार ना किया उसी देश में लोग तर्क हीन होकर किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं और अंधविश्वास के अँधेरे में भटक जाते हैं। फिर शुरूआत नींबू मिर्चें से होती है और तांत्रिक,ओझा तक जाती है फ़िर उन बाबाओं तक जो जेल में बैठे हैं,नवरात्र में सुई चुभो कर स्वयं को पीड़ा देकर माँ से मन्नत माँगना,तालाब में लोटना,झाड़ फूँक,भूत प्रेत उफ्फ......सोच कर डर लगता है। यदि इतना विश्वास भगवान पर किया होता तो शायद प्रकट हो गए होते पर हम तो उन्हें भी रिश्वत दे आते हैं। एक लोटा नही टंकी भर भरकर दूध चढ़ाते हैं, फल,फूल, सोना, चांदी और ना जाने क्या क्या पर यही फल,दूध किसी गरीब को देने में हिचक जाते हैं। अभी परसो ही शरद पूर्णिमा थी पर पता नही खीर खाकर कितने लोग अमर हो गए? नहीं.... हम यहाँ परंपरा और संस्कृति का विरोध नही कर रहे किंतु ये जानने का प्रयास कर रहे कि ये परंपरा और संस्कृति तर्क संगत क्यू नहीं हो सकती? क्यू हम किसी बात को बिना परखे सहजता से स्वीकार ले? क्यू विवेक का इस्तेमाल ना करें? क्यू अंधविश्वास के अँधेरे की ओर बढ़े?

इन प्रश्नों के बीच एक प्रश्न और उठ रहा है कि अचानक इसका विरोध क्यू? हमारे आदरणीय रक्षा मंत्री जी ने शस्त्र पूजा के तर्ज पर जो किया उसपर विवाद क्यू?
अब ये दोहराने की आवश्यकता नही कि  अंधश्रद्धा में अंधेरा निहित है और सत्ताधिकारी का धर्म राष्ट्र को उन्नति के प्रकाश की ओर ले जाना है और फिर इनके प्रत्येक आचरण का पूर्ण प्रभाव राष्ट्र पर भी पड़ता है इस हेतु प्रश्न उठना स्वाभाविक है। अब यदि राफेल की रक्षा ही चिंता थी तो हाथ जोड़ मन ही मन ईश्वर को नमन करना पर्याप्त था क्युन्की प्रारब्ध से अधिक तो कुछ मिल नही सकता। पर यदि इतनी समझ बाकी होती हमारे देश में तो हम आज भी विश्वगुरु ना होते। आज तो बस यही आलम है कि बच्चे को छींक आयी तो नज़र लग गयी,गाय दूध देना बंद करे तो जादू टोना और घर में अशांति तो भूत प्रेत। अब तो लगता है कि वाइरस से बचने के लिए भी मोबाइल में नींबू मिर्चें का एंटीवाइरस डाउनलोड करना होगा।
खैर.... अंधविश्वास की जड़े बहुत मजबूत है निरंतर प्रयास ही इस पर प्रहार कर सकता है। अब तो यही कामना है कि विश्वास का दीपक शीघ्र सूर्य बन उदित हो।
सादर नमन 🙏
सुप्रभात
#आँचल

Wednesday, 9 October 2019

तुम कहाँ गए बापू



तुम कहाँ गए बापू
देश तेरा भटक रहा -2
ये बाढ़ नही,है आँसु
जो नभ से छलक रहा -2

आज़ादी हुई कितनी पुरानी
पर भारत की वही कहानी -2
रोता ठगा हुआ किसान
सूली पर लटक रहा
तुम कहाँ गए बापू....

कितने सितम सहे तुमने
कितने लाल शहीद हुए -2
इस वतन पे चोट करी उसने
जो सत्ता के मुरीद हुए
लिए सांस्कृतियों की थाती
सब जग में पहुँच रही ख्याति
हर तर्ज पर मुल्क गतिमान
धर्म पर अटक रहा
तुम कहाँ गए बापू....

सत्य,अहिंसा वृद्ध हो गए
झूठ और हिंसा धर्म हुए -2
सत्याग्रह भी कहीं खो गए
लिंचिंग में कितने प्राण गए
वो स्वावलम्बी चरखा तेरा
छूटा सूत का स्वदेशी फेरा
सिर ढके विदेशी परिधान
देश तेरा बहक रहा
तुम कहाँ गए बापू....

रिश्वत की दर पर महल खड़े
और पेट गरीब के रोज़ कटे -2
तड़पे भूख से कहीं कोई लाल
तेरी याद में सिसक रहा
तुम कहाँ गए बापू....

तुम कहाँ गए बापू
देश तेरा भटक रहा
ये बाढ़ नही,है आँसु
जो नभ से छलक रहा -2

तुम कहाँ गए बापू....

#आँचल 

Tuesday, 1 October 2019

जो पंख लगे तो उड़ जाऊँ

आज मेरी एक प्यारी सी दोस्त ने उत्साहवर्धन हेतु मुझसे अंग्रेजी का एक वाक्य कहा ' Fly bird you are born with wings' इसे पढ़कर हम उसे आभार व्यक्त करने जा ही रहे थे कि यकायक मेरे मन में एक भाव उठा। अब ये भाव कितना उचित है और कितना अनुचित ये आप गुणीजन बेहतर समझेंगे।



जो पंख लगे तो उड़ जाऊँ
दंभी अंबर के आलिंगन को
जो बढ़ूँ तो अंतर बढ़ाता है
प्रभुता को अपने इतराता है
क्यू छोड़ जाऊँ इस धरती को
जो गिरते को भी अपनाती हैं
ज़ुल्मी हो या धर्मी
सबको अंतर में अपने बसाती है
चलो कहती हो तो उड़ जाऊँगी
एक नही कई बार उड़ूँगी
बस अंबर को इतना सिखलाने
है महान वही जो झुकना जाने
जो जाने बिन माँगे बस देना
प्रेम सुधा में सबको भिगोना
तज मान,ईश हो जाना
फिर भी सम धरा
भाव सेवा का रखना
#आँचल

Wednesday, 18 September 2019

अभावों का भाव



रिश्तों की डोर वो क्या जाने
जिसने बिखरे रिश्तों को नही देखा
यारों का शोर वो क्या जाने
जिसने सूनी शामों को नही देखा
नही देखी हो जिसने रातें जागकर
वो दीदार सुबह का क्या जाने
क्या जाने वो जश्न जीत का
कभी हार को जिसने नही देखा
नही देखा जिसने माँ का आँचल
फटकार पिता की नही देखा
क्या होते हैं माँ-बाप वो जाने
जिसने हाथ सिर पर इनका नही देखा
नही देखे जिसने खेल खिलौने
बचपन का मोल वही जाने
एक रोटी का मोल वो क्या जाने
कभी खाली थाली को जिसने नही देखा
अभावों के भाव वो क्या जाने
अभावों को जिसने कभी नही देखा
हर भाव जीवन का वही जाने
अभाव को जिसने कभी है देखा
#आँचल 

Tuesday, 17 September 2019

कोटिक नमन नारायणी



विष्णु प्रिया हे चंचला
भुवनेश्वरी हे हिरण्मयी

वसुधारिणी हे पद्मिनी
स्वधा,सुधा,स्वाहा हो तुम
वाची,शुचि,श्रद्धा हो तुम
तुम ही तो प्रेम-प्रकाश स्रोत
माँ प्रकृति का स्वरूप तुम

वसुप्रदा हे चतुर्भुजा
करुणामयी हे यशदायिनी

कामाक्षी हे पद्मासिनी
सुरभि,विधि,क्षमा हो तुम
विद्या,विधा,वसुधा हो तुम
तुम ही तो शृंगार माँ
और दुर्जनो का संघार तुम

उदधि सुता हे अंबुजा
भृगु नंदिनी हे अंबिका

अन्नपूर्णा हे श्री,मोहिनी
रंग,राग,धर्म,ममता हो तुम
परम पुरुष की क्षमता हो तुम
कोटिक नमन नारायणी
कमल नयन की कमला हो तुम
#आँचल


सफ़र-ए-ज़िंदगी



सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कभी हँसना कभी रोना
कभी रोते रोते हँसना सिखाती है
उड़ जाऊँ ऊँचा और नापूँ इस नभ को
ऐसे ख्वाबों को सजाना सिखाती है
तू ही उड़ाती है तू ही गिराती है
गिरकर फिर उड़ना भी तू ही सिखाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कुछ खोकर कुछ पाना
मुरझाकर खिल जाना सिखाती है
कभी टूटना,बिखरना
बिखर कर खो जाना सिखाती है
खोकर भी चमकना
और सबको चमकाना सिखाती है
सफ़र -ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कभी चलना कभी रुकना
पर हार कर ना झुकना सिखाती है
जीना कभी मरना
कभी मर कर भी अपनो के लिए जीना सिखाती है
पथरीले राहों पर डगमगाना
और सँभलना सिखाती है
संग काँटों के भी
गुलाब सा महकना सिखाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
शायद इसीलिए तू संघर्ष कहलाती है
और इन्हीं संघर्षों में
लाखों खुशियाँ दे जाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
#आँचल

Friday, 6 September 2019

भजो रे मन राधे राधे



बिरज गली मच गया शोर
भजो रे मन राधे राधे -2
भजो रे मन राधे श्री राधे श्री राधे -2
बिरज गली मच गया  शोर.......

देखो कीर्ति के आँगन
किशोरी जी पधारी
सोहर गाओ रे सखी
बड़ी मंगल घड़ी आयी
और बधाई का पीट के ढोल
भजो रे मन राधे राधे

बिरज गली मच गया शोर.......

चंचला के नयन
सखी कजरा सजा दे
है वृषभानु दुलारी
सखी झूला झुला दे
और अरबी लगाकर भोग
भजो रे मन राधे राधे

बिरज गली मच गया शोर.......

#आँचल


Thursday, 5 September 2019

गुरु की महिमा



बनूँ याचक जो साहिल सा
महासागर तू बनता है
तू देकर ज्ञान रत्नों सा
मेरे भंडार भरता है
कभी पत्थर भी तू दे दे
तो वो शिवलिंग कहलाए
बहे तेरे ज्ञान की सरिता
तो शालिग्राम दे जाए

हरे अंधियार जो मन का
तू उस दिनकर के जैसा
तपा कुंदन बना दे जो
तू उस अग्नि के जैसा है
गुरु महिमा से भारत पर
अर्जुन,मौर्य मिल जायें
तेरी कृपा हो तो हम भी
विवेकानंद हो जायें

समाज निर्माणकर्ता हे
नमन कोटिशः तुझे कर दूँ
गुरु वंदन सा हो जाए
दो पंक्ति एसी मैं लिख दूँ
तुझे कह दूँ जो मैं जगदीश
हरी का मान बढ़ जाए
तेरे चरणों में झुक  जाऊँ
मुझे भगवान मिल जायें

#आँचल

Saturday, 31 August 2019

मृत्यु तुम स्वयं अप्सरा हो

कोई यदि पूछे कि मृत्यु क्या है तो हम  कहेंगे जीवन का अंत है मृत्यु। जीवन सुंदर है तो मृत्यु भयंकर है,जीवन दयालु है तो मृत्यु क्रूर है। पर क्या वास्तव में जीवन जैसी सुंदर रचना के रचनाकार ऐसी  मन को व्यथित करने वाली रचना रच सकते हैं या ये केवल हमारा भ्रम है। चलिए आज दृष्टिकोण बदल कर देखते हैं कि सत्य में मृत्यु किसी कथा का अंत है या नव गाथा का आरंभ,क्रूर है या इतनी नम्र कि हमारे संघर्षों से द्रवित हो मुक्ति दे दे।
हम जानेंगे कि मृत्यु वो मोहिनी है जिसके आगे कोई योगी या निर्मोही भी मन हार जाए । वो सखी है जो हमारे दु:ख-सुख हर कर मात्र सुकून दे। वो माता है जिसकी गोद में आँख बंद करो तो समस्त चिंताओं  और थकान का अंत हो जाता है और जब आँख खुले तो एक नया जीवन स्वागत को खड़ा होता है।
अर्थात अगर हमारा तन दीपक है तो आत्मा दीपशिखा और मृत्यु वो सूत्रधार जो हमे एक अध्याय से दूसरे की ओर ले जाती है।
तात्पर्य यह है कि भेद ईश्वर की रचना में नहीं  हमारी दृष्टिकोण में है।और जो इसे जान लेता है फिर उसे मृत्यु का भय कैसा?
बस इसी दृष्टिकोण के साथ आज  मृत्यु के सुंदर स्वरूप के वर्णन का कुछ इस प्रकार प्रयास किया है -


हे कालसुता हे मुक्ति माता
हे परम सुंदरी हे सत रुपा
अमर अटल अजया हो तुम
तुम परम शांति धवल जया हो
है अंत नहीं  पर्याय तुम्हारा
तुम नव अध्याय की द्योतक हो
हे दीपशिखा की सूत्रधार
मृत्यु तुम स्वयं अप्सरा हो

हे विश्वमोहिनी हे जीव प्रिया
हे पतित पावनी हे सदया
तुम मोही-निर्मोही सब को मोह कर
माया पाश से मुक्ति देती हो
चित-परिचित का बंध छुड़ा
उस चित् से चित् को मिलाती हो
हे दीपशिखा की सूत्रधार
मृत्यु तुम स्वयं अप्सरा हो

हे चित् धरणी हे मंगल,करुणा
हे परम हठी हे श्वेत प्रभा
दु:ख,सुख,चिंता की चिता जलाकर
परमानंद का दान दे देती हो
यह जीवन यदि संघर्ष है तो
मृत्युलोक की स्वामिनी तुम संधि अवतार ले आती हो
हे दीपशिखा की सूत्रधार
मृत्यु तुम स्वयं अप्सरा हो

#आँचल



हार्दिक आभार सादर नमन 

Friday, 2 August 2019

मैं हरी हो जाऊँ



बिन साज कान्हा धुन छेड़े 
बिन झांझर पग लेवे फेरे
मोहे अधर मुरलिया
सोहे मोर मुकुटिया
सूरतिया पर जाऊँ बलिहारी
प्रीत के सुख गीत पर
मयूरा संग रीझ कर
मैं श्याम रिझाऊँ
मैं श्याम रिझाऊँ
हास ठिठोली सखीयन की ना भाए
गुण गावत टोली हरी की लुभाए
छोड़ के सुख छैया
तोड़ रीत पैजनिया
जोगनिया चूनर रंग डाली
नाम प्रीत का जपकर
सम ज्योति सी जलकर
मैं अलख जगाऊँ
मैं अलख जगाऊँ
हरी प्रेम का गुड़ मन चाखे
रोम रोम रंजन हुआ लागे
लगी सागर हरी अँखीयाँ
मन लगाए डुबकियां
हर डुबकी अर्पण गुण दोष कर डाली
तब लोक लाज को तज कर
समर्पण की चोटी चढ़कर
मैं हरी हो जाऊँ
मैं हरी हो जाऊँ
#आँचल


Tuesday, 26 March 2019

शब्द शक्ति



शब्द सम कोई रिपु ना दूजा
शब्द सम ना मीत
तू चाहे तो तेरा दास बने
तू चाहे तो तेरा ईश
भाव है इसकी संगिनी
बिन भाव ना इसकी रीत
जैसे इसके भाव हो
वैसे इसकी नीत
तोल मोल कर जो बोले
हो उसकी जय जयकार
बिन तोले जो बोले
उसके बिगड़े सारे काज
दुर्भावों में जिसके शब्द रमे
ना पाता वो सत्कार
जिसके शब्द शब्द में प्रेम घुले
वो करता जग पर राज
पर शब्द भाव के फेर में
तब होता महाकल्याण
जब हर शब्द 'हरी' नाम हो
संग भाव भक्ति का अपरम्पार
और स्वंय जगदीश अकुला उठे
मिलने को तुझसे एक बार
तेरी शब्द शक्ति पर बैकुंठ तजे
और आ पहुँचें तेरे द्वार
#आँचल 

Wednesday, 20 March 2019

राधा कृष्ण की होली


जा रे हट सरपट तू बड़ा नटखट
खेलूँ ना तुम संग होली
तुम छलिया मैं भोली किशोरी
जमे ना अपनी जोड़ी

अरे फगुआ के संग झूम ले तू भी
बरसाने की छोरी
काले के संग हो जा काली
छोड़ दे चमड़ी गोरी

ओ नंदलाला सुन रे गोपाला
कर ना ना बरजोरी
कह देती हूँ पहले ही तुझसे
बोलूँगी लठ की बोली

छैल छबीली बड़ी नखरीली
ओ वृषभानु की छोरी
क्यू रूठी तू अपने किशन से
आ खेल ले प्रेम की होली

तू झूठा तोरा प्रेम भी झूठा
मैं ना तोरी सजनीया
राह तके तोरी सब सखीयाँ
जा खेल ले भर पिचकरीया

अरे ओ भोरी कच्चा तोरा मन
सच्ची मोरी प्रेम की बतिया
बिन राधे ये कान्हा जैसे
बिन रंगों की होलीया

अब मान भी जा मेरी राधा प्यारी
रंग जा मोरे प्रेम के रंग म

चल मान गयी मेरे कृष्ण मुरारी
रंग दे मोहे प्रेम के रंग म

लो राधा श्याम के रंग रंगी
रंगे राधा रंग कन्हैया
ब्रज में होली की धूम मची
गूँजे चहूँ ओर बधईया

जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी
जय हो बरसाने की होली
जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी
जय हो वृंदावन की होली
जय जय राधा कृष्ण की जोड़ी........

#आँचल

                 Happy holi



Tuesday, 19 March 2019

मै नारायण की दासी


मै नारायण की दासी मै हरी दर्शन की प्यासी
मोहे पल पल तेरी याद सतावे,
मन व्याकुल तेरे गीत ही गावे,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ

मै नारायण की दासी मै हरी चरणन को तरसी
तेरी चरण रज निज  माथे लगाऊँ,
नित चरणों की सेवा मै पाऊँ,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ

मै नारायण की दासी मेरे हरी कण कण के वासी
मम हृदय में वास करो प्रभु,
पूर्ण समर्पण स्वीकार करो प्रभु,
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
                                                  -आँचल

नंदलाला मोरे गोपाला मोरे



नन्द्लाला मोरे गोपाला मोरे,
दर्शन को तेरे नैन प्याला भये

गंगा पावन नदी कहलाने लगी,
चरणों को तेरे जो छूके बही

एक नारी बड़ी दुखियारी पड़ी,
कृपा सिंधु कृपा अहील्या को मिली

सुकुमार एक बालक तेरी खोज करें,
दर्शन जो मिले ध्रुव तारा भये

अठ्केली करें वात्सल्य भरे,
ममता को प्रेम गोपीयन से लिये

नन्द्लाला मोरे गोपाला मोरे,
दर्शन को तेरे नैन प्याला भये।

                                                  -आँचल 

सुन उद्धव अभिमानी



हम माने है  प्रेम ज्ञान को सुन उद्धव अभिमानी,
जो जाने है कृष्ण प्रेम को सो ही है  बड़ ज्ञानी

तोरो ज्ञान से छूटत होंगे मोह बंधन से प्राणी,
प्रेम ज्ञान से बंध जाते हैं मोर मुकुट स्वामी

कहत प्रेम संगिनी मोहन की  सुन वेदों के ज्ञाता
प्रेम योग ही परम योग ये कहते विश्व विधाता

जब  प्रेम रंग में  रंग जाते  तब और रंग ना भाते
हम पीर विरह की सह जाते हमे और योग ना आते

तोरो ज्ञान अधुरो उद्धव तू प्रीत को नाही माने
राधा-गिरधर के अमर प्रेम को अबतक नाही जाने

ढाई  अक्षर को प्रेम ये भारी तुम्हरे वेद पुराणों  पे
तुम मानो ये योग हमारी जो ना है वेद पुराणों  में
       
                                                     -आँचल 

एक जोगन बनी एक दिवानी बनी



एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी।

एक गिरधर गिरधर जपने लगी,
एक कान्हा कान्हा बुलाने लगी

एक वीणा की धुन पे गाने लगी,
एक बंसी की धुन पे थिरकने लगी

एक जग की रीत ठुकराने लगी,
एक प्रेम की रीत निभाने लगी

एक संतों की वाणी कहने लगी,
एक संतों की वाणी बनने लगी

एक अश्रु प्रीत के बहाने लगी,
एक अश्रु बिछोह के छिपाने लगी

एक श्याम दरस को तरसने लगी,
एक कृष्ण विरह को सहने लगी

महलों में दोनों पली बड़ी श्याम रंग में रंगने लगीं
एक मीरा भयी एक राधा भयी
मदन मनोहर को चाहने लगी

एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी
                                                -आँचल 

विरह काहे बनाई



प्रश्न करूँ तुम से एक बिहारी
विरह काहे बनाई,रे कान्हा विरह काहे बनाई?

लोग कहे सिया बड़ी दुखियारी,
त्यागी गयी स्वामी से नारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

ताने कसे राधा पे बिचारी,
छोड़ गयो जो मदन मुरारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

अपमान मिला मीरा को भारी,
डूबी जो तुझ में गिरधारी,
विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?

प्रीत लगी तुम संग जो बिहारी,
पीर विरह की लागे प्यारी।।

विरह काहे बनाई रे कान्हा विरह काहे बनाई?
ओ कान्हा विरह काहे बनाई?
                                                        -आँचल
                                                  

रूप मनोहर ऐसो पायो



रूप मनोहर ऐसो पायो,कृष्ण प्रेम रंग मन मोरा रंगायो
कजरारी तोरी नीली अँखीया मन मोरा डूबे दिन रतीया,
मुरली मनोहर ऐसो बजायो,धुन में अपनो सुध को खोवायो
मधुर मधुर तूने मुरली बजायो तीनों  लोक सब तुझमें समायो,
मुस्कान मनोहर ऐसो पायो,चित मोरा तुझमें रम जायो
मंद मंद चितचोर हँसे फिर गोपीयन को तूने  चैन चुरायो,
शब्द मनोहर ऐसो पायो,अपनो मोह में जग को फँसायो
फिर गीता उपदेश सुनाकर मोह बंधन से जग को छुड़ायो,
रूप मनोहर ऐसो पायो कृष्ण प्रेम रंग मन मोरा रंगायो।।
                                                       -आँचल 

Sunday, 10 February 2019

सरस्वती वंदना


पुलकित पल्लव,सुरभित मुकुल,
कुमुद,खग कलरव करत वंदना
सोम,मुकुंदा,शिव,गंग,सविता
पद विमला की करत अर्चना
नृत राग,रागिनी,भू,नभ,उदधि,
कोपल,बाली करे रंजना
हे वाग्देवी हे ज्ञान की सरिता
ललित,निरंजन,शक्ति स्वरूपा
तुम्ही ज्योत्सना करती तम भंजन
हर लो विकार कर दो मन कंचन
ऋद्धि,सिद्धि,सुर,गुण तुम ज्योति
काम,क्रोध मोह,लोभ को हरती
तुम शतरूपा,शारदा,सुवासिनी
पद्माक्षी,मालिनी,सौदामिनी
शुभ,मंगल की तुम माँ द्योतक
पाप,दोष हर लो तुम मोचक
नव उत्थान वर दो वरदायनी
भव बंधन मुक्त करो मोक्षदायनी
ऋतु बसंत सुंदर तिथि पंचम
ओढे पीत चुनरिया खेत लगे दुल्हन
करे नमन तुम्हे धरती का कण कण
स्वीकार करो माँ मेरा भी वंदन
       जय माँ सरस्वती
#आँचल

Thursday, 31 January 2019

राजनीति के खेल में 'राम' नाम ब्रह्मास्त्र



घबराए से नारद जी
जो पहुँचे राम दरबार
भरत,लक्ष्मण,शत्रुघ्न संग
मारुति करें सत्कार
अभिवादन करते राम जी
पूछें क्या हैं हाल
शिकन माथे पर लाए हो
क्या है आज समाचार
सकपकाए से मुनिवर बोले
बहुत बुरा प्रभु हाल
धर्म कर्म के नाम
आया कैसा ये भूचाल
सत्ता के अधिकारियों ने
नाप लिया मैदान
साधु संतों में फूट पड़ी
भिड़ने को सब तैयार
हे राम तेरे नाम पर
कैसा ये घमासान
कोई मंदिर के नाम बवाल करे
कोई लेता राम अवतार
पक्ष -विपक्ष में अधर्म खड़े
बने बगुला भगत महान
राजनीति के खेल में
'राम' नाम ब्रह्मास्त्र
प्रभु आप स्वयं बताइए
किसके खड़े हैं साथ
चकित राम दरबार हुआ
देख राघव की मुस्कान
तभी पवनसुत आगे बढ़े
और पूछे हास का राज़
विनम्र भाव श्री राम कहें
मैं तो धर्म का नाथ
जहाँ पक्ष-विपक्ष अधर्म खड़ा
वहाँ मेरा क्या काम
जहाँ राग हो प्रेम का
वहीं राम निवास
जहाँ परचम विवादों का
वहाँ राम निकास
धरम-परम के नाम
बने संसद दो या लाख
राजनीति की नीव पर
सबका मक़सद स्वार्थ
बिन स्वार्थ राम का नाम जपे
वो हृदय राम का द्वार
हर मर्यादा का जो मान करे
वही राम अवतार

सियापति रामचंद्र की जय

#आँचल 

Friday, 25 January 2019

जो बजा डमरू इलेक्शन का



जो बजा डमरू इलेक्शन का 
सब नेता खेल दिखाने लगे
खुद की चतुराई पर नाज़ इतना
जनता को उल्लू बनाने लगे
कभी  साइकिल पर हाथी सवार
कभी बहन भाई की अगुआई करे
कभी कमल रहा कीचड़ उछाल
जाने क्या क्या स्वाँग रचे
मंदिर - मस्जिद, राफेल,आरक्षण 
सब मुद्दे ऐसे उठा रहे
हितैषी बने जनता के जो
जनता को ही ठगने लगे
झूठे वादे परोसकर
झोली वोट से भरने चले
पर भूल गये की जनता भी
शातिरों की सरताज है
खेल तुम्हारे खूब समझती
बैठी अभी चुपचाप है
आने को है वक़्त उसका
जब देगी तुम्हें जवाब वो
तब डमरू नही बजेगा डंका
क्योंकि गणतंत्र का यहाँ राज है
#आँचल
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Thursday, 24 January 2019

ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ



ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
आज लिखूँ या कल लिखूँ
या लिखूँ दोनों का परवान
तुझे द्योतक अंधकार का लिखूँ
या लिखूँ नवल प्रभात का दूत
तुझे जोगन का जाप लिखूँ
या लिखूँ प्रेम गीत विभूत
करें रतजगा उनका तुझे मीत लिखूँ
या लिखूँ अवसादों का विश्राम
सोम को तेरा सरताज लिखूँ
या लिखूँ तारों को तेरा शृंगार
तम को तेरा गर्व लिखूँ
या लिखूँ दिवा का तुझसे अभिमान
शुभ लिखूँ या अशुभ
या लिखूँ दोनों की तुझे पहचान
कवि मन सदा मेरा सोचता
ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
या लिखूँ तुझे बस "रात"
#आँचल

Thursday, 17 January 2019

जोगी भेष शिव शंकर पुकारे


मात यशोदा द्वार पधारे
जोगी भेष शिव शंकर पुकारे
पलने में हैं  तेरे नाथ हमारे
दिखा दे मुख, तेरे भरे भंडारे

शीश जटा,चंद्र भाल पर सोहे
रवि सम कांति मुखमंडल शोभे
बाल रूप दरस मन आतुर होए
शिंगी नाद संग प्रभु को जोहें

लिए भिक्षा माँ यशोदा आयें
संग मोती माणिक दक्षिणा लायें
सब ठुकरावे जोगी,दोगुना थमाए
ये पत्थर ना मइया हमे लुभाए

हम आए दूर कैलाश पर्वत से
लिए लालसा प्रभु दर्शन के
दुर्लभ दर्शन हरी बाल रूप के
होता है योग कई युगों बीत के

घबराई यशोदा,भय मन में व्यापे
जोगी भेष धरे मायावी लागे
करे प्रर्थना,हे भोले विपदा को टालें
भोली मइया भोले को ना पहिचाने

रची लीला लीलाधारी ने
प्रकटी माया श्री बनवारी से
दुर्बल काया,लठ साथ निभाए
बन बुढ़िया माया लड़खाती आए

यशोदा रानी तेरे भाग हैं जागे
दर तेरे भगवान पधारे
है भीम रूप,शम्भू भय हरते
ब्र्म्ह,हरी,शक्ति नित पूजे

लगी माया तब महिमा गाने
शंकर के सुंदर गुण-भेद बताने
तब दौड़ी मइया आनंद को लाने
शिव -मोहन की अद्भुत भेट कराने

सब देव धरा पर आने लगे
शंख,ढोल,मंजीरा बजाने लगे
जब हरी - हर नैन मिलाने लगे
सब उनपर पुष्प बरसाने लगे

कमल नयन के लोचन कजरारे
छटा धरा पे अधरों से आए
मुखमंडल तेज पे सूर्य लजाए
मनहारी श्याम भोले मन भाए

मगन भए नटराजन ऐसे
सुन मेघों को मयूरा झूमे जैसे
भरा भाव हृदय में वैरागी के ऐसे
साहिल को तड़पे उर्मि जैसे

सब देव अचरज में देखन लागे
माता आगे विधाता हारे
दो क्षण को गोद दे नाथ हमारे
बन याचक दाता भी माँगन लागे

भय,मोह व्याधा मन ऐसे साधे
प्रभु ओर पग बढ़त ना आगे
याचिका जोगी की यशोदा टाले
हरी आलिंगन रस भोले ना पावे

जो गंग उतरे तेरे चरणों से
नित जटा में मेरे वास करे
हे मोहन उन पद पंकज रज से
वंचित क्यू तेरा दास रहे

जो भोले के सुंदर भाव सुने
नारायण हीय भर आए
तुरत माया को संकेत दिए
लाला मंद मंद मुसकाए

प्रभु ठहरे हम भगत तुम्हारे
नित तेरे चरणों को ध्याए
मिला सुअवसर खाली ना जाए
बिन चरणारज सेवा को दास ना आए

कौन प्रभु कौन सेवक ना जाने
दोनों दूजे को बड़ माने
लगी माया दोनों को शीश नवाने
मायापति की आज्ञा चली निभाने

चरणधाम चली बुढीया लडखाए
जोगी की पदरज किर्ती सुनाए
देव ऋषि जिसे माथ सजाए
वो रज नीर्मल सब दोष मिटाए

ले रज कुंदन शिव चरण से
नंदलाला के ललाट सजाए
भाग्यविधाता के ऐसे भाग जगे
प्रफुल्लित कंज सम  कान्हा हर्षाए

अब क्षण भर मुकुन्द से रहा ना जाए
तुरत माय को निमित्त बनाए
लाला को बुढ़िया गोद उठाए
शिव शंकर गोद पठाए

आनंदविभोर जो आनंद हुए
चित वैरागी चितचोर पे हारे
चूम चूम पग माथे लगाए
जोगी ऐसे प्रेम लुटाए

मगन हुए नटराजन झूमे
जग सारा उत्सव मनाए
ब्रम्हा,इंद्र सब ढोल पर नाचें
स्वंय सरस्वती,नारद गायें

नंदलाल को मइया के गोद थमाए
जोगी आशीर्वचन सुनाए
कर नमन हरी से विदा लिए
कैलाशी निज धाम को जाए

अकिंचन आँचल तेरी भगत जो ठहरे
भक्ति बस कीर्ति गाए
हरी हर तेरी लीला अद्भुत ये
वर्णन कौन कर पाए

अहोभाग्य प्रभु शब्द बन आए
स्वंय ये रचना रचाए
ऋणी बनी तेरे पद पंकज पूजे
ये दासी जयकार लगाए

बम भोले,जय कृष्ण हरे
रटत ये जीवन जाए
बम भोले,जय कृष्ण हरे
रटत ये जीवन जाए

-आँचल

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