Friday, 18 October 2019
सुख क्या है?
मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी
मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी,
तुम जानत मोरे मन की वाणी
गिरधर गिरधर तोहे पुकारूँ,
नारायण तोरा रस्ता निहारूँ,
लोग कहें मैं भयी बाँवरी,
तुम्हरे दरस को अधीर श्याम री,
तन होगा मोरा मिथ्या जगत में,
मन तो मोरा श्याम भजन में,
जग से नाता स्वार्थ-मोल का,
तुम से नाता विरह-प्रेम का,
तुझमें ही मैं रम जाऊँगी,
तुमसे दूर ना रह पाऊँगी,
मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी,
तुम जानत मोरे मन की वाणी।
#आँचल
Monday, 14 October 2019
अंधविश्वास
होम,हवन,यज्ञ,पूजा, ये सब दरसल एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें प्रयोग आने वाली सामग्री वातावरण को स्वच्छ करती हैं,कीटाणु से लड़ती है पर इसका आध्यात्म या किसी विशेष प्रकार की शक्ति से कोई संबंध नही जो हमारी या किसी वस्तु की रक्षा कर सके।
अब ज़रा विचार कीजिए नींबू की खटास,मिर्ची का तीखापन या उसके अन्य गुण भला घर या गाड़ी की क्या रक्षा करने वाले हैं?
अफ़सोस...जो देश उस गीता के आगे नतमस्तक है जिसमें अर्जुन ने साक्षात भगवान से तर्क किया और जब तक तर्क मन में बैठ नही गया तब तक उन्होंने भगवान की बात को भी स्वीकार ना किया उसी देश में लोग तर्क हीन होकर किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं और अंधविश्वास के अँधेरे में भटक जाते हैं। फिर शुरूआत नींबू मिर्चें से होती है और तांत्रिक,ओझा तक जाती है फ़िर उन बाबाओं तक जो जेल में बैठे हैं,नवरात्र में सुई चुभो कर स्वयं को पीड़ा देकर माँ से मन्नत माँगना,तालाब में लोटना,झाड़ फूँक,भूत प्रेत उफ्फ......सोच कर डर लगता है। यदि इतना विश्वास भगवान पर किया होता तो शायद प्रकट हो गए होते पर हम तो उन्हें भी रिश्वत दे आते हैं। एक लोटा नही टंकी भर भरकर दूध चढ़ाते हैं, फल,फूल, सोना, चांदी और ना जाने क्या क्या पर यही फल,दूध किसी गरीब को देने में हिचक जाते हैं। अभी परसो ही शरद पूर्णिमा थी पर पता नही खीर खाकर कितने लोग अमर हो गए? नहीं.... हम यहाँ परंपरा और संस्कृति का विरोध नही कर रहे किंतु ये जानने का प्रयास कर रहे कि ये परंपरा और संस्कृति तर्क संगत क्यू नहीं हो सकती? क्यू हम किसी बात को बिना परखे सहजता से स्वीकार ले? क्यू विवेक का इस्तेमाल ना करें? क्यू अंधविश्वास के अँधेरे की ओर बढ़े?
इन प्रश्नों के बीच एक प्रश्न और उठ रहा है कि अचानक इसका विरोध क्यू? हमारे आदरणीय रक्षा मंत्री जी ने शस्त्र पूजा के तर्ज पर जो किया उसपर विवाद क्यू?
अब ये दोहराने की आवश्यकता नही कि अंधश्रद्धा में अंधेरा निहित है और सत्ताधिकारी का धर्म राष्ट्र को उन्नति के प्रकाश की ओर ले जाना है और फिर इनके प्रत्येक आचरण का पूर्ण प्रभाव राष्ट्र पर भी पड़ता है इस हेतु प्रश्न उठना स्वाभाविक है। अब यदि राफेल की रक्षा ही चिंता थी तो हाथ जोड़ मन ही मन ईश्वर को नमन करना पर्याप्त था क्युन्की प्रारब्ध से अधिक तो कुछ मिल नही सकता। पर यदि इतनी समझ बाकी होती हमारे देश में तो हम आज भी विश्वगुरु ना होते। आज तो बस यही आलम है कि बच्चे को छींक आयी तो नज़र लग गयी,गाय दूध देना बंद करे तो जादू टोना और घर में अशांति तो भूत प्रेत। अब तो लगता है कि वाइरस से बचने के लिए भी मोबाइल में नींबू मिर्चें का एंटीवाइरस डाउनलोड करना होगा।
खैर.... अंधविश्वास की जड़े बहुत मजबूत है निरंतर प्रयास ही इस पर प्रहार कर सकता है। अब तो यही कामना है कि विश्वास का दीपक शीघ्र सूर्य बन उदित हो।
सादर नमन 🙏
सुप्रभात
#आँचल
Wednesday, 9 October 2019
तुम कहाँ गए बापू
तुम कहाँ गए बापू
देश तेरा भटक रहा -2
ये बाढ़ नही,है आँसु
जो नभ से छलक रहा -2
आज़ादी हुई कितनी पुरानी
पर भारत की वही कहानी -2
रोता ठगा हुआ किसान
सूली पर लटक रहा
तुम कहाँ गए बापू....
कितने सितम सहे तुमने
कितने लाल शहीद हुए -2
इस वतन पे चोट करी उसने
जो सत्ता के मुरीद हुए
लिए सांस्कृतियों की थाती
सब जग में पहुँच रही ख्याति
हर तर्ज पर मुल्क गतिमान
धर्म पर अटक रहा
तुम कहाँ गए बापू....
सत्य,अहिंसा वृद्ध हो गए
झूठ और हिंसा धर्म हुए -2
सत्याग्रह भी कहीं खो गए
लिंचिंग में कितने प्राण गए
वो स्वावलम्बी चरखा तेरा
छूटा सूत का स्वदेशी फेरा
सिर ढके विदेशी परिधान
देश तेरा बहक रहा
तुम कहाँ गए बापू....
रिश्वत की दर पर महल खड़े
और पेट गरीब के रोज़ कटे -2
तड़पे भूख से कहीं कोई लाल
तेरी याद में सिसक रहा
तुम कहाँ गए बापू....
तुम कहाँ गए बापू
देश तेरा भटक रहा
ये बाढ़ नही,है आँसु
जो नभ से छलक रहा -2
तुम कहाँ गए बापू....
#आँचल
Tuesday, 1 October 2019
जो पंख लगे तो उड़ जाऊँ
जो पंख लगे तो उड़ जाऊँ
दंभी अंबर के आलिंगन को
जो बढ़ूँ तो अंतर बढ़ाता है
प्रभुता को अपने इतराता है
क्यू छोड़ जाऊँ इस धरती को
जो गिरते को भी अपनाती हैं
ज़ुल्मी हो या धर्मी
सबको अंतर में अपने बसाती है
चलो कहती हो तो उड़ जाऊँगी
एक नही कई बार उड़ूँगी
बस अंबर को इतना सिखलाने
है महान वही जो झुकना जाने
जो जाने बिन माँगे बस देना
प्रेम सुधा में सबको भिगोना
तज मान,ईश हो जाना
फिर भी सम धरा
भाव सेवा का रखना
#आँचल