एक मैं हूँ
और मेरे कितने सारे 'मैं'
जो मुझमें हर क्षण बनते और बिगड़ते हैं
और रोज़ मुझ ही से लड़ते हैं
कुछ बिल्कुल मुझसे लगते हैं
और कुछ मुझसे अलग
जिनको मैं पहचान ही नही पाती
इन अनेक 'मैं' में से
मैं कौन हूँ यह कभी जान नही पाती
पर झूझती हूँ रोज़ इतने सारे 'मैं ' के साथ
मूल 'मैं' की तलाश में।
#आँचल