Monday, 23 March 2020

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?



कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?-2

आँगन पड़ी दरार है,
बँटता मेरा परिवार है,
झूठी धरम की रार है,
कैसा ये व्याभिचार है!
तम कर रहा अधिकार है,
बुझने लगी मशाल है,
सत की मशालों को पुनः जलाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

आँगन मेरे विषाद है,
प्रीतिवियोग शाप है,
कोई अधमरी सी लाश है,
मानवता जिसका नाम है,
करुणा थी जिसकी प्रेयसी,
रण में धरम के चल बसी,
उस प्रेयसी को अब यहाँ बुलाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

आँगन बिछी बिसात है,
शकुनी की दोहरी चाल है,
लगी दाँव पर जो मात है,
बेटों की ये सौगात है,
भटके वतन के लाल हैं,
निश्चित धरम की मात है,
गरिमा धरम की अब यहाँ बचाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

#आँचल 

17 comments:

  1. प्रशंसनीय

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    1. उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  2. वर्तमान जीवन-मूल्यों की विसंगतियों पर मार्मिक प्रहार। बधाई इतने सुंदर सृजन का!

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  3. रचना पूर्व आपकी प्रस्तावना अत्यंत ही प्रभावी थी। तत्पश्चात, अनूठा गायन।
    प्रशंसा से परे है आपकी प्रतिभा । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  4. सुन्दर रचना

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  5. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन

    गरिमा धरम की अब यहाँ बचाऊँ कैसे?
    राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏

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  6. चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  7. पाँच लिंको के आनंद पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏

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  8. Replies
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  9. बहुत सुन्दर एवं मोहक रचना

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  10. बहुत ही सुंदर सृजन, आँचल दी।

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  11. धर्म में अंधे होकर वतन रूपी आंगन में लोगों ने दरारें डाल दी है.
    जिस धर्म ने अपने हर अंश में करुना,दया समझाई है हमने वो धर्म नहीं जाना.
    हम अंधे होकर धर्म को रटते गये..
    ऐसे अंधों के आंगन में खुशहाली कहाँ?
    सटीक रचना.

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