रिश्तों की डोर वो क्या जाने
जिसने बिखरे रिश्तों को नही देखा
यारों का शोर वो क्या जाने
जिसने सूनी शामों को नही देखा
नही देखी हो जिसने रातें जागकर
वो दीदार सुबह का क्या जाने
क्या जाने वो जश्न जीत का
कभी हार को जिसने नही देखा
नही देखा जिसने माँ का आँचल
फटकार पिता की नही देखा
क्या होते हैं माँ-बाप वो जाने
जिसने हाथ सिर पर इनका नही देखा
नही देखे जिसने खेल खिलौने
बचपन का मोल वही जाने
एक रोटी का मोल वो क्या जाने
कभी खाली थाली को जिसने नही देखा
अभावों के भाव वो क्या जाने
अभावों को जिसने कभी नही देखा
हर भाव जीवन का वही जाने
अभाव को जिसने कभी है देखा
#आँचल