हम स्त्री-पुरुष हो सकते हैं,
रूप-कुरूप हो सकते हैं,
छोटे-बड़े हो सकते हैं,
जातियों में बँट सकते हैं,
मज़हबों में रंग सकते हैं,
संपत्ति के नाम पर
आपस में लड़ सकते हैं,
ज़मीर को अपने हम
ताक पर रख सकते हैं,
प्रांत,वाद और पंथ आदि
कितने ही पात्रों में ढलने
की कला रखते हैं,
हम कुछ भी कर सकते हैं,
कुछ भी बन सकते हैं
बस हम इंसान
सिर्फ़ इंसान नहीं बन सकते हैं।
#आँचल
वैसे इंसान बने रहना बड़ा ही कठिन है परंतु फिर भी कोशिश अनवरत जारी है। शानदार रचना हेतु आपको साधुवाद।
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