Tuesday, 14 October 2025

यशोधरा हूँ मैं

  



कहो सखी 

तुम क्यों न गई 

देहरी के उस पार?

बुद्ध गए हैं जहाँ 

त्याग के यह संसार 

मुक्ति की चाह में!


नहीं सखी!

अभी समय है मेरे जाने में।

अभी तो चूल्हा जलाना है,

पकाना है साग,

प्रेम और ममता का 

अभी कैसे करुँ मैं त्याग?

देखो सन गए हैं राहुल के 

धूल में हाथ,

और ये बिखरे बाल!

अभी तो करना है मुझे 

इसके भविष्य का विन्यास।

यशोधरा हूँ मैं!

मुझे ढोना है अभी 

बुद्ध के छोड़े हुए कर्तव्यों का भार 

और मुझे ही बुहारना है 

देहरी के दोनों पार का संसार।


#आँचल 

 

3 comments:

  1. इस स्थल पर यशोधरा बुध्द से भी आगे निकल आती है और शक्तिपुँज सी उसकी आभा संपूर्ण जग को सुषमित करती प्रतीत होती है ।

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  2. इस स्थल पर यशोधरा बुध्द से भी आगे निकल आती है और शक्तिपुँज सी उसकी आभा संपूर्ण जग को सुषमित करती प्रतीत होती है ।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 16 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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