Sunday, 27 December 2020

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

 


वो कभी प्रेम से चूमे गए,

कभी आँसुओं में भीगे ख़त ,

वो सूखे गुलाब जिनमें 

ताज़ा है इश्क की महक,

वो तुम्हारे साथ खिंचवाई तस्वीरें 

वो नोक-झोक,वो दलीलें,

वो तुमसे रूठ के जाना 

और तेरा आकर मनाना,

वो हाथों में हाथ थाम 

मीलों टहलना,

वो तेरे फोन के इंतज़ार में 

दिनभर तड़पना,

और छुपकर तुमसे 

सारी रात बतियाना,

वो मेरी नादानियों पर 

तुम्हारा भड़कना,

परवाह में मेरी रातों को जगना,

वो कंधे पर तेरे 

मेरा सर रखकर सोना,

ये कुछ भी तो नही 

मेरे पास ओ कान्हा,

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

#आँचल 

Tuesday, 22 December 2020

बिन प्रयास न होगा अब प्रभात


ध-धू करके जल रही आग,
सुख-स्वप्न हुए जन के सब खाक,
उठ रहा घोर चहुँ ओर चीत्कार,
सुनता न कोई यह दारुण पुकार,

घनघोर घिरा है जो अंधियार 
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।

कर मर्यादाएँ सब छार-छार 
सौ झूठ पर जो ठनी रार,
हुआ सत्य पर फिर प्रहार
और सरदार हुए सारे मक्कार,

तब लगा रही भारती गुहार 
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।

जो संकट में राष्ट्र को जान के,
सो रहे हैं चादर तान के,
कोई डालो निद्रा में व्यवधान,
और जागरण का करो शंखनाद,

हो जाओ अब रण को तैयार,
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।

हे रणभूमि में मौन खड़े 
कविवर क्यों रण से विमुख हुए?
जब लूटे दिनकर को व्यभिचार 
निकालो तुम भी तरकश से बाण,

और जला लो क्रांति की मशाल 
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।

हो एकमत एक प्राण बनो,
अधिकारों पर अपने अधिकार करो,
संक्रांत का तत्क्षण दान करो,
हो स्वयं दीप्त प्रकाश करो,

तब होगा तम का पूर्ण विनाश,
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात,
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।

#आँचल