Thursday, 30 December 2021
इस नववर्ष एक नई रीत का शुभारंभ करते हैं।
Tuesday, 28 December 2021
लीलाधर मुस्कावे रे
पट-पीतांबर,अधर मनोहर
मधुर-मधुर मुरलिया बाजे,
गल बैजंती माला राजे,
मोर-मुकुट,छलिया,घनश्यामा
बृजवासिन को चैन चुरावे,
गाए-गाए गुण ग्वाल सब झूमे,
ग्वालिन भोग ख्वावे रे,
धेनु उड़ावे धूरी घन-घन पर,
सुरवर बहुत पछतावे रे,
देखि दशा अस सुरजन की
लीलाधर मुस्कावे रे।
#आँचल
Thursday, 16 December 2021
कर क्रीड़ा कोई हरि सुंदर
Tuesday, 14 December 2021
आज पर अधिकार
Monday, 28 June 2021
चंदा कैसे हैं सबके मामा?
Wednesday, 16 June 2021
मैं करती रहूँगी प्रयास
जब भी जन-जागरण हेतु
लेखनी उठाती हूँ
और पुनः प्रयास को सज होती हूँ
एक परोक्ष-सी लड़की की अट्टहास
मेरे कानों में गूँजती है
और तभी अँधेरा छा जाता है,
उस घोर अंधकार से ' निराशा ' आती है,
मुझे देख मुस्कुराती है,
मेरा आलिंगन करती है
और सांत्वना देने का ढोंग करते हुए
मुझसे कहती है -
" व्यर्थ हैं तुम्हारे सारे प्रयास।
छोड़ दो यह पागलपन
और सबकी तरह तुम भी
स्वयं पर विचार करो,
स्वार्थ का शृंगार करो।"
पर मैं हठी, तंज़ निगाहों से
उसकी ओर देखती हूँ
फिर अधरों पर
मुस्कान को सजाते हुए
उससे कहती हूँ -
"मैं करती रहूँगी प्रयास।
आज भी और मेरे अंत के पश्चात भी।"
#आँचल
Monday, 14 June 2021
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर,
ढोंगी है ढोल,
ढोलकी की थाप पर नाच रहे चोर,
चोरों की ताल पर नाचे जो राजा....
तक धिना धिन,तक धिना धिन
बाजे रे बाजा।
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर,
ढोंगी है ढोल।
काँए-काँए कौए के
कड़वे हैं बोल,
कड़वे इन बोलों में मिश्रि तो घोल,
मिश्रि के घोल में झूठ के दाने....
तक धिना धिन,तक धिना धिन
कौआ लगा गाने।
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर,
ढोंगी है ढोल।
ढाँक-ढाँक रखो रे
रानी की डोल,
रानी की डोल में राजा की पोल,
खोली जो पोल तो होगा हंगामा...
तक धिना धिन,तक धिना धिन
नाचे सुदामा।
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर,
ढोंगी है ढोल।
ढाँप-ढाँप ढोंगी पर,
ढोंगी है ढोल।
#आँचल
Sunday, 6 June 2021
तत्क्षण पांडव तजो द्यूत।
(प्रस्तुत पंक्तियाँ वर्तमान परिस्थितियों पर मेरी प्रतिक्रिया है। शोषित पांडव अर्थात् साधारण जनता के प्रति मेरा संदेश।)
तत्क्षण पांडव तजो द्यूत
और कुरुक्षेत्र को कूच करो,
स्वविवेक का शस्त्र धरो
और कर्मनिष्ठ हो युद्ध करो।
सह शोषण जो मौन को साधोगे
वनवास की पीड़ा भोगोगे
क्या दोगे परिचय जग को अपना?
अज्ञातवास को जाओगे।
आर्तनाद सुनकर भी जब
राजा सुख से सोता हो,
दुर्योधन की मनमानी पर
ढोंग के मोती बोता हो,
तब झूठ से ऐसा द्रोह करो,
राजा से यूँ विद्रोह करो,
तत्क्षण पांडव तजो द्यूत
और कुरुक्षेत्र को कूच करो।
शकुनी के पासों के आगे
कबतक ' आँसू ' जीतोगे?
लूटेगा वो तबतक तुमको
जबतक तुम लुटने दोगे।
सिंहासन अधिकार तुम्हारा,
तुम ही इसके राजा हो।
'राजा' जो है दास तुम्हारा
उसके चरणों में बैठे हो!!
त्याग दो एसी कायरता
और वीरों-सा शृंगार करो।
तत्क्षण पांडव तजो द्यूत
और कुरुक्षेत्र को कूच करो।
तत्क्षण पांडव तजो द्यूत
और कुरुक्षेत्र को कूच करो।
#आँचल
Friday, 28 May 2021
मुद्दासृजन की रणनीति
भारत एक प्रगतिशील देश है। आप अर्थव्यवस्था और विकास जैसे संवेदनशील मुद्दों को उठाकर इसकी प्रगति पर प्रश्नचिह्न कैसे लगा सकते हैं?
माना तालाबंदी के दौर में बाज़ार कुछ ठंडे पड़ गए हैं किंतु शासन ने ' मुद्दासृजन ' की रणनीति को अपनाते हुए मुद्दों के बाज़ार की गर्मी इतनी बढ़ा रखी है कि संतुलन बरकरार रहेगा। यह मुद्दे प्राकृतिक नही हैं। इन्हें राजनीति की फ़ैक्टरी से आयात किया जाता है और सोशल मीडिया और मीडिया इसकी मार्केटिंग में ज़ोर-शोर से जुड़े रहते हैं।
इस फ़ैक्टरी द्वारा भाँति-भाँति के मुद्दों का सृजन किया जाता है। इनमें से कुछ का आनंद आप सुबह-शाम की चाय की चुस्कीयों के साथ ले सकते हैं और कुछ कई बार आपे से बाहर हो जाते हैं जिनके परिणाम अक्सर घातक होते हैं।
..... खैर। बड़े-बड़े देशों में एसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं।
अब मुद्दा यह है कि इन मुद्दों का सृजन क्यों हुआ? तो कारण कुछ इस प्रकार है कि पहले तो ये मुद्दे आपकी सेवा में लाए ही इसलिए गए कि यह आपको चिंता में डालने वाले वास्तविक मुद्दों से भटकाते हुए आपको पॉजिटिव रखने का प्रयास करें। आवश्यकता पड़ने पर यह आपको थपकी देकर सुला भी सकते हैं। अब यूँ आपको पॉजिटिव रखने के पीछे इनका मक्सद आपकी फिक्र करना नही अपितु आपके प्रकोप से अपनी रक्षा करना है।
निश्चित ही अब आप इसका अर्थ जनना चाहेंगे साथ ही यह भी कि इन मुद्दों की कार्यप्रणाली क्या है?
दरअसल यह मुद्दे आपके विवेक का हरण करने का सामर्थ्य रखते हैं। जैसे ही आप इन मुद्दों के वश में आते हैं यह एक मदारी की भाँति आपको अपने इशारों पर नचाते हैं और आप नाच भी लेते हैं। यही नही आप स्वयं के लिए ताली भी बजाते हैं और दर्शक बने अन्य देशों को आप पर हँसने का भरपूर अवसर भी प्रदान करते हैं।
किंतु जैसे ही कोई घटना/दुर्घटना आपको झकझोरती है आप तत्क्षण इन मुद्दों के पाश से मुक्त हो जाते हैं। अब आपका विवेक आपको वास्तविकता का बोध कराता है। आपके कान अस्पतालों की आत्मकथा सुनते हैं और आपकी आँखें विकास की असली कहानी देखती हैं। आपके नातेदार प्राणवायु के लिए झूझ रहे होते हैं और गंगा किनारे का मंजर आपको द्रवित कर देता है।
आपको शीघ्र यह अहसास होता है कि आप ठगे गए हैं, आपका शोषण किया जा रहा है और आप उग्र भाव से शासन-प्रशासन को घेरने लगते हैं।
अब स्थिति को समझते हुए आत्मरक्षा के अभिप्राय से आपको शांत करने हेतु मुद्दों की डिमांड और सप्लाइ दोनों बढ़ जाती है। बाजार में कुछ नए मुद्दे आते हैं और कुछ पुराने मुद्दों को नए रंग-रूप में ढालकर प्रस्तुत किया जाता है जैसे - विपक्षी दल के घर में अकस्मात् हमला बोलना, गौमूत्र और एलौपेथिक के मध्य घमासान को हवा देना, केसबुक और टरटर जैसे एप से शर्तें मनवाने के बहाने तालाबंदी से प्रेरित होते हुए आपके मुँह पर भी ताला लगाने की धमकी देना, एक शांत टापू को यूँ छेड़ना कि वो आंदोलन पर उतर आए और धर्म-मज़हब वाले मुद्दों की बिक्री तो चल ही रही है धड़ाधड़।
अब मुद्दों के बाज़ार की यह चमक पुनः आपको भटकाती है। आप अपनी सारी पीड़ा सारा दुख भूलते हुए इतने बेसुध हो जाते हैं कि जिन्हें आपकी चरणसेवा करनी चाहिए आप उन्हीं के पैर दबाते हैं।
अब देखना यह है कि मुद्दासृजन की यह रणनीति आपको कबतक यूँ बेसुध रखती है और कौन सी वह अप्रिय घटना होगी जो पुनः आपको वास्तविक मुद्दों की सुध कराती है।
#आँचल
Monday, 24 May 2021
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
यूट्यूब लिन्क 👇
https://youtu.be/6YIYzWXLfao
भोर-कलश से छलके तरणी,
ओढ़ी चूनर,थामे आस की गगरी,
पग पनघट की ओर बढ़े,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
अश्रु हैं माल, शृंगार नयन का,
शूल सुसज्जित डगर प्रणय का,
अधर पे चिर-विषाद लिए,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
मीत-निठुर की मैं अभिसारिका,
बाट निहारूँ, संग चंद्र-तारिका,
उमर की साँझ ढले,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
#आँचल
Friday, 21 May 2021
कविता कौन है?
कल मेरी एक बहुत प्यारी दोस्त ने व्हाट्सएप पर मेरा हालचाल लेते हुए मुझसे पूछा - " क्या कर रही हो? "
मैंने कहा - " कविता सुन रहे।"
तभी उसने मज़ाक करते हुए मुझसे पूछा -" ये कविता कौन है? मेरी प्रतिद्वंदी तो नही?"
तब मैंने कुछ यूँ ' कविता ' का एक छोटा-सा परिचय लिखने का प्रयास किया।
चित्र का श्रेय - पलक पाण्डेय (मेरी बदमाश छोटी बहन )
कविता कौन है?
जन के क्रंदन से जन्मी,
मन के मंथन से प्रकटी,
है जो भावों की धरणी,
है जो शुभ-मंगल -रमणी,
करुणा की जिसने चूनर ओढ़ी,
संस्कारों से जिसकी गूँथी हो वेणी,
उपमा स्वयं अधरों पर लाली,
कानों में पड़ी रीति की बाली,
नयन-नयन क्रांति का काजल,
युग से युग तक झंकृत पायल,
हाथ रची है प्रेम की मेहँदी,
माथे शोभित सौभाग्य की बेंदी,
तम काट रही है कांति कंचन,
खनक रहे छंदों के कंगन,
हैं कंठहार शुभ अलंकार,
वाणी में वीणा-सी झंकार,
रण में जिसका रूप विकराल,
जो क्षण में मचा दे भीषण रार,
कवियों संग जिसका प्रेम पुनीत,
तृण-तृण में भरती जो मधुमय गीत,
जो जगा रही यह सुप्त संसार,
'कविता' स्वयं वह अनुपम राग।
#आँचल
Sunday, 16 May 2021
विकराल है यह मौन
Tuesday, 11 May 2021
यूँ ही नही अंधेरा हार जाता है
माना
निश्चित है रात का ढलना,
और निश्चित है भोर का आना
पर इस निश्चित के आस में
कितना उचित है यूँ
हाथ पर हाथ धर बैठना?
यूँ ही नही अंधेरा हार जाता है,
यूँ ही नही सवेरा नूर लाता है।
फिर उमंग की प्यास में,
फिर सुबह की आस में
रात भर जुगनुओं को लड़ना पड़ता है,
अँधेरे को मिटाने हेतु
सूरज को भी जलना पड़ता है।
#आँचल
Sunday, 9 May 2021
हे अगोचर
हे अगोचर दृष्टिगोचर हो मेरी यह प्रर्थना है,
इस निरीह वन में तुम्ही साधन,तुम्ही से साधना है।-2
कल्पना है यह जगत और इस जगत का सत्य तुम,
अल्प है यह अल्पना,हैं मिथ्य विषय और तथ्य तुम।
राग,द्वेष,आमोद,क्लेश यह भाव सब ठहरे निमेष,
इस कामना के पाश से करो मुक्त मेरी कामना है।
हे अगोचर दृष्टिगोचर हो मेरी यह प्रर्थना है,
इस निरीह वन में तुम्ही साधन, तुम्ही से साधना है।
आसक्ति का जो दास है वह मन अधर्म का वास है,
निष्काम कर्म की भूमि पर आनंद का महारास है।
विलास और संत्रास में स्थितप्रज्ञ के अभ्यास से,
चैतन्य की चैतन्य से दूरी को क्षण में नापना है।
हे अगोचर दृष्टिगोचर हो मेरी यह प्रर्थना है,
इस निरीह वन में तुम्ही साधन,तुम्ही से साधना है।
अज्ञानता यूँ विलोप हो,मुझमें ही मेरा लोप हो,
भक्ति में मन यूँ विभोर हो तब ज्ञान की वह भोर हो,
जो विस्मय में जग को डालती, अद्भुत-सी यह पराकाष्ठा है,
आप ही से आपकी हो रही आराधना है।
हे अगोचर दृष्टिगोचर हो मेरी यह प्रर्थना है,
इस निरीह वन में तुम्ही साधन,तुम्ही से साधना है। -2
#आँचल
Saturday, 8 May 2021
धर्म नष्ट!
" कहाँ चली सवेरे-सवेरे इतना तैयार होकर? आज तो छुट्टी है कॉलेज की। " जाप की माला फेरते हुए शुचि की दादी जी शुचि से पूछती हैं।
"दादी वो आफ़रीन के घर ईद की सेवई खाने।"
"क्या कहा? सेवई खाने! वो भी दूसरे धर्म वालों के घर। अरे पागल धर्म नष्ट करेगी क्या अपना?"
बस दादी का इतना कहना था कि शुचि के अंदर की क्रांतिकारी जाग उठी और दादी के विचारों का विरोध करने कूद पड़ी जंग के मैदान में।
" धर्म नष्ट? क्या मतलब दादी? क्या अपनी दोस्त के घर सेवई खाने से धर्म नष्ट हो जाएगा मेरा? क्या धर्म इतना कमज़ोर होता है? और ये दूसरे धर्म वाले कौन है? आप ने ही तो गीता में पढ़कर मुझे बताया था कि ईश्वर एक हैं और कण-कण में हैं। तो जिन्हें आप दूसरे धर्म वाले कह रही उनमें भी ईश्वर होंगे। तो उनके यहाँ सेवई खाने से मेरा धर्म कैसे नष्ट होगा? और..."
"बस-बस "
दादी शुचि की ओर से आते हुए तर्क-संगत सवालों के बाणों को रोकती हैं और फिर अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल कर शुचि पर वार करती हैं -
" कुछ ज़्यादा ही पढ़-लिख गई हो तुम,इतना कि सारी मर्यादा और आदर भूलकर अब मुझसे कुतर्क करने बैठी हो।"
" कुतर्क नही दादी वास्तविकता है।"
"चुप " दादी आगबबूला होते हुए शुचि को कुछ भी आगे बोलने से चुप करा देती हैं और अपना वार जारी रखती हैं।
" कहा था मैंने तुम्हारे माँ-बाबा से कि लड़की है ज़्यादा मत पढ़ाओ नही तो दिमाग खराब हो जाएगा इसका पर कोई मेरी सुनता कहाँ है अब देखो वही हुआ। "
" दादी मेरे दिमाग में नही समाज के विचारों में खराबी है।" शुचि फिर बोलती है पर दादी अपने बड़े होने के अधिकार से हाथ दिखाकर फिर शुचि को चुप करा देती हैं कि तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है,शुचि दरवाज़ा खोलती है -
" जी मैं हामिद। आपने लड्डू गोपाल के पालने का आर्डर दिया था वही लाया हूँ।"
बस यह सुनकर तो शुचि को जैसे ब्रह्मास्त्र चलाने का अवसर मिल गया।
" माफ़ कीजिएगा पर आप पालना वापस ले जाइए क्योंकी आपके लाए पालने में झूलकर तो दादी के लड्डू गोपाल का धर्म नष्ट हो जाएगा।"
बस शुचि का इतना कहना था कि दादी तमतमा कर उठीं और रसोई घर से ही सबकुछ सुन रही इस धर्म युद्ध की एकलौती साक्षी अपनी बहु को आवाज़ लगाती हैं। शुचि की माँ बाहर आती हैं और शुचि को डाँटते हुए सख़्त आदेश देती हैं -" शुचि अपने कमरे में जाओ।"
#आँचल
Friday, 7 May 2021
अति से दुर्गति
" अरे कंजूस सारा घी क्या अपने लिए बचा रखा है? थोड़ा घी और डाल हलवे में।" धनानंद अपने रसोइये पर बिगड़ते हुए कहते हैं।
" नही मालिक घी तो इतना डाला है कि घर के बाहर तक हलवे की खुशबू जा रही है। "धनानंद का रसोइया कुछ घबराते हुए बोला।
"अच्छा! तो मतलब मेरी ही नाक खराब है।"
" नही मालिक एसी बात नही है "
" ऐसा-वैसा छोड़ और चुपचाप थोड़ा और घी डाल और मेवे भी बढ़ा।"
धनानंद के धमकाने पर रोसोईया हलवे में घी और मेवे की मात्रा बढ़ाता है तो धनानंद प्रसन्नतापूर्वक बोलते हैं - " आहा! अब स्वाद आएगा। अरे सेठ धनानंद के रसोई में कुछ पके तो उसकी खुशबू घर के बाहर तक नही स्वर्ग तक पहुँचनी चाहिए जिससे देवताओं के मुँह में भी पानी आ जाए।"
"... और वे देवता हलवा सहित तुम्हें स्वर्गलोक में बुला लें।" धनानंद के मित्र सदानंद रसोई घर के भीतर आते हुए कुछ नाराज़ स्वर में बोलते हैं।
" यार तू दोस्त है या दुश्मन? कैसी बातें कर रहा?" धनानंद गरमागरम हलवा चखते हुए पूछते हैं पर हलवा मुँह में डालते ही धनानंद अपने रसोइये पर फिर बिगड़ते हैं -" चीनी क्या अपने लिए बचाकर रखी है? कितना फीका है हलवा, मीठा थोड़ा और डालो। "
इसपर सदानंद जवाब देते हुए कहते हैं -" तुम तो खुद ही अपने दुश्मन हो किसी दूसरे को दुश्मनी निभाने की क्या आवश्यकता? "
" क्या मतलब?"
" मतलब यह की ' अति ' सदा ' दुर्गति ' की ओर ले जाती है।"
"अरे भाई हमने कौन सी अति कर दी? "
" व्यापार हो या आहार हर चीज़ में तुम्हारी यह 'थोड़ा और ' की आदत को पूरा गाँव जानता है।अभी भी समय है धनानंद इस बात को समझो कि हर चीज़ अपनी हद में अच्छी होती है। यदि अभी तुमने अपनी यह आदत नही सुधारी तो भुगतोगे।"
सदानंद अपने मित्र को समझाते हैं पर धनानंद हलवे के आनंद में अपने मित्र की सलाह को अनसुना कर देते हैं और कुछ महीनों बाद वैसा ही होता है जैसा सदानंद ने कहा था। धनानंद की अति ने उनकी दुर्गति कर दी। उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। डॉक्टरों ने कड़वी दवाइयों के साथ खाने- पीने में परहेज़ और व्यायाम की सलाह दी।
खैर इस दुर्गति से उनकी अति करने की आदत नही छूटी बस अब अंतर इतना था कि अब धनानंद रसोई घर में जाते तो अपने रसोइये को फटकारते हुए कहते -
" अरे यमदूत इतना तेल-घी डालकर मुझे मार डालेगा क्या?थोड़ा और कम डाल, एकदम न के बराबर।"
" जी मालिक।"
" घी की ज़रा भी खुशबू मेरी नाक तक न पहुँचे।"
"जी मालिक।"
"जी - जी न कर,काम पर ध्यान दे तबतक मैं थोड़ा और व्यायाम कर आता हूँ।"
#आँचल
Thursday, 6 May 2021
सुनहरा बक्सा
गौरी खुशी से उछलते-कूदते-चिल्लाते हुए आती है -" माँ... बाबा... माँ... बाबा... देखो आज फिर मुझे फर्स्ट प्राइज़ मिला। "
"अरे वाह! मेरी गुड़िया ने फिर से फर्स्ट प्राइज़ जीता!" गौरी के बाबा उसे गोद में उठाते हुए बोलते हैं। गौरी की माँ उसके माथे को चूमते हुए गर्व से बोलती है -" मुझे तो पहले ही पता था कि मेरी बेटी का कथक में कोई मुकाबला नही कर सकता।"
" बिलकुल, देखना गौरी की माँ एक दिन हमारी बेटी पूरे विश्व में हमारा खूब नाम रोशन करेगी और ऐसे ढेरों पुरस्कार हमारी गुड़िया के नाम होंगे। हमारी गौरी विश्व की सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय नृतकी कहलाएगी।"गौरी के बाबा अपनी गुड़िया के भविष्य के सुनहरे सपने सजाते हुए बोलते हैं।
" बाबा मैं इस ट्रॉफी को भी अपने उसी सुनहरे बक्से में रखूँगी जिसमें मैंने अपनी गुड़िया,अपने घुंघरू और बाकी प्राइज़ रखे हैं।" गौरी अपने बाबा की गोद से उतरते हुए बोलती है और भागते हुए अपने सुनहरे बक्से को खोलने जाती है कि तभी कोई आवाज़ लगाता है - " बहु चाय बनी या नही अबतक?"
गौरी अपने बचपन की उन सुनहरी यादों से बाहर आते हुए बोलती है - " बस ला रही हूँ माँजी।" हड़बड़ाते हुए उस सुनहरे बक्से को बंद करती है, और नम आँखों से उसपर ताला लगाते हुए बोलती है -" मैंने तो शादी के दो महीने बाद ही अपने हर सपने,हर इच्छाओं को इस बक्से में बंदकर,इसपर ताला लगाकर यहाँ इस स्टोर रुम में पटक दिया था। पर जाने क्यों जब भी यहाँ आती हूँ तो इसे खोले बिना नही रह पाती।"
तभी गौरी का बेटा उसे आवाज़ लगाता है - " माँ जल्दी नाश्ता दो,कॉलेज के लिए लेट हो रहा हूँ।"
" हाँ बस लाती हूँ बेटा। " अपने बेटे को जवाब देते हुए गौरी बक्से पर लगे ताले की चाभी को देखती है और कुढ़ते हुए बोलती है - " सारा दोष इस चाभी का है। " और गौरी उस चाभी को स्टोर रुम की खिड़की से बाहर फेंकते हुए स्टोर रुम से बाहर आ जाती है।
#आँचल
Wednesday, 5 May 2021
तू-तू मैं-मैं
एक रोटी के लिए दो बिल्लियों के बीच घमासान हो गया। पहली बोली -
"यह मेरी रोटी है। "
तो दूसरी भी बोली - " नही यह मेरी रोटी है। "
पहली ने कहा -" पहले मैंने देखा इसे। "
तो दूसरी ने भी कहा -"पहले मैंने उठाया इसे।"
"इसे मैं खाऊँगी।"
"नही मैं खाऊँगी।"
"कहा ना मैं खाऊँगी।"
" अच्छा! तू खाकर तो दिखा मैं तेरे कान नोच लूँगी।"
यह सुनकर पहली बिल्ली चिढ़ गई और दूसरी बिल्ली से रोटी छीन कर भागी। दूसरी भी उसके पीछे भागी और उसपर झपट पड़ी।
.... और फिर से दोनों के बीच रोटी को लेकर महासंग्राम छिड़ गया कि तभी पास की गली से कुछ शोर सुनाई दिया। दो औरतें मंदिर के बाहर छोड़ी हुई चप्पल को लेकर आपस में झगड़ रही थीं।
पहली बोली - " यह मेरी चप्पल है।"
दूसरी ने कहा - " तेरी कैसे हुई? यह मेरी है। देख मेरे नाप की है "
पहली ने चिढ़ते हुए कहा - " आहा! तेरी चप्पल? इस चप्पल को देख और खुद को देख..... बड़ी आई...।" तभी दूसरी और भड़क कर चप्पल छीनते हुए बोली - " पहले तू देख कर आ खुद को, न शक्ल न सूरत बड़ी आयी मेरी चप्पल लेने।"
..... और देखते ही देखते झगड़ा हाथापाई में बदल गया। यह दृश्य देख हैरान होती पहली बिल्ली बोली - " यार ये दोनों बिल्लियाँ हमारी नकल तो नही उतार रही?"
तो दूसरी बिल्ली अपने पंजे से अपनी मूँछों को ताव देते हुए बोली - " अरे नही यार, बस कुछ लोग कभी-कभी तेरा-मेरा और तू-तू मैं -मैं के चक्कर में इंसान और जानवर का फर्क भूल जाते हैं।"
" खैर... तू ये सब छोड़, चल हम अपनी रोटी बाँटकर खाते हैं।"
" हाँ चल, यहाँ ज़्यादा रुके तो हम भी इनके जैसे बन जायेंगे। "
#आँचल
Tuesday, 16 March 2021
नज़र हटी दुर्घटना घटी
"भूख से तो मेरी भी जान निकल रही पर खाना अबतक बना नही है।" रति ए. सी. ऑन करते हुए बोलती है।
" नही बना! पर क्यों?"
" वो धनिया आज खाना बनाने आई नही।"
"पर क्यों?"
"अभी फोन आया था, सड़क दुर्घटना में उसका पति....।"
"ओह!"
" तो अब खाने का क्या?"
" एक काम करो, तुम तैयार हो जाओ आज बाहर खाने चलते हैं।" यह सुनते ही रति के चेहरे पर चमक आ जाती है और वह फूर्ती से अंदर तैयार होने जाती है ।
दोनों अपनी कार में बैठते हैं,अरुण चाभी घुमाते हुए पूछता है -
" धनिया तो अब कुछ दिन तक आएगी नही..... तो खाने का कैसे मैनेज करोगी?"
"पड़ोस वाली रोमा आंटी से बात की है,उनके यहाँ भी एक खाना बनाने वाली आती है। "
" पता नही कैसे लापरवाह लोग होते हैं जो सड़क पर गाड़ी को हवाई जहाज की तरह चलाते हैं? यह भी नही सोचते कि उनकी लापरवाही कितनों पर भारी पड़ेगी।" रति धनिया के लिए कुछ परेशान होते हुए बोलती है। अरुण रति की बात से हामी भरते हुए बोलता है -
" हाँ कुछ लोगों की लापरवाही और कुछ यमराज के रूप में पधारे ' स्मार्ट फोन ' की रहमत है। ज़रा सी नज़र हटी नही कि दुर्घटना घटी।"
" तुम धनिया की तनख़्वाह मत काटना और हो सके तो इस महीने से कुछ बढ़ाकर देंगे। पता नही अब अकेले तीन बच्चों को कैसे संभालेगी?" अरुण गाड़ी का म्यूज़िक ऑन करते हुए बोलता है।
तभी रति भूख से छटपटाती हुई बोलती है -
" जल्दी चलाओ अरुण, आज ऑफिस में भी कुछ खाने का टाइम नही मिला।"
" चला तो रहा हूँ, अब गाड़ी है हवाई जहाज तो नही। ऊपर से इतना ट्रैफिक!"
अरुण ट्रैफिक पर खीझते हुए बोलता है कि तभी उसे एक विडियो कॉल आता है। अरुण कॉल लेता है कि तभी एक ज़ोर की आवाज़ आती है। यमराज अपने काम को अंजाम देते हैं और अगले दिन के अख़बार में सड़क दुर्घटना की एक और खबर छप जाती है।
#आँचल
Monday, 15 March 2021
कुछ लिखें ऐसा जो सवेरा करे
लफ़्ज होठों पे आकर थम से गए थे,
भाव मन में कहीं ठिठक से गए थे,
खुद को भी हम रोज़ भुलाने लगे थे,
ए कलम तुझसे यूँ जुदा जो हुए थे।
एक अरसे से तुमसे मिलीं जो नही,
सवेरा भी तबसे हुआ ही नही,
आओ मिलकर हम फिर से अंधेरा हरें,
कुछ लिखें ऐसा जो सवेरा करे।
पीर स्वयं की भुलाकर जहाँ की लिखें,
वासना को तजें, साधना हम करें,
मन स्याही से जब कागज़ को रंगे,
सृजन ऐसा हो जो मंगल करे।
कभी चुपके से गिरधर को पाती लिखें,
कभी बाबुल के आँगन की माटी लिखें,
जो लिखें पद तो गुरु-पद की अर्चना हो,
छंद-छंद में तिरंगे की वंदना हो।
आओ बीते पहर के नग़्मे लिखें,
कुछ भावी सहर के सपने लिखें,
क्रांति का ऐसा कोई मंत्र लिखें,
मृत संभावना को जीवंत लिखें।
तृण को सारा संसार लिखें,
रण को नव शृंगार लिखें,
साँसों के अंतिम फेरे में
युग का नव आरंभ लिखें।
साँसों के अंतिम फेरे में
युग का नव आरंभ लिखें।
#आँचल