Tuesday, 10 May 2022

है अब भी कोई वीरवान?

 जब समाज में मूल्यों का पतन हो जता है,मर्यादा के बंधन टूट जाते हैं ,सत्य का सूर्य निस्तेज हो जाता है,चारों ओर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित हो जता है और धर्म अधर्म के सागर में बस डूबने को होता है तब सदा धर्म के पक्ष में खड़ी होने वाली लेखनी इस काल खंड के नायक को ढूँढ़ते हुए सभी धर्मात्माओ एवं वीरों को ललकारती है और पूछती है कि "  है अब भी कोई वीरवान? " जो इस अंधकार का समूल नाश कर भटके साधकों को उचित दिशा देते हुए मनुष्य को उनका कर्तव्य स्मरण करा सके। बस इसी प्रयास में लेखनी जो कहती है वो अब इन पंक्तियों में पढ़िएगा 🙏





मूल्य हुए सब धूल,

कौन अब धूल को माथे पर धरते?

ढोंगी चंदन घिस-घिस सजते,

बचते भगत शृंगार से,

भजते राम नाम को रावण,

तुलसी डरते राम से,

राम नाम की लाज बचाते 

हनुमान हैरान से,

रट-रट पोथी -पन्ने कितने!

मूरख जब ज्ञानी लगते,

ज्ञान-गुणी जब प्राण बचाकर 

कंद्राओं में छुप बैठे,

ऐसे घनघोर अँधेरे में अब 

वाल्मीकि भी क्या लिखते?

दंतहीन हो गए गणेश 

अब व्यथा धर्म की क्या लिखते?

तब मानव ने भी करुणा त्यागी,

मर्यादा ने चौखट लाँघी,

काली घर में कैद हुई 

और आँगन से तुलसी भागी,

तब शेष राष्ट्र में ' कायर ' हैं बस 

या है अब भी कोई वीरवान?

जिसके एक भरोसे पर 

होगा कल फिर से नव-प्रभात।


#आँचल 

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