Sunday, 9 April 2023

बदले पृष्ठ इतिहास के

बदले पृष्ठ इतिहास के 
हुआ काल पर घात 
राजा निर्भय कर रहा 
मनमानी-सी बात 
जनता को पुचकार के 
किया जो अपने साथ 
दुम हिलाए घूम रही 
भूल के हित की बात 
वर्तमान की नीतियाँ 
भावी युग का अंधकार 
जनता भी अब कर रही 
सहर्ष जिसे स्वीकार!
ख़ुद ही आँखें फोड़ लीं,
काटे जीभ और कान!
कैसा बुख़ार यह चढ़ रहा?
है कैसी यह सरकार?
क्यों ढक्कन बंद आक्रोश है 
जब चौपट है धन-धान्य?
जो राजा के चाकर बने 
क्यों सत्य उन्हीं का मान्य?
करुणा के भूषण त्याग कर 
यह कैसा धर्म प्रचार?
संस्कृतियों के घाट पर 
अब होता व्यभिचार!
यह कैसा ढोंग-प्रलाप है 
है कैसा यह संताप?
मोती आँखों के बेच कर 
सब चुगते मुक्ता-माल!
आज रचना है इतिहास जिन्हें 
वे सोते सेज सजाए 
और अभिमन्यु-सा सत्य खड़ा 
लहू से रहा नहाए।
लिख रहा है फिर से क्या कोई 
झूठ का गौरव इतिहास 
छल रहा यह देश को 
या कर रहा परिहास?
छल रहा यह देश को 
या कर रहा परिहास?
#आँचल