कुछ आँखों में शर्म बाक़ी हो
तो उतार फेंकिए,
बिकी स्याही से काग़ज़ को
सजा लीजिए,
हाँ,लिख दीजिए नया छंद कोई,
फिर लाखों में उसको नीलाम कीजिए।
राजा के दुर्गुण का बखान कीजिए,
भर-भर झोली फिर इनाम लीजिए,
लाशों के ढेर छुपा दीजिए
अरे,नर्क को स्वर्ग बता दीजिए!
बीज नफ़रत के बोए,लहलहाने लगे
गली-सड़कों पे लहू यूँ बहाने लगे,
कहीं पेड़ों पर लटकी मिली बेटियाँ,
कहीं गुंडे भी गोली बरसाने लगे,
ऐसी बातों से नज़रें चुरा लीजिए।
जब कर्तव्यों की उड़ने लगीं धज्जियाँ
तब लिखना न "जलने लगीं बस्तियाँ",
और "आपस में भिड़ने लगीं जातियाँ"
इन बातों पर थोड़ा बस ध्यान दीजिए,
जलती बस्ती पर रोटी बना लीजिए,
आग को मज़हबी हवा दीजिए,
दोषियों की स्तुति-वंदना कीजिए,
अरे लिखिए,न ख़ुद से गिला कीजिए,
गुरु बन कर सभी को दिशा दीजिए,
धर्म क़लम का ऐसा निभा लीजिए
चोला झूठ का सच को ओढ़ा दीजिए।
आंचल, दूध के धुले देशभक्तों की देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न?
ReplyDeleteतुमको घोर पाप लगेगा लेकिन तुमको इस से कई लाभ भी होंगे -
तुमको जेल में मुफ़्त भोजन मिलेगा, धारीदार कपड़े मिलेंगे और आवासीय सुविधा भी मिलेगी
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