"हे राम! हे राम! राम! राम! हे राम!"
अपनी मड़ई के बाहर डेहरी पर किवाड़ से सर टिकाए अचेत-सी बैठी ननकी फुआ जाने कौन से राम को रह-रह कर पुकार रही थी।
"फुआ!ओ फुआ!भीतर चल।सवेरे से यहीं बैठी प्राण सुखा रही है।"
पड़ोस की सुखिया की बहु ननकी को झकझोरते हुए पुनः सचेत अवस्था में लाने का प्रयास करने लगी।
"सुखिया की बहु राम लौटा?"
"नहीं फुआ,लौट आएंगे।"
"नहीं,नहीं लौटेगा राम।वो राक्षस... प्रधान का बेटा... वो कल मेरी बेटी को खा गया,आज मेरे बेटे को भी खा जाएगा।"
"नहीं फुआ,कुछ नहीं होगा,तुम उलटा क्यों सोचती हो? ये गए हैं न ढूँढ़ने,अभी देखना तुम्हारे बेटे के साथ ही लौटेंगे।"
सुखिया की बहु ननकी फुआ को समझाने का प्रयास करती है पर गाँव के बाहर हो रही रामलीला से आती आवाज़ें(रावण का अट्टहास और जय श्री राम का जयघोष)उसे फिर भयभीत कर देती हैं।
"कल भी ऐसे ही 'जय श्री राम' के नारे लग रहे थे।इसी आवाज़ के पीछे नौहरा(फुआ की बेटी )की चीखें दब गई,कोई नहीं आया सुखिया की बहु,कोई नहीं आया।
वो राक्षस... वो रावण.. वो प्रधान का बेटा उसे मेले में से उठा ले गया और किसी ने नहीं सुना?"
"हम छोटे लोगों की चीखें कौन सुनता है फुआ?"
"क्या दोष था उसका सुखिया की बहु? वो रावण जो रामलीला में राम बनने का ढोंग कर रहा है,उस ढोंगी की सीता न बनी बस यही पाप हो गया उससे सुखिया की बहु।बस इसी पाप ने उसके प्राण ले लिए।"
"राम जी न्याय करेंगे फुआ। तुम भीतर चलो।"
"कोई न्याय नहीं करेंगे राम जी।"सुखिया कुछ भरे गले के साथ,कुछ क्रोध में बोलते हुए आता है।
"फुआ तुम्हारे राम जी कोई न्याय नहीं करेंगे।हम गरीबों के भाग्य में ये रावण ही लिखें हैं।"
ननकी घबराते हुए सुखिया से पूछने लगी -
"सुखिया मेरा राम कहाँ है रे?"
"फुआ प्रधान के घर के बाहर जब रामदास थाना-कचहरी की धमकी देने लगा तो प्रधान के आदमियों ने उसे बहुत पीटा।रामदास चिल्लाता रहा और उसकी आवाज़ 'जय श्री राम' की गूँज में दबा दी गई।"
ननकी बेसुध खड़ी सुन रही थी। सुखिया की बहु ने पूछा-
"तो अब कहाँ हैं? तुम्हारे साथ नहीं आए?"
"नहीं,प्रधान के आदमियों ने उसे रावण के पीछे बाँध दिया है। प्रधान ने कह दिया है कि कोई पूछे तो धर्मद्रोही बता देना। प्रधान का बेटा जब रावण दहन करेगा तब रामदास भी..."
उधर गाँव के बाहर हो रही रामलीला की आवाज़ें ननकी के कान में पड़ने लगी। रावण के "हे राम!"कहकर गिरते ही वहाँ इकट्ठा पूरा गाँव एक स्वर में 'जय श्री राम' का जयघोष करने लगा।ननकी अपने आँसू पोंछ रामलीला मैदान की ओर दौड़ने लगी। प्रधान का बेटा रावण के पुतले पर धनुष साधे खड़ा था।ननकी की दृष्टि मंच पर रखे रावण के मुकुट पर पड़ी।जैसे ही प्रधान के बेटे ने बाण छोड़ा ननकी ने प्रधान के बेटे को रावण का मुकुट पहना दिया।उधर रावण के पुतले के साथ रामदास भी जलने लगा और इधर पूरा गाँव इस जीवित रावण को देखने लगा। प्रधान के बेटे ने तमतमाते हुए पूछा-
"यह क्या किया तुमने?"
ननकी ने पागलों की तरह ठहाके लगाते हुए कहा -
"देखो गाँव वालों,कलयुग में 'राम दहन' होता है 'रावण दहन' नहीं।"
#आँचल
बहुत मार्मिक । सच्चाई बयान करती हुई लघु कथा ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 10, अक्टूबर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
चिंतनपूर्ण विषय पर सराहनीय कहानी ।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक कहानी…दिल दहल गया …यही है आज की सच्चाई 😔
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteरेखा श्रीवास्तव
बदलते समय के साथ कुछ बदला क्या
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली कहानी ,बहुत पसंद आई।
ReplyDeleteविचारणीय कहानी.
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी सही कहा राम के मुखौटे में रावण जिंदा है ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी कहानी।
ReplyDeleteवाह आँचल ! तुमने इस लघु-कथा में समाज में व्याप्त दमन, शोषण और धार्मिक अनाचार की विभीषिका का यथार्थ चित्रण किया है !
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