Wednesday, 22 April 2020

क्या काग़ज़ से कोरोना भी डरे?

वात्सल्य में ऐसे विवश हुए
धृतराष्ट्र सब ताले तोड़ चले,
अवाक् ज़माना देख रहा
कैसे क़ानून मुरीद हुआ?
जो ग़रीब हुआ वो सोच रहा 
संग अपने नियमों में भेद हुआ,
हम थे घर को तरस रहे 
बिन घोड़ा-गाड़ी ही दौड़ पड़े,
क्यों हम पर लाठी-बौछार पड़ी?
एक काग़ज़ पर राजा की बात बनी!
काग़ज़ आगे सब नियम धरे!
क्या काग़ज़ से कोरोना भी डरे?
वात्सल्य विजय के ढोल बजे 
' कर्तव्य ' परास्त भूमि में पड़े।

#आँचल 

10 comments:

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    1. उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  2. बहुत सुन्दर।
    विश्व पुस्तक दिवस की बधाई हो।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। आपको भी हार्दिक बधाई। सादर प्रणाम 🙏

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  3. काग़ज़ आगे सब नियम धरे!
    क्या काग़ज़ से कोरोना भी डरे? वाह!!!
    ऐसे ही सुंदर रचनाएँ रचते रहिए। शुभकामनाएँ !!!!

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    1. उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  4. बढ़िया...!!!
    [क्षमा चाहुंगा विस्तार में प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा हूँ]

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  5. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' २९ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_29.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  6. काग़ज़ आगे सब नियम धरे!
    क्या काग़ज़ से कोरोना भी डरे?
    वात्सल्य विजय के ढोल बजे
    ' कर्तव्य ' परास्त भूमि में पड़े।
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर, लाजवाब सृजन।

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