Saturday, 21 December 2024

कुछ तो बात हुई होगी

कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती,
कभी कोई गाँठ खुली होगी 
जो बाँधे अब नहीं बँधती,
बंजर है जो आज वहाँ 
कभी बरसात हुई होगी,
कुछ तो बात हुई होगी,
जो अब कोई बात नहीं होती।

कुछ तो राख बची होगी 
जहाँ अब 'आग' नहीं जलती 
कोई फ़रयाद रही होगी 
जहाँ अब 'याद' नहीं रहती,
जज़्बात के सूने आँगन में 
कभी मुलाक़ात हुई होगी,
कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती।

कुछ तो 'चाह' रही होगी 
जो अब कोई चाह नहीं होती,
काग़ज़ की नाव रही होगी
जो दूर तलक नहीं चलती,
गुलज़ार झूठ के गुलशन में 
काँटे हैं, बहार नहीं होती,
कुछ तो बात हुई होगी 
जो अब कोई बात नहीं होती।

#आँचल 


Saturday, 14 December 2024

मुर्दा रिश्तों का यह ज़माना


ख़ुदी में मशरूफ़ मुर्दा रिश्तों का यह ज़माना,
यहाँ कहाँ अब मोहब्बत के गुलाब खिलते हैं,
घरों के आँगन भी बँटने लगे हों जहाँ
अब कहाँ वहाँ किसी की छत के मुंडेर जुड़ते हैं
हाँ, मिले थे हम-तुम भी कभी ऐसे जैसे 
कहीं कोई दरिया और समुंदर मिलते हैं 
पर आज मिले हैं ऐसे-जैसे ब-मुश्किल 
किसी नदी के दो किनारे मिलते हैं।

#आँचल



Sunday, 1 December 2024

सीपी में ही रह गए मोती

सीपी में ही रह गए मोती 
कोई न शृंगार हुआ,
बाग़-बाग़ में बिन फूलों के
अबकी बरस मधुमास लगा,
लिखे भाव पर काग़ज़ कोरा,
स्याही का न रंग चढ़ा,
खिली धूप में भी देखो 
अँधियारे ने राज किया,
बिन बसंत के ऋतुएँ बीतीं,
कोकिल का न गान सुना,
झर-झर बीती बरखा फिर भी 
सावन सूखा बीत गया,
नगर-नगर की डगरी नापी 
गाँव हमारा छूट गया,
भोर हुई है जाने कब की!
मन का सूरज डूब गया,
चित है पर चैतन्य नहीं,
बिन जिए ही जीना सीख लिया।

#आँचल