Saturday, 28 April 2018

कलजुग अस्तित्व


हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर
क्यू लोप हुआ तू धरती पर
कभी था कण कण में तेरा घर
अब बस कलजुग वजूद हर घर
और धर्म,पुण्य सब पाप हुआ
अधर्मासुर का राज हुआ
यहाँ सत्य,ईमान सब नाश हुआ
और दया,प्रेम का विनाश हुआ
काम,लोभ का माप बढ़ा
बंटवारे पे रोता बाप खड़ा
कोई रौंद गया आँचल ममता का
लूट गया काजल रमणी का
हरपल कुदरत का काल हुआ
गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ
और दानव ने मनु को गोद लिया
फ़िर तम का मनु सिरताज बना
तब हनन धर्म अस्तित्व हुआ
घोर कलजुग अस्तित्व से घिरी धरा
ये भूमि असुरों का लोक हुआ
मनुदानव से हर देव डरा
पापी के पाप का भरा घड़ा
और धरती पर हाहाकार मचा
अब जग ने बस तेरा नाम जपा
हे नाथ बस तेरा नाम जपा
                          #आँचल

Sunday, 22 April 2018

अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

थकी थकी सी नज़र है
और सुस्त साँसों का सफ़र है
पल प्रतिपल बढ़ते तम का डर है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

मुरझा गयी उसपर सजी सब कलिया
रौंद गया कोई उसकी महकती बगिया
आज ढल सा गया है उसका निखरा रूप
जाने कहाँ खो गया उसका सुंदर स्वरूप

कभी बन ठन कर इतराती थी
पंछी संग चचहाती थी
कुदरत संग खिलखिलाती थी
बस सँवर कर खुशियों को गुनगुनाती थी

आज तो जैसे लुट गयी है
अश्कों का अँखियों में सागर भरी है
रोगी बुढ़िया सी बिखरी पड़ी है
देख दर्द उसका कुदरत भी तड़प गयी है

फ़िर भी चुप है वो जिसके कर्मों का ये वर है
देखकर भी बदहाली मनु की अंधी नज़र है
उसी की गुस्ताखियो का ये भयावह मंज़र है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
 जुल्म को सहकर ये धरती विह्वल है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है

                                    #आँचल 

Tuesday, 17 April 2018

ज़िंदगी से कदमताल मिलाना


अहसासों के पन्ने कुछ इस कदर पलट गए
बदले से हम और हमारे व्यवहार बदल गए
शायद समय है ये खुद से हार जाने का
या दौर है ये कुछ नया कर दिखाने का
ये वक़्त की कारस्तानी है
या उस रब की मेहरबानी है
जो गलतीया गिना रहा है
या लिख रहा नयी कहानी है
क्या बिगड़ रहे हैं मेरे अल्फाज़
या सुधर रहा है जीने का अंदाज़
ये काली अमावस की रात है
या है नयी सुबह का पैगाम है
कुछ मोती माल सा टूट गया है मुझमें
ना जाने क्यू
क्या बिखरने को
या नए ढंग से पिरोए जाने को
क्यू भटका भटका सा ये मन है
कही खो जाने को
या खुद में कुछ नया ढूंढ लाने को
क्या कुछ बदल गया है मुझमें
या कुछ बिगड़ा सँवर गया है मुझमें
कहीं नाराज़ तो नही ज़िंदगी
या बन गयी सख़्त कुछ सिखाने को
क्यू थम गए कदम
मंज़िल की राह में चलते चलते
क्यू रुक गए हैं हम
इन राहों पर बढ़ते बढ़ते
शायद ऐसे ही बढ़ता है कारवाँ मंज़िल की ओर
कभी गिरते कभी उठते
कभी बढ़ते कभी ठहरते
बदलाव के दसतूर को निभाते निभाते
ज़िंदगी से कदमताल मिलाते मिलाते
शायद ऐसे ही बढ़ता है कारवाँ
खुद को सिखाते सिखाते
शायद इसलिए रुक गए हैं कदम
शायद इसलिए थम गए हैं हम
खुद को कुछ सिखाने को
इस ज़िंदगी से कदमताल मिलाने को
शायद इसलिए बदल गए हैं हम
     
                                       #आँचल 

Sunday, 15 April 2018

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए -3
कोई तो ऐसा सुर लग जाए -2

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए

मै जो नाचूँ तू ताल मिलाए -2
पग एसी घुंघरू बँध जाए

मैं जो नाचूँ तू ताल मिलाए
पग एसी घुंघरू बँध जाए

जो चढ़ाऊँ तुझे मिल जाए -2
कोई तो ऐसा गुल खिल जाए

जो चढ़ाऊँ तुझे मिल जाए
कोई तो ऐसा गुल खिल जाए

मैं जो हँस दूँ तू मुरली बजाए -2
ऐसा भी कोई सुख मिल जाए

मैं जो हँस दूँ तू मुरली बजाए
ऐसा भी कोई सुख मिल जाए

मैं जो रो दूँ तू आँसू बहाए -2
कोई तो ऐसा गम मिल जाए

मैं जो रो दूँ तू आँसू बहाए
कोई तो ऐसा गम मिल जाए

हर कर्म में तुझको ही ध्याए -2
शायद कभी तू मिल जाए

हर कर्म में तुझको ही ध्याए
शायद कभी तू मिल जाए

मेरा जीवन सफल बन जाए
मेरी भक्ति को फल मिल जाए
चित मेरा भी चैन को पाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए

मेरा जीवन सफल बन जाए
चरणों की तेरी धूल मिल जाए

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए -3
कोई तो ऐसा सुर लग जाए -2

मैं जो गाऊँ तुझे छू जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए
कोई तो ऐसा सुर लग जाए

जय श्री कृष्णा
                                       #आँचल 

Friday, 13 April 2018

डर है मुझे

हाँ डर है मुझे
इस बदलते कायनात से
मरते जन के ज़स्बात से
बिखरते सबके अरमान से
इस बदनसीब जहान से

हाँ डर है मुझे मानवता के कब्रिस्तान से
हाँ डर है मुझे कलयुग के इस अहसास से

जब मंडप पे लगते हैं फेरे
दिखावटी सौगात के
और गरीब की बेटी कहीं
जलती रिवाजों की आग में
तब डर है मुझे
इस लालच में अंधे समाज से

कतरे जाते हैं पंख कहीं
नन्हे चिड़ियों के अरमान के
और झुलस जाते हैं कोमल हाथ
 मजदूरी की ताप से
तब डर है मुझे
भविष्य के बिगड़ते हालात से

जब खून पसीने से सिंचते
खेत और खलिहान कई
पर फ़िर भी कर्जो में डूबकर
फाँसी पर लटके किसान कई
तब डर है मुझे
ऊंचे दफ्तर में बैठे हैवानों से

जब एक बैठे ए. सी. गाड़ी में
और ज़ेब गरम हो नोटों से
दूजा चौराहे पर भटके
लिए कटोरा हाथों में
तब डर है मुझे
औकात के बड़े फ़ासले से

जब बढ़ती आबादी के संग
बढ़ते उद्योग और कारख़ाने
और बढ़ते दामों के संग
जाती कुदरत के बच्चों की जान
तब डर है मुझे
होते प्रकृति के विनाश से

जब बच्चे खड़े हो सिर उठाए
और झुके गर्दन माँ बाप की
वृद्धाश्रम में हो निवास ईश्वर का
और तनहा कटे बुढ़ापा
तब डर है मुझे
संस्कार हीन भारत से

जब डगर डगर पे खतरे हों
हर घर दुःशासन पसरें हों
तो लाज बचाती हर बिटिया
वर माँगे ना जनमे कोई बिटिया
तब डर है मुझे
आज़ाद घूमते दरिंदों से

जब जाती के नाम लुटे अधिकार
काबीलीयत पर है ग्रहण अपार
राजनीति में हुआ बवाल
आरक्षण की जब लगी आग
तब डर है मुझे
की जल ना जाए कोई मति होशियार

जब धर्म का रंग बदल गया
कर्तव्य से संप्रदाय हुआ
फ़िर चली मजहबी आँधी
और हिंदू मुस्लिम में फूट पड़ी
तब डर है मुझे
बँटते हुए भगवान से

हाँ डर है मुझे स्वार्थी इंसान से
हाँ डर है मुझे मानव में मरते इंसान से

हाँ डर है मुझे
हर रोज़ उठते तूफ़ान से
चूर होते सभी अरमान से
बेबसी के हालात से
बढ़ते हुए शैतान से

हाँ डर है मुझे मानवता के कब्रिस्तान से
हाँ डर है मुझे कलयुग के इस अहसास से
हाँ डर है मुझे हर पल हर क्षण अँधेरे में डूबते इस जहान से
हाँ डर है मुझे
डर है मुझे
डर है मुझे

                                        #आँचल 

डर की सीख


डर का कोई घर नही है
कब आता कोई खबर नही है
हर मन में छुपा होता है
सामने आने से डर डरता है
थोड़ी झिझक से थोड़ी हिचक से
हर कोई इसे छुपाता है
पर मत भूलना एक बात कभी
हर ढंग में हर जंग को
ये डर ही तो जिताता है
अगर रहना हो तुझे सावधान
तो डर का ज़रूर कर सामना
फ़िर साहस के तुझको पंख लगेंगे
हिम्मतों के पुल बँधेंगे
डर को भी गुरु बना लेना
फ़िर हर मुश्किल को हरा देना
डर से घबराने की कोई बात नही
डर को अपनाने की बस बात सही
दंभ का भी करता है विनाश यही
तो डरने से कभी मत चूकना
हर बार डर से जीतना
फ़िर विजय सिंघासन पे तू बैठना
डर से सदा बस सीखना

                          #आँचल 

Thursday, 12 April 2018

काश अभी थम जाए ये पल

काश अभी थम जाए ये पल
और ना आए कभी वो काला कल
जब पेड़ों की ना कोई छाँव होगी
बगिया में भौंरो की ना गूँज होगी
कोयल की ना कोई कूक होगी
ना होगी बागीचों में आम की चोरी
ना होगी धरा पे फूलों की रंगोली
जब होगी महामारी,अकाल,भुखमरी
नदियों में होगी जलाचर की बलि
कुदरत की छवि ना जब सुंदर होगी
भयानक जहान की सब घड़िया होगी
दूषित हवा में ना जब साँसें होंगी
और कयामत की चहूँ ओर झलकियां होगी
मनु के बोए काँटों की खिली बगिया होगी
काश कभी ना आए वो मंजर
समय ने बदली हो जब करवट भयंकर
काश अभी थम जाए ये पल
और ना आए कभी वो काला कल
काश अभी थम जाए ये पल
काश........
                           #आँचल

Wednesday, 11 April 2018

दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे

ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
कितने भी हो जखम
हँस के सह लेंगे हम
अगर हो मुश्किल घड़ी
फ़िर भी लड़ लेंगे हम
साथ लड़ने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
ये दूरी और फ़ासले
इनको तू ही नाप ले
तेरी यादों में आकर
हम साँस लें
याद करने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
तुझसे रूठेंगे हम
तुझको मनायेंगे हम
यूँही लड़ते झगड़ते
संग चल देंगे हम
साथ चलने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे 
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
सारे शिकवे शिकन
थोड़े हलके सितम
सब कुछ भुला देंगे हम
पर ना खफ़ा होंगे हम
माफ़ करने का भी एक बहाना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती को तुम्ही संग निभाना रहे
हर जनम अपना ये याराना रहे
ए खुदा है दुआ ये अफ़साना रहे
जब तलक तेरी ज़िंदगी में जीना रहे
दोस्ती का यही एक ठिकाना रहे -3
                                  #आँचल

Tuesday, 10 April 2018

मेरा वालिदैन है

आप के कदमो तले पलाश काश बिछा दुँ मैं
आपकी इस ज़िंदगी को महकी बगिया बना दूँ मैं
आपके बहते अश्क को माथे अपने चढ़ा लूँ मैं
तू ही जन्नत
तू खुदा है
तुझमें ही सारा जहाँ है
हाथ सिर पे जो फेरे तू
तक़दीर अपनी पलट गयी
साथ मेरे जो हो ले तू
ये कायनात मेरी हुई
पैरों पे तेरे सिर झुका के
रब को भी आगे झुका लूँ
फ़ितरतें एसी है तेरी राख भी पारस हुआ है
आग भी आगे तेरे चाँद सा शीतल हुआ है
ए बादलों के बादशाह
ए इस जहाँ के शंहशाह
माफ़ कर मेरी भूल को जो ना मानूँ तेरे उसूल को
हक़ दूंगी ना पहले तुझे
मेरे रब की पहले इबादतें
मेरी माँ से पहली चाहतें
पिता से सारी राहतें
इनकी करू बस इबादतें
इनसे ही सारी रहमतें
मेरी बरकत इन्हीं की ज़हमतें
ए खुदा तुझसे बड़ा मेरा वालिदैन है
ए खुदा तुझसे बड़ा मेरा वालिदैन है -2
                                   #आँचल                       

Sunday, 8 April 2018

कब आओगे साँवरा



कब आओगे साँवरा -2

जस भौंरा ना गाए कुसुम बिन -2
ना नाचे मयूरा बिन बदरा
तस मोरा ज़ियरा भी ना लागे -2
ना लागे बिन श्याम के भजना

कब आओगे साँवरा -2

मैं पंछी तुम डारी मुरारी -2
पंख लगे तो गगन बिहारी
जस नभ वट पंछी को सहारा -2
एक श्याम पिया होई हमारा

कब आओगे साँवरा -2

तू निर्मोही प्रीति ना जाने -2
प्रेम के राही जगरीत ना माने
बिन रसमो की मैं तेरी लुगाई -2
मन से मन की भयी सगाई

कब आओगे साँवरा -2

मैं बिखरी बिखरी साँवरिया
तड़प में तेरे भयी बाँवरिया
नित बैठी रस्ता निहारूँ
श्याम रात दिन सब गिन डालूँ
नम अँखीया अब सूख चली हैं
क्यू लागत तोहे देर भली है
अब ना लो मोऱी प्रीत परीक्षा
दे दो प्रभु मोहे रहम की भिक्षा
जो तुम ना आओगे हरी
तोरे प्रेम में डूब के मैं आऊँगी
छोड़ के बंधन तन आऊँगी
छलकत नयन के भाव बुलाए
हिय भी बस एक राग ही गाए
कब आओगे साँवरा

कब आओगे साँवरा -3

                                          #आँचल 

Friday, 6 April 2018

तेरी उड़ान

भर लेगा तू एसी उड़ान
जो देखें ज़माने कई
बदलेगा जो लकीरों को
तू लिख दे कहानी नयी
ये हिम्मतों का दौर है
जग जीतने की होड़ है
रख ऊँचा जज़्बा,ईमान
जीतेगा तू सारा जहान
पंखों का तू मोहताज ना
सच्ची है तेरी साधना
खुद ही उमंग के पंख लगेंगे
सलामी को सिर लाखों झुकेंगे
सारा है तेरा आसमान
तेरी उड़ान की यही दास्तान
                        #आँचल