बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए
हर रोज़ मेरे भीतर
एक कविता जन्म लेती है
और हर रोज़ अपने भीतर
मैं तोड़ती हूँ एक कविता का दम
नहीं,और कुछ नहीं बस
कुछ वक़्त का है सितम
कुछ रंग घुले हैं कम
और कुछ ताज़ा ही रह गए
बीते ज़ख़्म।
#आँचल
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