Tuesday, 3 May 2022

' हरि ' नाम अति मीठो लागे।

 




खीर न पूरी न माखन मिसरी 

कछु स्वाद न मन को भावे री,

' हरि ' नाम अति मीठो लागे 

छक लूँ पर मन न माने री।


सखी री कौन उपाय करूँ?

कौन सो बैद्य बुलाऊँ री?

व्याकुल मन की पीड़ा को जो 

दे पुड़िया निपटावे री।


रह- रह नयन बरसात करे,

सावन देख लजावे री,

डूबी! डूबी! विरह-बाढ में 

हरि बिन कौन बचावे री?


कोई कहे पागल,कोई कहे ढोंगी

जग में भई हँसाई री,

भगत परीक्षा देत न हारी 

हरि के लगी थकाई री।


मेहंदी,काजर,माथे की टिकुरी

कछु न मोहे सुहावे री,

बृज की रज से शृंगार करूँ 

रज ही रज में रम जाऊँ री।


न जागूँ,सोऊँ,गाऊँ,रोऊँ

बस नाम 'हरि' दोहराऊँ री,

अंत समय पिय याद करें तो  

पिय के लोक को जाऊँ री।


#आँचल 

5 comments:

  1. अति सुन्दर ! भक्ति-भाव से परिपूर्ण रचना.

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  2. अत्यंत मनमोहक रचना है दीदी ⛳

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  3. सुंदर सृजन

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  4. बहुत बहुत सुन्दर

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