षड्यंत्रों के आगे भविष्य के सूरज को डूबे देखा है,
फैले हुए इन हाथों में लुक-छुप करती रेखा है,
इन नन्ही-नन्ही आँखों में रंगों को
मरते देखा है,
क्यों माँओं को भी इनके इनका स्वप्न मारते देखा है।
#आँचल
मैं सजनी बनी श्याम पिया की
अद्भुत कर शृंगार चली
मैं सजनी बनी श्याम पिया की।
प्रीत-डगर पे चलते-चलते
झाँझर रीत की तोड़ चली
छूट गई माया कंचन की
वैराग्य की चूनर ओढ़ चली
पंच-रत्न की सजा के वेदी
सप्त-भुवन को लाँघ चली
मैं सजनी बनी श्याम पिया की
अद्भुत कर शृंगार चली।
#आँचल