नमस्कार मैं 'आवाज़',
करती हूँ उन मौन आवाज़ों का सम्मान,
जो देश अथवा समाज में घटित घटनाओं पर साध कर मौन
करते हैं मात्र कल्पित जगत का ध्यान।
क्या तीज-त्योहार,व्रत-उपवास तक ही सीमित है उनका सामाजिक ज्ञान?
अरे नहीं!इन्हें तो ज्ञात है सारा गणित-विज्ञान,
फिर मौन रहकर क्यों बनते हैं विषयों से अंजान?
शायद दिखावे में नहीं करते हैं विश्वास।
तभी तो बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में जो शिरकत करते हैं,
दो-दो,तीन-तीन महीनों में अपनी किताबें छपवाते हैं,
राजा साहब की नीतियों से लेकर जूतियों तक का
मजबूरन गुणगान कर
किसी तरह दो जून की रोटी के जुगाड़ में
मोटी-मोटी गड्डियों से अपनी जेबें भरते हैं,
मंचों तथा ब्लॉग मंचों पर इतिहास के पृष्ठों को बदलते हैं,
धर्म के रक्षक बनते हैं,
वो ज्ञानवान,शूरवान साहित्यिक सिपाही
भाषा,साहित्य तथा समाज
के उचित उत्थान में
अपना उचित योगदान देने की
हार्दिक इच्छा रखते हुए भी
बलात्कारियों के सम्मान पर
मौन रह जाते हैं,
ज़ात-धर्म के नाम पर
बढ़ रही नफ़रत पर
मौन रह जाते हैं,
बढ़ती महँगाई पर
मौन को और बढ़ाते हैं,
निर्दोषों को मिल रहे दंड पर तो
बोलते-बोलते रह जाते हैं,
कुपोषित बच्चों तथा शोषित जनता
की आह! से लेकर हाहाकार तक
इन्हें विचलित करती है
पर क्या करें बेचारे!
मजबूर हैं
बनने को अंधे,गूँगे और बहरे।
#आँचल
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 20 अक्टूबर 2022 को 'मंज़र वही पर रौनक़े-महफ़िल नहीं है' (चर्चा अंक 4581 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 2:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
ReplyDeleteअरे आंचल जी इतना भी खरा खरा बोलना अच्छा नहीं हैं नहीं तो धर्म का अफ़ीम बांटने वाले बड़े मंचों के संचालक और पोंगे ज्ञानी नाराज़ हो जाएंगे।
ReplyDeleteअरे सर!ये तो अच्छा है ना।
Deleteजहाँ इन पोंगे ज्ञानियों ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की वहीं इनकी पोल खुल जाएगी।
प्रणाम 🙏
मौन केवल मूर्खों का ही भूषण नहीं है बल्कि चाटुकारों का, भाड़े के टट्टुओं का और बिना रीड़ की हड्डी वालों का भी, सबसे बड़ा, सबसे मूल्यवान आभूषण है.
ReplyDeleteइस मंच पर ऐसे साहस का प्रदर्शन असाधारण है। इस साहस को नमन। आपकी लेखनी में सत्य की बाती सदैव जलती रहे, इससे प्रस्फुटित होने वाले ज्योति सदैव अक्षुण्ण रहे, मैं यही प्रार्थना करता हूँ।
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