कल मेरी एक बहुत प्यारी दोस्त ने व्हाट्सएप पर मेरा हालचाल लेते हुए मुझसे पूछा - " क्या कर रही हो? "
मैंने कहा - " कविता सुन रहे।"
तभी उसने मज़ाक करते हुए मुझसे पूछा -" ये कविता कौन है? मेरी प्रतिद्वंदी तो नही?"
तब मैंने कुछ यूँ ' कविता ' का एक छोटा-सा परिचय लिखने का प्रयास किया।
चित्र का श्रेय - पलक पाण्डेय (मेरी बदमाश छोटी बहन )
कविता कौन है?
जन के क्रंदन से जन्मी,
मन के मंथन से प्रकटी,
है जो भावों की धरणी,
है जो शुभ-मंगल -रमणी,
करुणा की जिसने चूनर ओढ़ी,
संस्कारों से जिसकी गूँथी हो वेणी,
उपमा स्वयं अधरों पर लाली,
कानों में पड़ी रीति की बाली,
नयन-नयन क्रांति का काजल,
युग से युग तक झंकृत पायल,
हाथ रची है प्रेम की मेहँदी,
माथे शोभित सौभाग्य की बेंदी,
तम काट रही है कांति कंचन,
खनक रहे छंदों के कंगन,
हैं कंठहार शुभ अलंकार,
वाणी में वीणा-सी झंकार,
रण में जिसका रूप विकराल,
जो क्षण में मचा दे भीषण रार,
कवियों संग जिसका प्रेम पुनीत,
तृण-तृण में भरती जो मधुमय गीत,
जो जगा रही यह सुप्त संसार,
'कविता' स्वयं वह अनुपम राग।
#आँचल
वाह,बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteवाह! आपकी कविता ने मन मोह लिया। लेखनी यूँ ही अनवरत प्रवाहित होती रहे। शुभकामना और बधाई!!!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteरण में जिसका रूप विकराल,
ReplyDeleteजो क्षण में मचा दे भीषण रार,
कवियों संग जिसका प्रेम पुनीत,
तृण-तृण में भरती जो मधुमय गीत,
जो जगा रही यह सुप्त संसार,
'कविता' स्वयं वह अनुपम राग।---बहुत अच्छी रचना।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteमंच पर मेरी रचना को स्थान देते हुए मेरा उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteवाह ! कविता की अनुपम परिभाषा !
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
Deleteजो जगा रही यह सुप्त संसार,
ReplyDelete'कविता' स्वयं वह अनुपम राग।
.. बहुत सटीक
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
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