Wednesday, 16 June 2021

मैं करती रहूँगी प्रयास

 


जब भी जन-जागरण हेतु 

लेखनी उठाती हूँ 

और पुनः प्रयास को सज होती हूँ 

एक परोक्ष-सी लड़की की अट्टहास  

मेरे कानों में गूँजती है

और तभी अँधेरा छा जाता है,

उस घोर अंधकार से ' निराशा ' आती है,

मुझे देख मुस्कुराती है,

मेरा आलिंगन करती है

और सांत्वना देने का ढोंग करते हुए 

मुझसे कहती है -

" व्यर्थ हैं तुम्हारे सारे प्रयास। 

छोड़ दो यह पागलपन 

और सबकी तरह तुम भी 

स्वयं पर विचार करो,

स्वार्थ का शृंगार करो।"

पर मैं हठी, तंज़ निगाहों से 

उसकी ओर देखती हूँ 

फिर अधरों पर 

मुस्कान को सजाते हुए 

उससे कहती हूँ -

"मैं करती रहूँगी प्रयास।

आज भी और मेरे अंत के पश्चात भी।"


#आँचल 


9 comments:

  1. आज भी और मेरे अंत के पश्चात भी? निराशा से जूझना सरल नहीं। उससे जूझने का भाव भी अपने आप में सराहनीय है।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-06-2021को चर्चा – 4,098 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. क्षमा सहित,
      कृपया आमंत्रण १८ जून पढ़ा जाय।
      सादर।

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  4. "आज भी और मेरे अंत के पश्चात भी।" - ..
    सच में, विचार/सोच की एक चिंगारी कभी मरती कब है भला .. वो तो निरन्तर सुलगती भी रहनी चाहिए .. ना जाने किस पल बुराईयों की शुष्कता बढ़े और एक चिंगारी ही सुलगते-सुलगते धू-धू कर के जल उठे .. किसी जंगल की तरह .. शायद ...

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  5. प्रयास ही सफल होते हैं। भावपूर्ण रचना

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  6. बहुत सुंदर प्रिय आँचल | प्रयास करने में क्रांति और बदलाव की सफलता निहित है |

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  7. आत्म बल से भरी, सुंदर बोध लिए सशक्त प्रस्तुति, प्रिय आँचल।
    सस्नेह।

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