Wednesday, 29 October 2025

सुनो दुष्यंत

 

सुनो दुष्यंत!

मैंने तो बड़ी ख़ामोशी से 

तुम्हारी ग़ज़लों में धधकती

क्रांति की आग को बस 

एक बार चखना चाहा था 

पर तुमने तो इन्हें 

शांत रहना सिखाया ही नहीं!

और तुम्हारे ये शब्द 

मेरे भीतर प्रवेश करते ही 

कोसने लगे

कायरता के क्षणों में चुने

गए मेरे मौन को 

और मैं हतप्रभ-सी 

जब इसे शांत न कर सकी 

तो झुलस गई पूरी की पूरी 

अपने खोखले मौन के साथ।

#आँचल

Tuesday, 14 October 2025

यशोधरा हूँ मैं

  



कहो सखी 

तुम क्यों न गई 

देहरी के उस पार?

बुद्ध गए हैं जहाँ 

त्याग के यह संसार 

मुक्ति की चाह में!


नहीं सखी!

अभी समय है मेरे जाने में।

अभी तो चूल्हा जलाना है,

पकाना है साग,

प्रेम और ममता का 

अभी कैसे करुँ मैं त्याग?

देखो सन गए हैं राहुल के 

धूल में हाथ,

और ये बिखरे बाल!

अभी तो करना है मुझे 

इसके भविष्य का विन्यास।

यशोधरा हूँ मैं!

मुझे ढोना है अभी 

बुद्ध के छोड़े हुए कर्तव्यों का भार 

और मुझे ही बुहारना है 

देहरी के दोनों पार का संसार।


#आँचल