"त्राहिमाम! त्राहिमाम!"
हे राजन! जनता रही पुकार,
जंतर-मंतर से न्याय माँगती
बेटियों की है यह गुहार,
दरबारी एक तुम्हारा
उन पर करता अत्याचार,
श्रम पर जिनके मान बढ़ा है,
गौरव का आकाश घना है,
आज उन्ही के अश्रुजल में
कहीं डूबे न सरकार,
त्राहिमाम! त्राहिमाम!
हे राजन! जनता रही पुकार।
सावधान! सावधान!
हे राजन! संकट में सरकार।
हो विवश शीश उठा न लें
वे,सजदे में अब तक जो
झुकते थे,
हो विवश कहीं लौटा न दें
वे तमग़े जिनकी चमक में
तुम भी चमके थे,
दामन अपना छुपा लो राजन
कहीं लग न जाए दाग़,
खिलाड़ी तुम हो राजनीति के
हैं ये भी दंगल के उस्ताद,
सावधान! सावधान!
हे राजन! कहीं मिले न धोबी-पछाड़।