Tuesday, 19 March 2019

सुन उद्धव अभिमानी



हम माने है  प्रेम ज्ञान को सुन उद्धव अभिमानी,
जो जाने है कृष्ण प्रेम को सो ही है  बड़ ज्ञानी

तोरो ज्ञान से छूटत होंगे मोह बंधन से प्राणी,
प्रेम ज्ञान से बंध जाते हैं मोर मुकुट स्वामी

कहत प्रेम संगिनी मोहन की  सुन वेदों के ज्ञाता
प्रेम योग ही परम योग ये कहते विश्व विधाता

जब  प्रेम रंग में  रंग जाते  तब और रंग ना भाते
हम पीर विरह की सह जाते हमे और योग ना आते

तोरो ज्ञान अधुरो उद्धव तू प्रीत को नाही माने
राधा-गिरधर के अमर प्रेम को अबतक नाही जाने

ढाई  अक्षर को प्रेम ये भारी तुम्हरे वेद पुराणों  पे
तुम मानो ये योग हमारी जो ना है वेद पुराणों  में
       
                                                     -आँचल 

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/114.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  2. प्रेम रंग ऐसा है जो छूटते नहीं छूटता ...
    सुन्दर रचना है ...

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  3. जब प्रेम रंग में रंग जाते तब और रंग ना भाते
    हम पीर विरह की सह जाते हमे और योग ना आते
    बहुत सुंदर...... रचना

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  4. वाहह्हह. वाहह्हह... अति सुंदर सृजन प्रिय आँचल...👌👌👌

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