बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए
नाटकों के पात्र हैं हम सब,
नही किसी पात्र के दर्शक,
हमारा कर्म है अभिनय,
हमारा धर्म है अभिनय,
हमारे कर्म का,सत्कर्म का,
नीयत,नीतितत्व का एक मात्र वह दर्शक,
जिसको रिझाने के लिए उसने चुना हमको,
हम भूलकर उसको
कहें हर पात्र को दर्शक!
#आँचल
नाटक करने वाले दर्शक सत्य है
सबको अपनी-अपनी भूमिका निभानी होती है संसार के इस रंगमंच पर
जीवन ही रंगमंच की तरह हैबहुत सुंदर रचना
नाटक करने वाले दर्शक सत्य है
ReplyDeleteसबको अपनी-अपनी भूमिका निभानी होती है संसार के इस रंगमंच पर
ReplyDeleteजीवन ही रंगमंच की तरह है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना