Wednesday, 24 September 2025

आज की स्त्री



आज की स्त्री 

ऑफ़िस जाती है,

प्लेन उड़ाती है,

दौड़ लगाती है,

सीमा पर लड़ती है,

आती है घर 

भोजन पकाती है,

बर्तन माँजती है,

पालना झुलाती है,

सँवारती थी जो कल तक घर 

आज वो घर सँभालती है,

आज की स्त्री 

दोहरा जीवन जीती है,

दुगुनी आँच को सहती है,

नाप ले चाहे पूरा अंबर 

पिंजरे में ही रह जाती है।


#आँचल 



3 comments:

  1. सुंदर | वैसे आज का पुरुष भी थोड़ा थोड़ा काम कर देता है घर पर :) जैसे बर्तन झाड़ू पोंछा :) :)

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण

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